मंगल. अप्रैल 22nd, 2025 9:27:54 PM

अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (ICIMOD) की हालिया रिपोर्ट में हिंदू कुश हिमालय (HKH) के गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा सिंधु घाटियों में हिम स्तर रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गया है।CIMOD, एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1983 में हुई थी और यह हिंदू कुश हिमालय को अधिक हरित, अधिक समावेशी एवं जलवायु-अनुकूल बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष

वैश्विक निष्कर्ष

  • अफगानिस्तान में अमु दरिया नदी बेसिन में सबसे कम हिमपात दर्ज किया गया, जबकि ईरान और अफगानिस्तान की पेयजल आपूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण हेलमंद नदी में हिमपात सामान्य से लगभग 32% कम रहा।
  • चीन की येलो रिवर बेसिन का जलस्तर सामान्य स्तर से 20.2% अधिक है, जो पूर्वी एशियाई शीतकालीन मानसून से आने वाली शीत पवनों एवं प्रशांत महासागर से आने वाली आर्द्ध पवनों के परस्पर प्रभाव से प्रभावित होता है।

भारत के संदर्भ में

  • रिपोर्ट में वर्ष 2003 से वर्ष 2024 तक के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है, जिससे पता चलता है कि गंगा नदी बेसिन में 22 वर्षों में सबसे कम हिमपात हुआ है और साथ ही ब्रह्मपुत्र बेसिन में सामान्य स्तर की तुलना में हिम की स्थिरता में 14.6% की कमी दर्ज की गई है।

न्यून हिमपात के पीछे का कारण

कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ एवं वैश्विक तापन का प्रभाव

  • इस अध्ययन से पता चलता है कि भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर एवं काला सागर के गर्म समुद्रों से कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ के कारण हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में सर्दियों में होने वाले हिमपात के साथ-साथ वर्षा भी कम हो गई है।
  • इसके अतिरिक्त, वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण ला-नीना एवं अल-नीनो की घटनाएँ तीव्र हो गई हैं, जिससे क्षेत्र की हिम धारण क्षमता और अधिक न्यून हो गई है।
  • पेरिस समझौते के तहत निर्धारित 1.5°C वैश्विक तापमान सीमा हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र के लिये पर्याप्त नहीं हो सकती है, क्योंकि इस क्षेत्र में वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तापमान वृद्धि होने की संभावना है।

पर्यावरण का क्षरण

  • वनों की कटाई, अत्यधिक चराई, असंतुलित भूमि प्रथाओं के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे के विकास के कारण HKH क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण के कारण क्षेत्र में मृदा अपरदन, जैवविविधता का ह्रास एवं जल प्रदूषण जैसे गंभीर प्रभाव हो रहे हैं।

आक्रामक प्रजातियों का प्रसार

  • सिरसियम आर्वेन्से (कनाडा थीस्ल) तथा ट्राइफोलियम रेपेन्स (सफेद तिपतिया घास) जैसी आक्रामक प्रजातियों का प्रसार, देशी हिमालयी प्रजातियों के लिये एक बड़ा खतरा बन गई है, जिससे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र का नाज़ुक संतुलन बिगड़ रहा है।

हिम की दृढ़ता

  • हिम की दृढ़ता से तात्पर्य उस अवधि से है जब बर्फ ज़मीन पर बनी रहती है। जब यह बर्फ पिघलती है, तो यह लोगों और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिये जल का महत्त्वपूर्ण स्रोत होती है।
  • हिंदू कुश हिमालय (HKH) नदी घाटियों में, बर्फ का पिघलना नदियों के लिये सबसे बड़ा जल स्रोत है, जो क्षेत्र की 12 प्रमुख नदी घाटियों में वार्षिक अपवाह का 23% योगदान देता है।
  • ये नदी बेसिन विश्व की लगभग एक-चौथाई आबादी को जल उपलब्ध कराते हैं तथा HKH क्षेत्र के 240 मिलियन लोगों के लिये मीठे जल का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • गंगा नदी बेसिन में, ज़मीन पर हिम का बने रहना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके पिघलने से गंगा के जल में 10.3% योगदान होता है, जबकि ग्लेशियर पिघलने से केवल 3.1% योगदान होता है।
  • इसी तरह, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी बेसिन में, हिम पिघलने से क्रमशः 13.2% एवं लगभग 40% जल आपूर्ति होती है, जबकि ग्लेशियरों से 1.8% तथा 5% जल मिलता है।

हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र

HKH का भौगोलिक विस्तार 

  • हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, किर्गिस्तान, मंगोलिया, म्याँमार, नेपाल, पाकिस्तान, ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान तक फैला हुआ है।

तीसरा ध्रुव

  • अपने विशाल बर्फ और हिम भंडार के कारण इसे अक्सर तीसरा ध्रुव कहा जाता है,यह जलवायु के परिप्रेक्ष्य से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • यह क्षेत्र आर्कटिक और अंटार्कटिका के बाहर बर्फ (ice) तथा हिम (Snow) की सबसे बड़ी सांद्रता रखता है।
  • HKH क्षेत्र की बर्फ और हिम प्रमुख नदियों के लिये महत्त्वपूर्ण जल स्रोत के रूप में काम करती है, जो एशिया के 16 देशों से होकर बहती हैं।

HKH से प्रमुख नदी प्रणालियाँ और उनका गंतव्य

दक्षिण एशिया:

  • सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र → अरब सागर और बंगाल की खाड़ी

मध्य एशिया:

  • सीर दरिया, अमु दरिया → पूर्व अरल सागर बेसिन

पूर्वी एशिया:

  • तारिम → तकलामाकन रेगिस्तान
  • पीली नदी → बोहाई की खाड़ी
  • यांग्त्ज़ी → पूर्वी चीन सागर

दक्षिण-पूर्व एशिया

  • मेकांग → दक्षिण चीन सागर
  • चिंदविन, साल्विन, इरावदी → अंडमान सागर

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