शुक्र. अप्रैल 11th, 2025

केंद्र सरकार ने राज्यों को पूंजी निवेश 2024-25 के लिए विशेष सहायता योजना के माध्यम से भूमि सुधार को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की घोषणा की।इस योजना में भूमि संबंधी सुधारों के लिए 10,000 करोड़ रुपये और वित्तीय वर्ष 2024-25 में किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए 5,000 करोड़ रुपये शामिल हैं।

योजना के तहत भूमि सुधारों के लिये हाल ही में क्या घोषणाएँ की गई हैं

  • ग्रामीण क्षेत्रों में भू-खंड (Land Parcel) को विशिष्ट भू-खंड पहचान संख्या (ULPIN), जिसे भू-आधार भी कहा जाता है, सौंपी जाएगी।
  • ULPIN यह एक ऐसी संख्या है जो भूमि के उस प्रत्येक खंड की पहचान करेगी जिसका सर्वेक्षण हो चुका है, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, जहाँ सामान्यतः भूमि-अभिलेख काफी पुराने एवं विवादित होते हैं। इससे भूमि संबंधी धोखाधड़ी पर रोक लगेगी।
  • कैडस्ट्रल मानचित्रों का डिजिटलीकरण किया जाएगा और वर्तमान स्वामित्व को दर्शाने के लिये भूमि उपखंडों का सर्वेक्षण किया जाएगा। इसके अतिरिक्त एक व्यापक भूमि रजिस्ट्री स्थापित की जाएगी।
  • शहरी क्षेत्रों में राज्यों को भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) मैपिंग का उपयोग करके भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन मिलेगा।
  • उन्हें संपत्ति रिकॉर्ड प्रशासन, अद्यतनीकरण और कर प्रबंधन के लिये IT-आधारित प्रणालियाँ विकसित करने की भी आवश्यकता है।

योजना के तहत विभिन्न अन्य पहलों के लिये वित्तीय सहायता

  • कामकाज़ी महिलाओं के छात्रावासों के लिये सहायता: सरकार ने महिला कार्यबल भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये छात्रावासों के निर्माण हेतु 5,000 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जिसमें राज्य सरकारें बिना किसी लागत के भूमि उपलब्ध कराएंगी या अधिग्रहण लागत को कवर करेंगी और छात्रावासों का प्रबंधन सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत किया जाएगा किंतु राज्य का स्वामित्व बरकरार रहेगा।
  • पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग: पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग के लिये 3,000 करोड़ रुपए प्रोत्साहन के रूप में दिये जाएंगे।
  • औद्योगिक विकास: औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये 15,000 करोड़ रुपए निर्धारित किये गए हैं।
  • अवसंरचना विकास: अवसंरचना विकास के लिये 1,000 करोड़ रुपए आवंटित किये जाएंगे, जिसका हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीच बराबर वितरण किया जाएगा।
  • केंद्र प्रायोजित योजनाएँ: शहरी और ग्रामीण अवसंरचना परियोजनाओं सहित केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यों के हिस्से के लिये 15,000 करोड़ रुपए का समर्थन किया जाएगा।
  • SNA स्पर्श मॉडल: जस्ट-इन-टाइम फंड रिलीज़ मॉडल के कार्यान्वयन के लिये 4,000 करोड़ रुपए आवंटित किए जाएंगे।
  • पूंजीगत व्यय लक्ष्य: वित्त वर्ष 2024-25 हेतु पूंजीगत व्यय लक्ष्यों को पूरा करने के लिये प्रोत्साहन के रूप में 25,000 करोड़ रुपए प्रदान किये जाएंगे।

भूमि सुधारों के लिये प्रमुख पहल

  • स्वतंत्रता पूर्व: ब्रिटिश शासन के तहत किसानों के पास भूमि स्वामित्व की कमी थी। भूमि का स्वामित्व ज़मींदारों, जागीरदारों और अन्य बिचौलियों के पास था।भारत में भूमि सुधारों की प्रभावशीलता में कुछ प्रमुख चुनौतियों ने बाधा उत्पन्न की, जिनमें कुछ ही हाथों में भूमि का संकेंद्रण, शोषणकारी पट्टा व्यवस्था, अनुचित तरीके से बनाए गए भूमि अभिलेख और खंडित भूमि जोत शामिल हैं।
  • स्वतंत्रता उपरांत सुधार: उपर्युक्त मुद्दों से निपटने के लिये सरकार ने वर्ष 1949 में जे. सी. कुमारप्पा की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की, जिसने बिचौलियों के उन्मूलन, काश्तकारी सुधार, भूमि जोत की सीमा, भूमि जोत के समेकन जैसे व्यापक कृषि सुधारों की सिफारिश की।
  • बिचौलियों का उन्मूलन: ज़मींदारी प्रथा को हटाने से किसानों और राज्य के बीच बिचौलियों का उन्मूलन संभव हुआ।
  • काश्तकारी सुधार: इसका उद्देश्य किराए को नियंत्रित करना, काश्तकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करना और काश्तकारों को स्वामित्व प्रदान करना था।
  • भूमि स्वामित्व की अधिकतम सीमा: भूमि स्वामित्व की अधिकतम सीमा तय करने के लिये भूमि सीमा अधिनियम पारित किया गया ताकि कुछ लोगों के बीच भूमि का संकेंद्रण रोका जा सके।कुमारप्पा समिति की सिफारिश के आधार पर अधिकतम सीमा को एक परिवार की आजीविका के लिये आवश्यक आर्थिक जोत के आकार से तीन गुना निर्धारित किया गया था।वर्ष 1961-62 तक राज्यों ने अलग-अलग अधिकतम सीमाएँ लागू की थीं, जिन्हें वर्ष 1971 में मानकीकृत किया गया। राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों ने भूमि के प्रकार और उत्पादकता के आधार पर 10-54 एकड़ के बीच सीमाएँ निर्धारित कीं।
  • भूमि स्वामित्व का समेकन: भूमि समेकन का उद्देश्य छोटे, बिखरे हुए भूखंडों को बड़ी प्रबंधनीय इकाइयों में पुनर्गठित करके विखंडन को कम करना था।तमिलनाडु, केरल, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को छोड़कर अधिकांश राज्यों ने पंजाब और हरियाणा में अनिवार्य समेकन तथा अन्य राज्यों में स्वैच्छिक समेकन के साथ समेकन कानून बनाए।

Login

error: Content is protected !!