समाचारों में क्यों? =>उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों को ‘विधायिका के अंदर और बाहर’ दोनों के सदस्यों के लिए आचार संहिता पर सर्वसम्मति विकसित करने का आह्नान किया है, ताकि लोगों का विश्वास राजनीतिक प्रक्रियाओं और संस्थानों में समाप्त न हो। राज्यसभा सदस्यों के लिए एक ऐसी ही आधार संहिता 2005 से लागू है_ किन्तु लोकसभा के लिए ऐसी कोई संहिता नहीं है।
उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों के लिए आचार संहिता =>1964 में केन्द्रीय मंत्रियों के लिए एक संहिता, अपनाई गई थी। और राज्य सरकारों को भी सलाह दी गयी थी कि इसे वे भी अपनायें। =>1999 में मुख्य न्यायाधीशों के एक सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के जजों के लिए आचार संहिता अपनाने का संकल्प पारित किया गया था। और 15 बिन्दु ‘न्यायिक जीवन में मूल्यों की पुनः स्थापना की सिफारिश की गई कि सेवारत जजों को अपने आधिकारिक एवं निजी जीवन में धार्मिक विश्वासों से दूरी बनाये रखनी चाहिए। =>सांसदों के मामले में, पहला कदम दोनों सदनों में नैतिकता पर संसदीय स्थायी समितियों का संविधान था। राज्यसभा में समिति का उद्घाटन 30 मई, 1997 को अध्यक्ष के आर नारायणन ने यह कहते हुए किया था कि, ‘‘सदस्यों की नैतिकता एवं नैतिक आचरण की निगरानी करने के अलावा, नैतिक व अन्य दुर्व्यवहारों के संदर्भ में संदर्भित मामलों की भी जांच होनी चाहिए।’’
राज्य सभा के संहिता =>नीतिशास्त्र समिति की प्रथम रिपोर्ट 15 दिसम्बर 1999 को अपनाई गई थी, और समिति की आगामी रिपोर्टों में इसके फ्रेमवर्क को दोहराया गया था। चौथी रिपोर्ट राज्यसभा द्वारा 20 अप्रैल, 2005 को अपनाई गई थी, और तब से सदन के सदस्यों के लिए 14 बिन्दु आचार संहिता लागू हो चुकी है, इसमें शामिल हैंµ =>‘‘यदि सदस्यों को ज्ञात होता है कि उनके निजी हितों और सार्वजनिक विश्वास के बीच कोई संघर्ष है, तो उन्हें ऐसे संघर्षों का समाधान करना चाहिए और समाधान इस प्रकार होना चाहिए कि उनके निजी हित उनके सार्वजनिक कर्तव्यों, दायित्वों के अधीन हों।’’ =>‘‘सदस्यों को सदैव यह देखना चाहिए कि उनके निजी वित्तीय हितों और उनके नज़दीकी परिवार के सदस्यों को इन संघर्षों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, ताकि जनहित ही सर्वोपरि हो और यदि ऐसा कोई संघर्ष कभी उठता है, तो उन्हें ऐसे संघर्षों को इस प्रकार हल करना चाहिए कि जनहित खतरें में न पड़े।’’ =>‘‘सदस्यों को सदन के पटल पर वोट देने या न देने के लिए किसी प्रकार का शुल्क, पारिश्रमिक या लाभ न तो स्वीकार करनी चाहिए, न ही आशा करनी चाहिए। साथ ही विधेयक प्रस्तुत करने, संकल्प को आगे बढ़ाने या संकल्प के आगे बढ़ने में व्यवधान डालने, प्रश्न पूछने या प्रश्न करने से रोकने या सदन की चर्चाओं में भाग लेने या किसी संसदीय समिति में भाग लेने के बदले किसी लाभ, पारिश्रमिक की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। =>राज्य की परिषदों में ‘प्रक्रिया और संचालन के नियम 293 में कहा गया हैः ‘‘सदस्यों के हितों’’ से संबंधित एक रजिस्टर होगा, जिसका प्रारूप नैतिकता समिति द्वारा निर्धारित किया जा सकता है, जो सदस्यों के निवेदन पर उनके निरीक्षण के लिए उपलब्ध होगा। यह आरटीआई अधिनियम के तहत सामान्य नागरिकों के लिए सुलभ है।
