समाचारों में क्यों? =>एक ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने LGBTO (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांस्जेंडर, क्यूयर) समुदाय की प्रार्थना पर उनके ऐतिहासिक क्रूर दमन को समाप्त करने के लिए क्रम में समलैंगिकता को अपराध मुक्त कर दिया।
मुख्य बिन्दु: =>मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में बेंच ने सर्वसम्मति से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत एक ही लिंग के वयस्कों के बीच निज़ी सहमति से यौन आचरण के अपराधीकरण को स्पष्ट रूप से असंवैधानिक करार दिया है। =>हालांकि न्यायालय ने कहा कि ‘अप्राकृतिक’ यौन कृत्यों जैसे पशुसंभोग, बिना सहमति के यौन संबंध इत्यादि धारा 377 के तहत अभी भी अपराध माने जायेंगे। =>धारा 377 एक अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध पूरी तरह से उनके यौन अभिविन्यास के प्रति भेदभाव पर आधारित है। यह एलजीबीटीक्यू समुदाय के अधिकारों ‘‘समान नागरिकता और कानूनों की समान सुरक्षा’’ का उल्लंघन करता है। =>न्यायालय ने कहा कि शारीरिक स्वायत्तता व्यक्तिगत है, किसी साथी का चुनाव निजी मौलिक अधिकारों का एक भाग है। न्यायायल ने सुरेश कौशल मामले में अपने 2013 के फैसले को पलट दिया।
बेंच की राय =>चार समेकित राय में, संवैधानिक पीठ ने 156 वर्ष पुराने धारा 377 को ‘तर्कविहीन’ अनिश्चित और स्पष्ट रूप से मनमाना एवं अत्याचारपूर्ण करार दिया। क्याेंकि यह धारा समलैंगिकता को 10 साल कारावास के रूप में दण्डित करता है। =>क्षमा के लिए प्रार्थना संविधान पीठ की एक महिला सदस्य न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्र की ओर से आई थी। =>न्यायाधीश डी-वाई- चन्द्रचूड़ ने धारा 377 को मैकाले की विरासत कहा है, जो एक उदार संविधान के बावजूद 68 वर्षों से जारी है और इससे विधि निर्माताओं की सुस्ती एवं गलत ज़ाहिर होती है। उन्होंने कहा कि यह धारा प्यार की मानवीय प्रवृत्ति पर बेड़ी लगाता है।
वैश्विक स्तर पर समलैंगिकता संबंधी कानून =>सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने से भारत उन 25 अन्य देशों में सम्मिलित हो गया है, जहां समलैंगिकता को कानूनी हैसियत हासिल है। हालांकि, दुनिया भर में 723 देशों और क्षेत्रें में अभी भी समान-सेक्स संबंधों को अपराध माना जाता है। इसमें भी 45 देश ऐसे है, जहां महिलाओं के बीच इस तरह के संबंध अवैध हैं। =>इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस और इंटरसेक्स एसोसिएशन (प्स्ळ।) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे आठ देश हैं, जिनमें समलैंगिक संबंधों की सज़ा मृत्युदण्ड भी हो सकती है। और दर्जनों देशों में समलैंगिक गति-विधियों के परिणामस्वरूप जेल की सज़ा हो सकती है। कुछ देश जहां समलैंगिक यौन संबंध वैध हैं: अर्जेन्टीना (2010), ग्रीन लैण्ड (2015), दक्षिण अफ्रीका (2006), आस्टेªलिया (2017), आइसलैण्ड (2010) आयरलैंड (2015), अमेरिका (2015), ब्राज़ील (2013) लक्ज़मबर्ग (2014), स्वीडन (2009) और कनाडा (2005)।
पृष्ठभूमि: =>भारतीय समाज अधिकार कार्यकर्ताओं ने समान लिंग संबंधों को अपराध मुक्त कराने के लिए बड़ी लंबी और मुश्किल यात्र की है। उन्हें जुलाई 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय में सफलता मिली, जिसमें न्यायालय ने सहमत वयस्कों के बीच समलैंगिकता को समाप्त कर दिया था। हालांकि, दिसम्बर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के ओदश को रद्द कर दिया था और कहा कि यह आदेश कानूनी रूप से अस्थिर था। =>2015 में, लोकसभा में कांग्रेस के शशि थरूर द्वारा प्रस्तावित निजी सदस्य विधेयक के विरुद्ध लोकसभा ने वोट किया था, यह विधेयक समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने से संबंधित था। =>शीघ्र ही एक प्रसिद्ध एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ताओं के समूह एनएस जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ रीतू डालमिया, होटल मासिक अमन नाथ ओर बिज़नेस एकि्ज़क्यूटिव आयशा कपूर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट मुद्दे पर पुनर्विचार हेतु सहमत हुआ। =>याचिका में दावा किया गया कि फ्संविधान के भाग तीन के तहत गारंटीकृत अन्य मौलिक अधिकारोंय् के साथ यौन संबंध, यौन स्वायत्तता, यौन सहयोगी पसंद, जीवन, निजता, गरिमा और समानता इत्यादि का धारा 377 द्वारा उल्लंघन होता है। =>इस समुदाय के सदस्यों को एक आशा की किरण अगस्त 2017 में दिखाई दी, जब सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार की बात की और ज़ोर दिया कि, ‘‘यौन अभिविन्यास गोपनीयता की एक आवश्यक विशेषता है।’’ =>हालिया, बेंच के निर्णय में आईपीसी की धारा 377 को खत्म कर दिया, जो समानता और गरिमा के साथ जीने के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
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