बुध. दिसम्बर 25th, 2024

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवसपर पश्चिम बंगाल, जो भारत के लगभग 40% मैंग्रोव वनों का आवास है, ने मैंग्रोव प्रबंधन प्रयासों को सुव्यवस्थित करने के लिये एक समर्पित ‘मैंग्रोव सेल (Mangrove Cell)’ स्थापित करने की योजना का अनावरण किया।

भारत में मैंग्रोव की स्थिति

  • मैंग्रोव उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक अद्वितीय तटीय पारिस्थितिकी तंत्र है। ये नमक-सहिष्णु वृक्षों तथा झाड़ियों के घने वन हैं जो अंतर्ज्वारीय क्षेत्रों- जहाँ भूमि और समुद्र मिलते हैं, में विकसित होते हैं।
  • इन पारिस्थितिक तंत्रों की विशेषता खारे पानी, ज्वारीय विविधताओं और कीचड़युक्त, ऑक्सीजन-रहित मृदा जैसी कठोर परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता है।
  • मैंग्रोव प्रजनन के जरायुजता मोड (Viviparity Mode) को प्रदर्शित करते हैं, जहाँ बीज ज़मीन पर गिरने से पहले पेड़ के भीतर अंकुरित होते हैं।
  • खारे पानी में अंकुरण की चुनौती को दूर करने के लिये जरायुजता (Viviparity) एक अनुकूली तंत्र है।
  • कुछ मैंग्रोव प्रजातियाँ अपनी पत्तियों के माध्यम से अतिरिक्त नमक का स्राव करती हैं, जबकि अन्य अपनी जड़ों में नमक के अवशोषण को अवरुद्ध करती हैं।
  • मैंग्रोव पादपों में स्तंभ मूल (Prop Roots) और श्वसन मूल (Pneumatophores) जैसी विशेष जड़ें होती हैं, जो जल प्रवाह को बाधित करने में सहायता करती हैं तथा चुनौतीपूर्ण ज्वारीय वातावरण में सहायता प्रदान करती हैं।

भारत में मैंग्रोव आवरण 

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट (Indian State Forest Report), 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव आवरण 4992 वर्ग किमी. है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
  • पश्चिम बंगाल में सुंदरवन विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन क्षेत्र है। इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • सुंदरबन, अंडमान, गुजरात के कच्छ और जामनगर क्षेत्रों में भी पर्याप्त मैंग्रोव आवरण क्षेत्र है।

महत्त्व 

  • जैव विविधता संरक्षण: मैंग्रोव विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जीवों की प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं, जो विभिन्न सागरीय और स्थलीय जीवों के प्रजनन, संवर्द्धन एवं चरागाह के रूप में कार्य करते हैं।उदाहरण के लिये सुंदरबन में रॉयल बंगाल टाइगर, इरावदी डॉल्फिन, रीसस मकाक, तेंदुआ, छोटे भारतीय कस्तूरी बिलाव निवास करते हैं।
  • तटीय संरक्षण: मैंग्रोव तटीय अपरदन, तूफान और सुनामी के प्रति प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करते हैं।उनकी सघन जड़ों और स्तंभ मूलों (prop root) का उलझा हुआ जाल तटीय अपरदन को रोकता है तथा लहरों एवं धाराओं के प्रभाव को कम करता है।तूफान एवं चक्रवात के दौरान मैंग्रोव उनकी ऊर्जा को अवशोषित और नष्ट कर सकते हैं, जिससे अंतर्देशीय क्षेत्रों तथा मानवीय बस्तियों को विनाशकारी क्षति से बचाया जा सकता है।
  • कार्बन पृथक्करण: मैंग्रोव अत्यधिक कुशल कार्बन सिंक होते हैं, जो वायुमंडल से वृहद् मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करते हैं और इसे अपने बायोमास एवं अवसाद के रूप में संग्रहीत करते हैं।
  • मत्स्य पालन एवं आजीविका: मैंग्रोव मत्स्य और घोंघा के लिये संवर्द्धित क्षेत्र प्रदान करके मत्स्य उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही आजीविका तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा में योगदान कर मत्स्य पालन का समर्थन करते हैं।
  • जल की गुणवत्ता में सुधार: मैंग्रोव प्राकृतिक फिल्टर (निस्यंदन) के रूप में कार्य करते हैं, जो तटवर्ती जल को खुले समुद्र में पहुँचने से पूर्व उसको प्रदूषित होने से रोकते हैं और उसके पोषक तत्त्वों को भी बचाते हैं।जल को शुद्ध करने में पोषक तत्त्वों की भूमिका समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने और कमज़ोर तटों के पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में सहायता करती है।
  • पर्यटन और मनोरंजन: मैंग्रोव पर्यावरण-पर्यटन, बर्डवॉचिंग (पक्षी अवलोकन), कयाकिंग और प्रकृति-आधारित गतिविधियों जैसे मनोरंजक अवसर प्रदान करते हैं, जो स्थानीय समुदायों के लिये स्थायी आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।

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