समाचारों में क्यों? =>वैश्विक बीमारी बोझ अध्ययन 1990-2016 के अध्ययन में कहा गया है कि 28 वर्ष की अवधि में भारत में स्थायी ‘अवरोधक फेफड़ों की बीमारी’ के मामलों की संख्या 28 मिलियन से बढ़कर 55 मिलियन हो गई है।
=>भारत राज्य-स्तरीय रोग-बर्डन पहल, भारतीय चिकित्सा परिषद, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया तथा इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवाल्यूशन की संयुक्त पहल है, जो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रलय के साथ मिल कर विशेषज्ञों और अन्य संबंधित हितधारकों के सहयोग से 100 से अधिक संस्थानों द्वारा संचालित है।
वायु प्रदूषण =>भारत की जनसंख्या विश्व की 18% है, लेकिन श्वसन रोगों को वैश्विक बोझ 32% है। भारत में श्वसन रोग में स्कैमिक हृदय रोग में दूसरा स्थान है, ये आंकड़ें वैश्विक बीमारी बोझ के राज्य स्तरीय विश्लेषण से प्राप्त हुये हैं। =>2016 में भारत में कुल मौत के 10.9% और कुल DALY (एक वैश्विक मान्यता प्राप्त बीमारी बर्डन आकलन, जो उत्पादक-जीवन वर्षों की संख्या के आधार पर गणना की जाती है, जो बीमारियों के कारण कम हो जाती है।) के 64% मृत्यु के लिए स्थायी श्वसन रोग जिम्मेदार थे। यहीं आंकड़े 1990 में क्रमशः 9.6% और 4.5% थे। =>प्रदूषण श्वसन रोग के बोझ में बसे बड़ा योगदानकर्ता हैं, लगभग 33.6% सीओपीडी (क्रोनिक अवरोधक फुफुसीय बीमारी), DALY को परिवेश वायु प्रदूषण, 25.8% घरेलू वायु प्रदूषण और 21% धूम्रपान के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
हृदय रोग =>दूसरी तरफ, हृदय संबंधी बीमारियों के कारण 2016 में कुल मृत्यु का 28.1% तथा DALY बीमारियों से 14.1% मृत्यु हुई। ये मृत्यु 1990 में क्रमशः 15.2% और 6.9% रही है। =>स्केमिक हृदय बीमारी 2016 में सर्वाधिक केरल में पाई गई इसके बाद पंजाब, तमिलनाडु और महाराष्ट्र का नंबर आता है। भारत में हृदय संबंधी बीमारियों के कारण मृत्यु 1990 में 1.3 मिलियन से बढ़कर 2016 में 2.8 मिलियन हो गई। =>भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 अनुशंसा करती है कि पुराने श्वास संबंधी रोगों सहित गैर-संक्रमणकारी रोगों से समयपूर्ण मृत्यु दर 2025 तक 25% कम होनी चाहिए।
DALYs =>इसका पूर्ण रूप है-‘डिसेबिलिटी एडजस्टेड लाइफ इयर अर्थात् स्वास्थ्य जीवन के वर्ष जो समयपूर्व मृत्यु और पीड़ा से खो गये। यह जीवन के खोये वर्षों और पीड़ा सहित बिताये गये वर्षों का योग है। =>2016 में अपेक्षाकृत कम विकसित उत्तर भारतीय राज्यों में स्थायी अवरोधक फेफड़ों की बीमारियों का प्रसार और आयु मानकीकृत क्।स्ल् दर चार गुना भिन्नता के साथ सबसे ज्यादा थी। =>ज्यादातर राज्यों में स्थायी अवरोधक फेफड़ों की बीमारी DALY दर उनके सामाजिक जनसांख्यिकीय स्तर से अपेक्षा की जाने वाली तुलना में उच्चतर थी। यह दर सामान्यतः कई उत्तर भारतीय राज्यों में उच्च थी।
यह क्या सुझाव देता है? =>विस्तृत विश्लेषण के माध्यम से इन रिपोर्टों में 26 वर्षों में प्रत्येक राज्य में आत्महत्या और मुख्य गैर-संक्रमणकारी रोगों की बीमारियों और जोखिम कारक के रूझानों का वृहद वर्णन करते हैं। हालांकि, यह ज्ञात है कि भारत में, गैर-संक्रमणकारी रोग बढ़ रहे हैं, एक प्रमुख चिंता यह है कि इस्केमिक हृदय रोग और मधुमेह मेंं वृद्धि की उच्च दर भारत के कम विकसित राज्यों में है। =>ये राज्य पहले से ही अवरोधक फेफड़ों की बीमारी तथा बचपन की बीमारियों की एक शृंखला के बोझ से त्रस्त हैं। इसलिए इन राज्यों में गैर-संक्रमणकारी रोगों के नियंत्रण को बिना विलंब के बढ़ाया जाना चाहिए।
क्या किए जाने की आवश्यकता है? =>इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए भारत को राष्ट्रीय क्रॉनिक रेस्पिरेटरी रोग नियंत्रण कार्यक्रम की जरूरत है। =>लोगों को क्रॉनिक रेस्पिरेटरी रोगों से जुड़े जोखिम कारकों और बोझ के बारे में जागरूक किये जाने की आवश्यकता है। =>आयुष्मान भारत पहल के हिस्से के रूप में सीआरडी पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है तथा सामुदायिक स्क्रीनिंग कार्यक्रम विकसित करने, बुनियादी ढांचे और कौशल को बढ़ाने की आवश्यकता है, विशेष रूप से प्राथमिक एवं द्वितीयक स्वास्थ्य देखभाल स्तरों पर, ताकि आरंभिक सटीक निदान और उपचार को बढ़ावा दिया जा सके तथा अस्थमा और चिरकालिक प्रतिरोधी फुफ्रुफुसीय रोग (COPD) की दवायें भारत के सभी सार्वजनिक अस्पतालों में उपलब्ध करायी जानी चाहिए।
Pic courtesy:designthatmatters.org
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