समाचारों में क्यों? =>केरल की एकान्त में रहने वाली जनजाति चोल नयाकर जंगलों को छोड़कर मैदानी इलाकों में आ रही है। उनकी कई पीढ़ियाँ, दक्षिणी वायनाड वन मण्डल के तहत मेपादी वन के परप्पनपारा क्षेत्र में रहती थीं, जो उनका घर था। वे कभी-कभी मैदानी इलाकों में आते थे, विशेष तौर पर तब जब उन्हें कोई चिकित्सा आपात स्थिति या अन्य कोई सख्त ज़रूरत पेश आती थी। =>लेकिन एक दशक से भी कम समय में दूसरी बार भारी वर्षा ने उनके जीवन की शांति को भंग किया है। और हालिया जल प्रलय के बाद, एकान्तवासी चोल नायकर जनजाति को वास्तविक वनवासियों के रूप में स्वयं को अनुभव किया होगा, क्योंकि जनजाति के 44 सदस्यों ने अपना वन घर छोड़ने का फैसला किया है।
विशिष्ट लक्षणः =>छोटे जनजाति समुदाय का जीवन शहरीकृत मैदानी इलाकों के निकट रहा है। लेकिन शहरीकरण के प्रभावों से वे दूर रहे हैं, यद्यपि वे नगरों के नज़दीक रहते हैं, वांडुवांचल शहर उनके परप्पनपारा बस्ती से केवल 10 किमी दूर है, यहां तक पहुंचने के लिए जंगल के रास्ते से तीन घंटे की यात्र करनी पड़ती है। =>यह जनजाति बस्ती मोपायनाडु ग्राम पंचायत के अंदर आती है तथा इसमें 12 पुरुष, 17 महिलायें और 13 बच्चें हैं। वे परंपरागत रूप से मामूली वनोत्पाद एकत्र करते हैं जैसे शहद, आदि वे उसे शहर में बेचते हैं। =>वे 2009 तक गुफाओं में रहते थे, भारी वर्षा ने उन्हें बाहर आने के लिए मजबूर किया। उन्हें किराये के घरों में स्थायी रूप से रखा गया है और वे तब से वहां रह रहे हैं। मूसलाधार वर्षा के बाद भूस्खलन आदि के कारण उनकी बस्तियां उजड़ गयीं।
आगे की राह =>जनजाति के सदस्यों से जिला प्राधिकारियों ने अनुरोध किया कि वे जंगल के बाहर स्थानांतरित हो जायें। जब तक उनके नये घर तैयार नहीं हो जाते हैं, तब तक समुदाय के लोग अस्थायी आश्रय स्थान कदसरी में रह सकते हैं। चलीयार नदी में मामूली वनोत्पाद और मछली पकड़ने के अधिकार सहित जनजातीय समुदाय के सभी अधिकारों को सुरक्षित किया जायेगा।
Pic courtesy:The Indian Express
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