वस्त्र मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी किये गए आँकड़ों के अनुसार इस दशक में अक्तूबर 2023 से सितंबर 2024 की अवधि में वस्त्र उद्योग द्वारा कपास की खपत सबसे अधिक रही।
कपास की कृषि से संबंधित मुख्य तथ्य
- कपास भारत में खेती की जाने वाली सबसे प्रमुख वाणिज्यिक फसलों में से एक है और यह कुल वैश्विक कपास उत्पादन का लगभग 25% है।
- भारत में इसके आर्थिक महत्त्व को देखते हुए इसे “व्हाइट-गोल्ड” भी कहा जाता है।
- भारत में लगभग 67% कपास वर्षा आधारित क्षेत्रों में और 33% सिंचित क्षेत्रों में उगाया जाता है।
खेती के लिये आवश्यक स्थितियाँ
- कपास की खेती के लिये पालामुक्त दीर्घ अवधि और ऊष्म व धूप वाली जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्म तथा आर्द्र जलवायवीय परिस्थितियों में इसकी उत्पादकता सबसे अधिक होती है।
- कपास की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है, जिसमें उत्तरी क्षेत्रों में अच्छी जल निकासी वाली गहरी जलोढ़ मृदा, मध्य क्षेत्र की काली मृदा तथा दक्षिणी क्षेत्र की मिश्रित काली व लाल मृदा शामिल है।
- कपास में लवणता के प्रति कुछ सहनशीलता होती है, किंतु यह जलभराव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है, यह कपास की खेती में अच्छी जल निकासी वाली मृदा के महत्त्व को रेखांकित करता है।
हाइब्रिड और BT कपास
- हाइब्रिड कपास: यह विभिन्न आनुवंशिक विशेषताओं वाले दो मूल पौधों के संक्रमण द्वारा बनाया गया कपास है। हाइब्रिड अक्सर प्रकृति में अनायास और बेतरतीब ढंग से निर्मित होते हैं जब खुले-परागण वाले पौधे अन्य संबंधित किस्मों के साथ स्वाभाविक रूप से पर-परागण करते हैं।
- BT कपास: यह आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव अथवा कपास की आनुवंशिक रूप से संशोधित कीट-रोधी किस्म है।
भारत का परिदृश्य
- कपास के वैश्विक उत्पादन में स्थान (नवंबर 2023): वैश्विक स्तर पर भारत कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः चीन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।
- सबसे अधिक उत्पादक क्षेत्र (2022-23): मध्य क्षेत्र (गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश)।
कपास क्षेत्र के विकास हेतु भारत सरकार की पहल
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission- NFSM) के तहत कपास विकास कार्यक्रम: इसका उद्देश्य प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में कपास उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना है तथा इसे कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा वर्ष 2014-15 से 15 प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में क्रियान्वित किया जा रहा है।
- भारतीय कपास निगम (Cotton Corporation of India – CCI): इसकी स्थापना वर्ष 1970 में कंपनी अधिनियम 1956 अंतर्गत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में कपड़ा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में की गई थी।
- इसकी भूमिका यह है कि जब भी बाज़ार की कीमतें सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य समर्थन से नीचे गिरती हैं, तो मूल्य समर्थन उपायों को लागू करके कीमतों को स्थिर किया जाता है।
- कपास के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) फॉर्मूला: कपास किसानों के आर्थिक हित और कपड़ा उद्योग के लिये कपास की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना के लिये उत्पादन लागत का 1.5 गुना (A2+FL) का फार्मूला पेश किया गया।
- भारतीय कपास निगम (Cotton Corporation of India- CCI): जब उचित औसत गुणवत्ता ग्रेड कपास बीज (कपास) एमएसपी दरों से नीचे गिर गया, तो MSP संचालन के लिये एक केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया।
- वस्त्र सलाहकार समूह (Textile Advisory Group- TAG): उत्पादकता, मूल्य, ब्रांडिंग आदि से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये कपास मूल्य शृंखला में हितधारकों के बीच समन्वय को सुविधाजनक बनाने के लिये कपड़ा मंत्रालय द्वारा गठित।
- कॉट-एली मोबाइल एप: किसानों को उपयोगकर्त्ता अनुकूल इंटरफेस के माध्यम से MSP दर, खरीद केंद्रों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिये विकसित किया गया।
- कपास संवर्द्धन और उपभोग समिति (Committee on Cotton Promotion and Consumption – COCPC): कपड़ा उद्योग को कपास की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
भारत में कपास क्षेत्र से जुड़े मुद्दे
- कीटों का हमला: पिछले उदाहरणों में कपास उत्पादन में गिरावट के लिये ज़िम्मेदार प्राथमिक कारक पिंक बॉलवॉर्म (पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला) का उद्भव था।
- जब गुलाबी बॉलवर्म (PBW) लार्वा कपास के बीजकोषों पर आक्रमण करते हैं, तो इससे कपास के पौधे कम कपास उत्पन्न करते हैं और उत्पादित कपास निम्न गुणवत्ता का होता है।
- PBW एकभक्षी (जो मुख्य रूप से एक ही विशिष्ट प्रकार के भोजन पर निर्भर करता है) है, जो मुख्य रूप से कपास खाता है, जो बीटी प्रोटीन के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित करने में योगदान देता है।
- बीटी संकर की निरंतर खेती के कारण PBW की जनसंख्य में प्रतिरोधकता विकसित हो गई।
- गुजरात, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे कई राज्यों में पिछले कुछ वर्षों में इस कीट का भारी प्रकोप रहा है।
- पैदावार में उतार-चढ़ाव: भारत में कपास का उत्पादन कई कारकों के कारण काफी अप्रत्याशित हो सकता है।
- सिंचाई प्रणालियों तक सीमित पहुँच, मिट्टी की उर्वरता में कमी तथा अप्रत्याशित सूखा या अत्यधिक वर्षा सहित अनियमित मौसम पैटर्न, कपास की पैदावार के संबंध में अनिश्चितता में योगदान करते हैं।
- छोटे किसानों का प्रभुत्व: भारत में कपास की कृषि का अधिकांश हिस्सा छोटे किसानों द्वारा किया जाता है।
- ये किसान प्रायः पारंपरिक कृषि पद्धतियों पर निर्भर रहते हैं तथा आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों तक उनकी पहुँच सीमित होती है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र कपास उत्पादन प्रभावित होता है।
- सीमित बाज़ार पहुँच: भारत में कपास उत्पादकों की एक बड़ी संख्या को बाज़ार तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है और वे अपनी फसल को बिचौलियों को कम दरों पर बेचने के लिये मजबूर होते हैं।