लोकसभा में संहिता =>लोकसभा में पहली नैतिकता समिति का गठन 16 मई, 2000 को किया जा सकता था जब जीएमसी बालयोगी स्पीकर थे। तब से यह मुद्दा हर लोकसभा में उठाया गया है। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला। =>लाल कृष्ण आडवानी की अध्यक्षता में लोकसभा में प्रक्रिया और संचालन के नियमों के संशोधन के संबंध में नैतिकता समिति की रिपोर्ट 16 दिसम्बर, 2014 को स्पीकर के समक्ष प्रस्तुत की गई, और 18 दिसम्बर, 2014 को सदन के पटल पर रखी गई। =>5 अगस्त, 2015 को लोकसभा में, लोकसभा की नियम समिति की रिपोर्ट में इसकी सिफारिशें शामिल की गई थीं। =>यह कहा गया कि नैतिकता समिति ‘‘सदस्यों के लिए आचरण संहिता नियमबद्ध करेगी और समय-समय पर आचरण संहिता में संशोधन या परिवर्धन का सुझाव देगी। तब से यह मामला नैतिकता समिति के समक्ष लंबित है। =>5 अगस्त, 2015 को पेश की गई नियम समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि ‘‘राज्यसभा पहले से ही अपने सदस्यों के हितों से संबंधित रजिस्टर को बनाये रख रही है। उपर्युक्त घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए, समिति ने सिफारिश की है कि नैतिकता समिति, सुझाये गये सदस्यों के हितों की प्रकृति की जांच के बाद ही उसे घोषित करेगा और लोकसभा के सदस्यों हेतु उनके हितों के रजिस्टर के प्रारूप को बनाये रखेगी।’’ यह मामला भी नैतिकता समिति के समक्ष विचाराधीन है।
नई समिति द्वारा कौन-सा नया प्रावधान जोड़ा गया है? =>यद्यपि आडवानी की अध्यक्षता में एथिक्स कमेटी ने सिफारिश की कि ‘‘कोई भी व्यक्ति या सदस्य अनैतिक आचरण से संबंधित शिकायत कर सकता है।’’ स्पीकर सुमित्र महाजन की अध्यक्षता वाली नियम समिति ने प्रावधान जोड़ा कि ‘‘यदि किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत की जाती है, तो एक सदस्य द्वारा इसे अग्रेषित किया जायेगा (और अध्यक्ष को शिकायत अग्रेषित करने वाले सदस्य द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित किया जायेगा)।’’ =>यह प्रावधान राज्यसभा से भिन्न है और यह अमेरिकी कांग्रेस के नैतिकता समिति के नियमों के समान है, जो कहता है,’’ सदन का सदस्य न होने पर किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत के रूप में दी गई जानकारी को समिति को प्रेषित किया जा सकता है, बशर्ते की सदन के सदस्य प्रमाणित करते हैं कि उनकी दृष्टि में जानकारी अच्छी मंशा से प्रस्तुत की गई है और समिति के विचार योग्य है।
अन्य देशों में आचार संहिता =>यूके में, सांसदों के लिए आचार संहिता, ‘‘19 जुलाई, 1995 के सदन के संकल्प के अनुसार तैयार की गई थी। =>कनाडाई हाउस ऑफ कॉमन्स में एक अन्य सदस्य के अनुरोध पर या सदन के प्रस्तावित संकल्प या स्वयं की पहल पर हितों के संघर्ष संबंधी संहिता के उल्लंघन के परीक्षण की शक्ति नैतिकता आयुक्त को प्रदान की गई है। =>1972 से जर्मनी की संघीय संसद सदस्यों के लिए आचार संहिता है। अमेरिका में 1968 से संहिता है। पाकिस्तान के सीनेट सदस्यों के लिए आचार संहिता है।
piccourtesy: Parliament of India history in hindi || संसद भवन का सम्पूर्ण विवरण और इतिहास ||
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