रवि. जुलाई 7th, 2024

हाल ही में नीट-यूजी परीक्षा के पेपर लीक होने के आरोप के साथ ही यूजीसी-नेट परीक्षा रद्द कर दी गई है, जबकि सीएसआईआर-नेट और नीट-पीजी परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं।ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों ने शिक्षा को राज्य सूची में शामिल करने के पक्ष में मत व्यक्त किया है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

ब्रिटिश शासन के दौरान संघीय संरचना

  • ब्रिटिश शासन के दौरान भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने भारतीय राजनीति में संघीय संरचना की नींव रखी ।
  • विधायी विषयों को संघीय विधायिका (वर्तमान संघ) और प्रांतों (वर्तमान राज्य) के बीच वितरित किया गया था। शिक्षा, जो एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक विषय है, को प्रांतीय सूची में रखा गया था।

स्वतंत्रता के बाद का परिदृश्य

  • यद्यपि यह स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहा और शिक्षा, संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत, शक्तियों के वितरण के अधीन ‘राज्य सूची’ का हिस्सा थी। इसका मतलब है कि अलग-अलग राज्यों के पास अपनी शिक्षा प्रणाली के प्रबंधन की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

आपातकाल और स्वर्ण सिंह समिति

  • आपातकाल के दौरान, कांग्रेस पार्टी ने संविधान में संशोधन हेतु सिफारिशें प्रदान करने के लिए स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया। इस समिति की सिफारिशों में से एक सिफारिश ‘शिक्षा’ को समवर्ती सूची में रखना था, ताकि इस विषय पर अखिल भारतीय नीतियां विकसित की जा सकें।
  • तत्पश्चात 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से ‘शिक्षा’ को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित करके लागू किया गया था। इस बदलाव के लिए कोई विस्तृत तर्क नहीं दिया गया था, और बिना किसी पर्याप्त बहस के विभिन्न राज्यों द्वारा संशोधन की पुष्टि की गई थी।

जनता पार्टी सरकार का प्रयास

  • आपातकाल के बाद सत्ता में आई मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार ने 42वें संशोधन के माध्यम से किए गए कई विवादास्पद परिवर्तनों को उलटने के लिए 44वां संविधान संशोधन (1978) पारित किया। इनमें से एक संशोधन जो लोकसभा में तो पारित हुआ लेकिन राज्यसभा में नहीं, वह था ‘शिक्षा’ को राज्य सूची में वापस लाना।

शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल करना

  • आपातकाल के दौरान कांग्रेस पार्टी ने संविधान संशोधन के लिए सिफारिशें देने के लिए स्वर्ण सिंह समिति का गठन किया था। इस समिति की सिफारिशों में ‘शिक्षा’ को समवर्ती सूची में रखना भी शामिल था ताकि इस विषय पर अखिल भारतीय नीतियाँ विकसित की जा सकें।
  • 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से ‘शिक्षा’ को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया। हालाँकि, इस बदलाव के लिए कोई विस्तृत तर्क नहीं दिया गया और बिना पर्याप्त बहस के विभिन्न राज्यों द्वारा संशोधन की पुष्टि कर दी गई थी।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा व्यवस्था

  • अमेरिका में राज्य व स्थानीय सरकारें समग्र शैक्षिक मानक निर्धारित करती हैं, मानकीकृत परीक्षण अनिवार्य करती हैं और कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों की निगरानी करती हैं। संघीय शिक्षा विभाग के कार्यों में मुख्यत: वित्तीय सहायता के लिए नीतियां बनाना, प्रमुख शैक्षिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना और समान पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है।
  • कनाडा में शिक्षा का प्रबंधन पूरी तरह से प्रांतों द्वारा किया जाता है। जर्मनी का संविधान शिक्षा के लिए विधायी शक्तियों को लैंडर्स (राज्यों के समकक्ष) के पास रखता है।
  • दक्षिण अफ्रीका में शिक्षा को स्कूल एवं उच्च शिक्षा से संबंधित दो राष्ट्रीय विभागों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। देश के प्रांतों के पास राष्ट्रीय विभागों की नीतियों को लागू करने और स्थानीय मुद्दों से निपटने के लिए अपने स्वयं के शिक्षा विभाग हैं।

राज्य सूची में शामिल करने के पक्ष में तर्क

  • समवर्ती सूची में ‘शिक्षा’ के पक्ष में तर्कों में एक समान शिक्षा नीति, मानकों में सुधार और केंद्र व राज्यों के बीच तालमेल शामिल हैं। हालांकि, देश की विशाल विविधता को देखते हुए ‘एक आकार सभी के लिए उपयुक्त’ दृष्टिकोण न तो संभव है और न ही वांछनीय है। इसलिए सामूहिक रूप से इसके दोनों पक्षों पर विचार किया जाना चाहिए।
  • वर्ष 2022 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार ‘शिक्षा पर बजटीय व्यय का विश्लेषण’ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शिक्षा विभागों द्वारा कुल राजस्व व्यय अनुमानत: ₹6.25 लाख करोड़ (2020-21) का है। इसमें से 15% केंद्र द्वारा व्यय किया जाता है जबकि 85% राज्यों द्वारा व्यय किया जाता है। 
  • राज्यों द्वारा वहन किए जा रहे व्यय के बड़े हिस्से को देखते हुए स्वायत्तता की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘शिक्षा’ को राज्य सूची में पुन: शामिल करने की दिशा में एक सार्थक चर्चा की आवश्यकता है।
  • उच्च शिक्षा के लिए विनियामक तंत्र के रूप में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद जैसे केंद्रीय संस्थानों को जारी रखा जा सकता है।
  • ये चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों सहित उच्च शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम, परीक्षण एवं प्रवेश के अनुरूप नीतियां तैयार करने में सक्षम होंगे।

शिक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान में शिक्षा को आरम्भ में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 45 द्वारा संबोधित किया गया है।
  • अनुच्छेद 45 राज्य को संविधान के लागू होने के दस वर्षों के भीतर चौदह वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए प्रयास करने का आदेश देता है।
  • 6ठे संशोधन ने अनुच्छेद 21-ए पेश किया, जिससे छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा एक मौलिक अधिकार बन गया।
  • अनुच्छेद 21-ए को लागू करने के लिए केंद्र द्वारा बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 लागू किया गया था।
  • मूल रूप से 7वीं अनुसूची की राज्य सूची के तहत, शिक्षा को 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।

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