शनि. जून 29th, 2024

पटना उच्च न्यायालय ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने के बिहार सरकार के फैसले को रद्द कर दिया।बिहार सरकार के इस कदम ने भारत में आरक्षण नीतियों की कानूनी सीमाओं पर महत्त्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिये हैं।50% सीमा से अधिक आरक्षण वाले अन्य राज्य छत्तीसगढ़ (72%), तमिलनाडु (69%) हैं।अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नागालैंड सहित पूर्वोत्तर राज्य (प्रत्येक 80%)। लक्षद्वीप में अनुसूचित जनजातियों के लिये 100% आरक्षण है।

उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि

  • नवंबर 2023 में बिहार सरकार ने वंचित जातियों के लिये कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने हेतु राजपत्र अधिसूचना जारी की।
  • यह निर्णय एक जाति-आधारित सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद लिया गया, जिसमें पिछड़ी जातियों, अति पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि की आवश्यकता बताई गई थी।
  • इस 65% कोटा को लागू करने के लिये बिहार विधानसभा ने नवंबर 2023 में बिहार आरक्षण संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया।

न्यायालय के फैसले में प्रमुख तर्क

  • बिहार सरकार द्वारा आरक्षण को 50% से अधिक बढ़ाने के निर्णय को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation- PIL) दायर की गई।
  • पटना उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि 65% कोटा इंदिरा साहनी मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा का उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने तर्क दिया कि राज्य सरकार का निर्णय सरकारी नौकरियों में “पर्याप्त प्रतिनिधित्व” पर आधारित नहीं था, बल्कि इन समुदायों की आनुपातिक आबादी पर आधारित था।
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि 10% आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically Weaker Sections- EWS) कोटा के साथ, विधेयक ने कुल आरक्षण को 75% तक बढ़ा दिया है, जो असंवैधानिक है।

बिहार में आरक्षण बढ़ाने की आवश्यकता

राज्य का सामाजिक आर्थिक पिछड़ापन

  • बिहार में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम है (800 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष से कम), जो राष्ट्रीय औसत का 30% है।
  • इसकी प्रजनन दर सबसे अधिक है और केवल 12% जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रहती है, जबकि राष्ट्रीय औसत 35% है।
  • राज्य में देश में सबसे कम कॉलेज घनत्व है तथा 30% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है।

पिछड़े वर्गों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व

  • बिहार की जनसंख्या में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग का हिस्सा 84.46% है, लेकिन सरकारी नौकरियों और शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व आनुपातिक नहीं है।

आरक्षण सीमा बढ़ाने के अन्य विकल्प

एक मज़बूत नींव का निर्माण

  • प्रारंभिक बाल्यावस्था विकास (ICDS केंद्रों) में सुधार लाने, शिक्षक प्रशिक्षण को बढ़ाने तथा इंटरैक्टिव और प्रौद्योगिकी-एकीकृत शिक्षण विधियों की ओर रुख करने के लिये शिक्षा का अधिकार (Right to Education- RTE) फोरम की सिफारिशों को लागू करना।

भविष्य के लिये बिहार के युवाओं को कौशल प्रदान करना

  • व्यवसायों को आकर्षित करने और एक जीवंत नौकरी बाजार बनाने के लिए SIPB (सिंगल विंडो इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ बढ़ते उद्योगों के साथ कौशल निर्माण कार्यक्रम विकसित करना।

समावेशी विकास के लिये बुनियादी ढाँचा

  • बाढ़ और सूखे से निपटने के लिये उन्नत सिंचाई प्रणालियों में निवेश करना तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को जोड़ने वाला एक मज़बूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना।

राज्यों के सभी निवासियों को सशक्त बनाना

  • कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ाने और अधिक सामाजिक समानता प्राप्त करने के लिये महिलाओं की शिक्षा, कौशल विकास और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना। सामाजिक वर्गीकरण से निपटने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये कानूनों को और अधिक सख्ती से लागू करना।

आरक्षण

  • आरक्षण सकारात्मक भेदभाव का एक रूप है, जो हाशिये पर रह रहे वर्गों के बीच समानता को बढ़ावा देने तथा उन्हें सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय से बचाने के लिये बनाया गया है।
  • यह समाज के हाशिये पर रह रहे वर्गों को रोज़गार और शिक्षा तक पहुँच में प्राथमिकता देता है।
  • इसे मूलतः वर्षों से चले आ रहे भेदभाव को दूर करने तथा वंचित समूहों को बढ़ावा देने के लिये विकसित किया गया था।

आरक्षण के लाभ और हानि:

पहलूलाभहानि
सामाजिक न्यायऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों (SC, ST) के लिये अवसर प्रदान करता है।ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करके समान अवसर उपलब्ध कराना।सामाजिक गतिशीलता और सरकार में प्रतिनिधित्व बढ़ता है।इसे जाति व्यवस्था को कायम रखने के रूप में देखा जा सकता है।हो सकता है कि आरक्षित श्रेणियों के सबसे योग्य लोगों तक इसका लाभ न पहुँच पाए।कार्यकुशलता और प्रभावशीलता पर प्रश्न उठाता है।
प्रतिभाआरक्षित श्रेणियों में उत्कृष्टता को प्रोत्साहित किया जा सकता है।इससे सामान्य श्रेणी के अधिक योग्य उम्मीदवारों की तुलना में कम योग्य उम्मीदवारों का चयन हो सकता है।
प्रतिनिधित्वयह संस्थाओं और सरकार में विभिन्न प्रकार की मतों की गारंटी देता है।सामाजिक समावेशन और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देता है।वर्तमान सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं (आरक्षित श्रेणियों के अंतर्गत धनी व्यक्ति) को प्रतिबिंबित नहीं कर सकता। 
क्रीमी लेयरआरक्षित श्रेणियों में समृद्ध वर्ग (धनी) को शामिल न करके सबसे वंचित वर्ग को लक्ष्य बनाने का प्रयास किया गया है।क्रीमी लेयर को परिभाषित करना और पहचानना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।इसके अतिरिक्त अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे विशेष समूहों की ओर से भी इसका विरोध हो रहा है।
आर्थिक उत्थानशिक्षा में आरक्षण से आरक्षित श्रेणियों के लिये बेहतर रोज़गार की संभावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैंआर्थिक असमानताओं को सीधे संबोधित नहीं करता।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Login

error: Content is protected !!