ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) द्वारा किये गए एक नवीन अध्ययन, “ग्लोबल नाइट्रस ऑक्साइड बजट (1980-2020)” के अनुसार, वर्ष 1980 से 2020 की अवधि में नाइट्रस ऑक्साइड में उत्सर्जन में निरंतर वृद्धि हुई है।हालाँकि वैश्विक तापन के प्रभाव की रोकथाम करने के लिये हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने की आवश्यकता है किंतु एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2021-2022 में, पूर्व के सभी आँकड़ों की अपेक्षा सबसे अधिक तेज़ी से वायु में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ।
GCP अध्ययन
- ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (GCP) वर्ष 2001 में स्थापित एक संगठन है जो विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और उनके कारणों का पता लगाने के लिये अध्ययन करता है।
- GCP द्वारा किया जाने वाला यह अध्ययन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और पृथ्वीमंडल पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव का विश्लेषण करता है और उसके संबंध में सार्वजनिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई को सूचित करने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड (3 प्रमुख ग्रीनहाउस गैस) के उत्सर्जन का परिमाण निर्धारित करता है।
- इसमें विश्व के उन सभी प्रमुख आर्थिक गतिविधियों, 18 मानवजनित और प्राकृतिक स्रोत, के डेटा की जाँच की जाती है, जिससे नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और साथ ही विश्व में नाइट्रस ऑक्साइड के 3 अवशोषी “रंध्र” (सिंक) पर भी विचार किया जाता है।
नाइट्रस ऑक्साइड के अवशोषी “सिंक”
- मृदा N₂O के लिये एक महत्त्वपूर्ण सिंक के रूप में कार्य करती है। मृदा में माइक्रोबियल प्रक्रियाएँ N₂O उत्सर्जन को कम कर सकती हैं।
- डीनाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया, N₂O को अवायवीय परिस्थितियों में नाइट्रोजन गैस (N₂) में परिवर्तित करते हैं, जिससे इसका वायुमंडल से प्रभावी रूप से निष्कासन हो जाता है। नाइट्रिफिकेशन (जो N₂O का उत्पादन करता है) और डीनाइट्रीफिकेशन के बीच संतुलन मृदा की कुल सिंक क्षमता निर्धारित करता है।
महासागर
- गभीर और अधः स्तल (Subsurface) महासागर वायु-समुद्र इंटरफेस (वायुमंडल और महासागरीय जल के बीच की सीमा) पर विघटन के माध्यम से वायुमंडल से N₂O को अवशोषित करते हैं। समुद्री फाइटोप्लांकटन और अन्य जीव घुले हुए N₂O को अवशोषित करने का कार्य करते हैं।
समताप मंडल
- समताप मंडल में, N₂O ओज़ोन (O₃) के साथ अभिक्रिया करता है, जिससे नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और अंततः नाइट्रोजन गैस (N₂) का निर्माण होता है।
- N₂O औसत मानव जीवनकाल (117 वर्ष) से अधिक समय तक वायुमंडल में बना रहता है, जिससे यह इस ग्रीनहाउस गैस के लिये एक प्रभावी सिंक बन जाता है, जो लंबे समय तक जलवायु और ओज़ोन को प्रभावित करता है।
अध्ययन से संबंधित मुख्य निष्कर्ष
- नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन में चिंताजनक वृद्धि: मानवीय गतिविधियों से N₂O उत्सर्जन में 1980 और 2020 के बीच 40% (प्रति वर्ष 3 मिलियन मीट्रिक टन N2O) की वृद्धि हुई है।
- N₂O के शीर्ष 5 उत्सर्जक देश चीन (16.7%), भारत (10.9%), अमेरिका (5.7%), ब्राज़ील (5.3%) और रूस (4.6%) थे।
- इस प्रकार, भारत चीन के बाद वैश्विक स्तर पर N₂O के उत्सर्जन में दूसरे स्थान पर है।
- प्रति व्यक्ति के संदर्भ में, भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन सबसे कम 0.8 किलोग्राम N₂O /व्यक्ति है, जो चीन (1.3), अमेरिका (1.7), ब्राज़ील (2.5) और रूस (3.3) से कम है।
- वर्ष 2022 में वायुमंडलीय N2O की सांद्रता 336 भाग प्रति बिलियन तक पहुँच गई, जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 25% अधिक है, जो जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा लगाए गए अनुमान से भी अधिक है।
- अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान में ऐसी कोई तकनीक नहीं है जो वायुमंडल से N2O को समाप्त कर सके।
नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन के स्रोत
प्राकृतिक स्रोत
- महासागरों, अंतर्देशीय जल निकायों एवं मृदा जैसे प्राकृतिक स्रोतों द्वारा वर्ष 2010 से वर्ष 2019 के बीच N2O के वैश्विक उत्सर्जन में 11.8% का योगदान दिया।
मानव-चालित स्रोत (मानवजनित)
- कृषि गतिविधियाँ मानव-जनित नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन के 74% के लिये उत्तरदायी थीं।
- यह मुख्य रूप से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग तथा फसल भूमि पर पशु अपशिष्ट के उपयोग के कारण था।
- दुनिया भर में खाद्य उत्पादन में नाइट्रोजन उर्वरकों के बढ़ते उपयोग से N2O की सांद्रता बढ़ रही है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोतों में उद्योग, दहन एवं अपशिष्ट प्रसंस्करण शामिल हैं।
- मांस और डेयरी उत्पादों की बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप खाद उत्पादन में हुई वृद्धि हुई है, परिणामस्वरूप से N2O उत्सर्जन भी होता है।
उत्सर्जन की दर/वृद्धि
- कृषि से होने वाले उत्सर्जन में वृद्धि जारी है, जबकि अन्य क्षेत्रों, जैसे जीवाश्म ईंधन एवं अन्य रासायनिक उद्योग से होने वाले उत्सर्जन में वैश्विक स्तर पर न तो वृद्धि हो रही है और न ही कमी आ रही है।
- जलीय कृषि से होने वाला उत्सर्जन भूमि पर रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन का केवल दसवाँ हिस्सा है, लेकिन विशेष रूप से चीन में यह तीव्रता से बढ़ रहा है।
- क्षेत्रीय स्तर पर उत्सर्जन: इस अध्ययन में शामिल 18 क्षेत्रों में से केवल यूरोप, रूस, आस्ट्रेलिया, जापान एवं कोरिया में नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी प्रदर्शित हुई है।
- यूरोप में वर्ष 1980 से वर्ष 2020 के बीच कमी की दर सबसे अधिक थी, जो जीवाश्म ईंधन तथा उद्योग उत्सर्जन में कमी के परिणामस्वरूप हुई।
- चीन एवं दक्षिण एशिया में वर्ष 1980 से वर्ष 2020 तक N2O उत्सर्जन में सर्वाधिक 92% की वृद्धि हुई है।