समाचारों में क्यों? =>मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण के कार्यान्वयन के 25 वर्षों के बाद गृह मंत्रलय ने 2021 में ओबीसी की गणना करने वाली पहली जनगणना की घोषणा की। =>इससे 1931 में ब्रिटिश द्वारा आयोजित पिछली जाति आधारित जनगणना को अद्यतन करने के लिए राजनीतिक दलों की लंबी मांग समाप्त होने की संभावना है। =>गृह मंत्रलय ने 2021 में जनगणना के लिए रोडमैप पर चर्चा की। इसके लिए नक्शों के उपयोग और भू-संदर्भ के उपयोग पर भी विचार किया जा रहा है। =>जनगणना हेतु डिजाइन और प्रौद्योगिकी उपयोग सुधार पर ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि 2021 की जनगणना के तीन वर्षों के भीतर ही अंतिम आंकड़ों को सुनिश्चित किया जा सके, जिसका अर्थ है कि ओबीसी जनगणना संबंधी आंकड़े 2024 तक उपलब्ध होंगे, जब 2019 के बाद 2024 का चुनाव होने की उम्मीद है।
अब क्यों? =>हालांकि, ओबीसी जनसंख्या वर्षों से प्रभावशाली राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरी है, हाल ही में, एनडीए, जो 2014 में ‘सबका साथ सबका विकास’ चुनावी नारे के साथ सत्ता में आई थी, ने संसद में यह सुनिश्चित किया कि पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा दिया जायेगा।
=>ओबीसी के उप-वर्गीकरण हेतु अक्टूबर 2017 से दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग के गठन की नवीनतम घोषणा हुई है। इस आयोग ने नवम्बर 2018 तक तीसरा विस्तार मांगा है, आयोग द्वारा ‘कोटा के भीतर कोटा’ पर रिपोर्ट पेश करती है। 2021 में ओबीसी के आंकड़े इस तरह के उप-वर्गीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
जनग़णना 2011
=>सामाजार्थिक जाति जनगणना (SECC) के हिस्से के रूप में एकत्रित 2011 की जाति संबंधित आंकड़े अभी तक जारी नहीं किये गये हैं। पिछड़ा वर्ग राष्ट्रीय आयोग के अनुसार, ओबीसी की केन्द्रीय सूची में 2479 प्रविष्टियां हैं।
=>2011 की जनगणना में 29 श्रेणियों में जानकारी एकत्रित की गई है, जिसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जातियों के लिए एक अलग स्तंभ शामिल था।
जनगणना 2021 में अन्य परिवर्धन क्या हैं? =>इस पर ज़ोर दिया गया कि जनगणना के संचालन के बाद तीन साल के भीतर जनगणना आंकड़ों को अंतिम रूप देने के लिए डिज़ाइन और तकनीकी हस्तक्षेप में सुधार किये जाएंगे। वर्तमान में पूरा डेरा जारी करने में 7 से 8 साल लगते हैं। =>प्रगणक या गणनाकार 2020 में ‘हाउस लिटिंग’’ आरंभ करेंगे और ‘‘हेडकाउंड’’ फरवरी 2021 से शुरू होगा। लगभग 25 लाख प्रशिक्षित गणनाकार इस विशाल अभ्यास में लगे होंगे तथा आंकड़ों का सटीक संग्रह 2021 में सुनिश्चित होगा। =>सरकार ने सिविल पंजीकरण प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, विशेष रूप से दूर-दराज के इलाकों में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण पर, और आंकड़ों का आकलन करने के लिए नमूना पंजीकरण प्रणाली को मज़बूत करना, अर्थात् शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और प्रजनन दर इत्यादि से संबंधित आंकड़े। =>2021 की जनगणना के दौरान एकत्रित आंकड़े इलेक्ट्रॉनिक रूप में संग्रहित किये जायेंगे। वर्तमान में ‘‘शेड्यूल्स’’ (सारणी प्रारूप, जिसमें व्यक्तिगत सूचनायें होती है) गणनाकारों द्वारा प्रत्येक परिवार से भौतिक रूप में एकत्र किया जाता है तथा भौतिक रूप में ही इसे दिल्ली में सरकारी स्टोर हाउस में रखा जाता है। और तत्पश्चात जनसंख्या, भाषा, व्यवसाय आदि पर प्रासंगिक सांख्यिकीय जानकारी को क्रमबद्ध रूप में प्रकाशित किया जाता है।
पिछड़े वर्गों पर आयोग =>1953 में इस प्रकार का पहला कमीशन केलकर आयोग गठित किया गया था, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर एससी और एसटी के अलावा पिछड़े वर्गों की पहचान की जा सके। लेकिन पैनल के निष्कर्ष कि पिछड़ेपन को मापने का एक महत्वपूर्ण उपाय जाति हैं, को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि यह अधिक वस्तुनिष्ट कसौटियों जैसे आय एवं साक्षरता को लागू करने में विफल रहा है। =>1980 की मंडल आयोग की रिपोर्ट ने 52 प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या का अनुमान लगाया तथा 1257 समुदायों को पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया। इसने मौजूदा कोटे को बढ़ाने की सिफारिश की जो केवल एससी एसटी के लिए 22-5 प्रतिशत से 49-5 प्रतिशत था, जिसमें OBC शामिल थे। इस दशक बाद, इसकी सिफारिशों को सरकारी नौकरियों में लागू किया गया, इस पहल का व्यापक पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी हुआ था। =>असंतोष को शांत करने के लिए सरकार ने अगड़ी जातियों में ‘‘आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों’’ के लिए 10 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में (1992) इसे खत्म कर दिया, जहां यह माना गया कि संविधान में केवल सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को मान्यता दी है ‘आर्थिक पिछड़ेपन’ को नहीं। =>हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने ओबीसी के आरक्षण को वैध करार दिया और ओबीसी क्रीमी लेयर का विचार दिया था ऐसे लोग जो एक विशेष निर्धारित आय अर्जित करते हैं आरक्षण सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकेंगे। एससी/एसटी और ओबीसी के लिए कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया। न्यायालय आदेश के आधार पर, केन्द्र ने केन्द्रीय नागरिक पदों, सेवाओं में 27% सीटें आरक्षित कीं, और ओबीसी के लिए प्रत्यक्ष भर्ती के माध्यम से भरने का दिशा-निर्देश दिया। =>नोटः दशकीय जनगणना आयोजित करने की जिम्मेदारी, जनगणना अधिनियम 1945 में प्रावधानों के तहत एक वैधानिक अभ्यास के रूप में गृह मंत्रलय के अधीन भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय द्वारा आयोजित किया जाता है।
Pic courtesy:नवभारत।
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