समाचारों में क्यों?
=>कर्नाटक के तुमाकुरू जिजे, कुनीगल तालुक के एक गांव एम- होसुरू में एक दुर्लभ और घातक पशु रोग का पुनः उद्भव हुआ है।
घातक कैटरल बुखार (MCF)
=>यह एक संक्रामक वायरल बीमारी है, जिसका मूल स्थान अफ्रीका है, यह रोग मवेशियों को प्रभावित करता है। यह रोग राज्य में 10 वर्ष पूर्व देखा गया था। यह एक असाध्य रोग है, इसके प्रसार को नियंत्रित करने के लिए कोई टीका अभी तक विकसित नहीं हुआ है।
=>यह एक संक्रामक तथा आम तौर पर जुगाली करने वाली प्रजातियों की घातक वायरल रोग है। कारक एजेंट एक गामा हार्पस वायरस है।
=>भिन्न भौगोलिक वितरण के साथ MCF के दो स्थैतिक रूप हैं_ ‘‘एल्सेनाफिन हप्रीस वायरस-1’’ (AIHV-1), जो जंगली जानवरों में स्थानिक है और मवेशियों और अन्य प्रजातियों में प्रसारित होता हैं, यह दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित है।
=>इसका दूसरा रूप ‘‘ओविन हर्पीस वायरस-2 (OVHV-2) है, जो भारत में उभरती हुई पशु बीमारी है। यह घरेलू भेड़ को स्पर्शोन्मुखी रूप से संक्रमिक करता है, लेकिन लाक्षणिक विशिष्ट रूप से बड़े जुगाली वाले मवेशियों जैसे हिरण, जंगली सांड, भैंस और सुअरों को संक्रमित करता है। SA-MCF विश्व भर में फैला है। यह विकीर्ण रोग शायद ही कहीं स्थानिक हो, क्योंकि यह रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील जुगाली वाले मृत पशु में जन्म लेता है। शीप एसोसिएटे-एमसीएफ रोग किसी भी मौसम में हो सकता है।
संचरण:
=>OVHV-2 एक वर्ष से कम आयु के वाहक भेड़ के बच्चे के संपर्क या ऐरोसोल द्वारा प्रसारित होता है। यह रोग बकरियों द्वारा भी प्रसारित हो सकता है। जो रोग की स्पर्शोन्मुख वाहक हैं। मवेशियों के प्रयोगात्मक टीकाकरण के बाद ऊष्मायन अवधि 2-12 सप्ताह होती है।
=>नैदानिक बीमारी तब होती है जब भावुक मेजबान स्पर्शोन्मुख भेड़/बकरी के संपर्क में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आता है। श्वसन पथ वायरस के प्रवेश और बहाव दोनों के लिए एक सामान्य मार्ग है।
=>संक्रामक OVHV-2 ओविन नाक ड्डाव में मौजूद होता है। वयस्क भेड़ प्राकृतिक संपर्क के माध्यम से क्षैतिज संचरण द्वारा OVHV-2 से संक्रमित हो सकती है और नाक ड्डाव से बड़ी मात्र में वायरस संक्रमित कर सकता है।
नियंत्रण और रोकथाम:
=>इस रोक का कोई इलाज नहीं है, इसका लक्षणात्मक उपचार शायद ही कभी सहायक हो। इसका कोई टीका अभी तक उपलब्ध नहीं है।
=>भारत में भेड़ और बकरियों के साथ मवेशियों की एक मिश्रित पशुधन कृषि प्रणाली प्रचलित है, जिसके कारण वाहक मवेशियों (भेड़ व बकरी) घनिष्ठ संपर्क से यह रोग फैल सकता है। साथ ही घरों में या चराई के दौरान चिकित्सकीय रूप से संवेदनशील मवेशियों जैसे भैंस से भी यह रोग प्रसारित होता है।
पृष्ठभूमि:
=>यह बनोरघट्टा में लगभग एक दशक पूर्व ‘गौर’ एक भारतीय एवं मलेशियाई मूल के स्थानिक बड़े जंगली बैल में पाया गया था, उसके बाद ‘‘अनेकाल’’ व अन्य जगहों पर कुछ मवेशियों की मृत्यु हो गयी थी।
=>एक हालिया शोध से पता चला है कि एमसीएफ वायरस राज्य में भेड़ों व बकरियों (जो रोग के वाहक है, लेकिन मृत्यु का कारण नहीं हैं) में पाया जाता है। इसका अर्थ है कि वायरस अव्यवस्थित है और छिटपुट रूप में फिर से दिखाई दे सकता है।
Pic courtesy:frwlove.ru
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