नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित एक नए शोध के अनुसार, इस सदी के अंत से पूर्व भू-जल में 2-3.5 °C की वृद्धि का अनुमान है, जिससे जल की गुणवत्ता और सुरक्षा को खतरा हो सकता है। साथ ही, जल संसाधनों पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्र को भी खतरा हो सकता है।
शोध अध्ययन संबंधी प्रमुख तथ्य
- जर्मनी के कार्ल्सरूहे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने दुनिया के पहले ‘वैश्विक भू-जल तापमान मॉडल’ का प्रारूप शोध कार्य के लिए तैयार किया है।
- इसका उद्देश्य दुनिया भर में भू-जल के बढ़ते तापमान को प्रदर्शित करना है।
- भू-जल पृथ्वी की सतह के नीचे चट्टानों एवं मिट्टी में छिद्रित स्थानों में मौजूद है।
- यह मॉडल जलवायु परिवर्तन एवं मौसम की घटनाओं का भू-जल पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन पर केंद्रित है।
- शोधकर्ताओं ने पानी में ऊष्णन के विस्तार के आधार पर वर्तमान भू-जल तापमान का मॉडल तैयार किया और दुनिया भर में वर्ष 2000-2100 के बीच होने वाले परिवर्तनों का अनुमान लगाया है।
शोध अध्ययन से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष
- इस अध्ययन के अनुसार, मध्यम उत्सर्जन की स्थिति (Medium Emissions Scenario) में जल स्तर की गहराई पर भू-जल (पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्रों को छोड़कर) वर्ष 2000 से वर्ष 2100 के बीच औसतन 2.1 °C गर्म हो सकता है।
- इस उत्सर्जन परिदृश्य के तहत उत्सर्जन के रुझान वर्तमान ऐतिहासिक पैटर्न से बहुत अधिक परिवर्तन प्रदर्शित नहीं करते हैं।
- हालांकि, इस मॉडल के अनुसार, उच्च उत्सर्जन की स्थिति या जीवाश्म ईंधन से प्रेरित विकास के तहत भू-जल का तापमान 3.5 °C तक बढ़ सकता है।
- इस मॉडल ने मध्य रूस, उत्तरी चीन एवं उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों व दक्षिण अमेरिका में अमेज़न वर्षावन में सर्वाधिक तापमान वृद्धि की संभावना व्यक्त की है।
- इस मॉडल का यह भी अनुमान है कि वर्ष 2100 तक वैश्विक स्तर पर 60-600 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में निवास कर सकते हैं जहाँ भू-जल ताप किसी भी देश द्वारा निर्धारित पेयजल तापमान दिशा-निर्देशों के लिए उच्चतम सीमा से अधिक है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्तमान में 125 देशों में से केवल 18 देशों में ही पीने के पानी के लिए तापमान संबंधी दिशा-निर्देश हैं।
भू-जल में तापीय वृद्धि के प्रभाव
- पारितंत्र पर प्रभाव : भू-जल के गर्म होने से उन पर निर्भर पारिस्थितिकी तंत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- नदियों पर प्रभाव : नदियाँ सूखे समय में प्रवाहित होने के लिए भू-जल पर निर्भर रहती हैं। इससे इनके प्रवाह मार्ग अवरुद्ध हो सकते हैं।
- जैव-विविधता पर प्रभाव : गर्म पानी में घुलित ऑक्सीजन कम होती है, जिससे जैव-विविधता के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- पेयजल पर प्रभाव : गर्म भू-जल रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों के विकास का जोखिम बढ़ाता है, जिससे पेयजल की गुणवत्ता और लोगों के जीवन पर असर पड़ सकता है।यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से चिंताजनक है, जहाँ स्वच्छ पेयजल तक पहुँच पहले से ही सीमित है और जहाँ भू-जल का सेवन बिना उपचार के किया जाता है।गर्म भू-जल इसके रासायनिक संरचना एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान को प्रभावित करके पानी की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है।
- निषेचन प्रक्रिया पर प्रभाव : तापमान बढ़ने से स्थानीय जलीय जानवरों की स्पॉनिंग प्रक्रिया (Spawning Process : सामान्य रूप से जनन प्रक्रिया) पर महत्वपूर्ण प्रभाव होंगे, जो इन पारिस्थितिकी प्रणालियों पर निर्भर उद्योगों व समुदायों को प्रभावित करेंगी।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव : अध्ययन के मुताबिक भू-जल का गर्म होना कई तरह की आर्थिक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। उदहारण के लिए, भारत जैसे देश अपनी कृषि, निर्माण, ऊर्जा उत्पादन जैसी कई जरूरतों के लिए भू-जल पर निर्भर हैं।