रिपोर्ट विकासशील देशों को “मध्यम आय जाल” से बाहर निकलने में सक्षम बनाने के लिए एक व्यापक रोडमैप प्रदान करती है।मध्य-आय जाल एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक मध्य-आय वाला देश (प्रति व्यक्ति वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद 1,136 डॉलर से 13,845 डॉलर की सीमा में) व्यवस्थित विकास मंदी का अनुभव करता है , क्योंकि यह उच्च आय के स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक नई आर्थिक संरचनाओं को अपनाने में असमर्थ होता है।
वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ
मिडिल इनकम ट्रैप
- भारत तथा चीन उन 100 देशों में शामिल हैं, जो “मिडिल इनकम ट्रैप” में फँसने के जोखिम में हैं, जहाँ देश मध्यम आय से उच्च आय की स्थिति में पहुँचने के लिये संघर्ष करते हैं।
- भारत एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जो अनुकूल जनसांख्यिकी और डिजिटलीकरण में प्रगति से लाभान्वित है, लेकिन अतीत की तुलना में मुश्किल बाह्य वातावरण का सामना कर रहा है।
- भारत के वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य में एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो अलग-अलग क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र आर्थिक प्रदर्शन को बढ़ावा देता है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 के बाद से केवल 34 मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ ही उच्च आय वाली स्थिति में पहुँच पाई हैं, जो प्रायः यूरोपीय संघ के एकीकरण या तेल भंडार जैसी विशेष परिस्थितियों का परिणाम है।
- मध्यम आय वाले देशों को भौतिक पूंजी पर घटते प्रतिलाभ (Diminishing Return) के परिणामस्वरूप आर्थिक विकास को बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- कम आय वाले देशों को भौतिक पूंजी के निर्माण और भारत जैसे बुनियादी शिक्षा में सुधार से लाभ होता है, जहाँ वर्ष 1980 के दशक में पूंजी गहनता महत्त्वपूर्ण थी, जिसमें मध्यम आय वाले देशों को आगे निवेश करने पर घटते प्रतिलाभ (Diminishing Return) का सामना करना पड़ता है।
- हालाँकि विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये केवल बचत और निवेश दरों में वृद्धि करना पर्याप्त नहीं है; इन देशों को भौतिक पूंजी से परे कारकों को भी संबोधित करने की आवश्यकता है।
- अपेक्षाकृत उच्च पूंजीगत निधि (High Capital Endowments) होने के बावज़ूद मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ उत्पादकता संबंधी मुद्दों से जूझती हैं, जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि मात्र भौतिक पूंजी अग्रिम विकास के लिये मुख्य बाधा नहीं है।
- विश्व बैंक कई मध्यम आय वाले देशों की आलोचना करता है क्योंकि वे पुरानी आर्थिक रणनीतियाँ अपना रहे हैं, जो मुख्य रूप से निवेश बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
वैश्विक आर्थिक प्रभाव
- मध्यम आय वाले देशों में छह अरब से अधिक लोग रहते हैं, जो वैश्विक जनसंख्या के 75% भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 40% से अधिक उत्पन्न करते हैं।
- उच्च आय का दर्जा प्राप्त करने में इन देशों की सफलता या विफलता वैश्विक आर्थिक समृद्धि को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगी।
प्रति व्यक्ति आय असमानता
- भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में पहचाना जाता है, लेकिन अगर मौज़ूदा रुझान जारी रहे तो इसकी प्रति व्यक्ति आय को अमेरिकी आय के स्तर के एक चौथाई तक पहुँचने में 75 वर्ष लगेंगे।
- चीन को प्रति व्यक्ति अमेरिकी आय के एक चौथाई तक पहुँचने में 10 वर्ष, इंडोनेशिया को लगभग 70 वर्ष और भारत को 75 वर्ष लगेंगे।
चुनौतियाँ और जोखिम
- मध्यम आय वाले देशों को महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें बढ़ती उम्र की आबादी, बढ़ता कर्ज, भू-राजनीतिक एवं व्यापारिक संघर्ष और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ शामिल हैं।
- यदि ये देश मौज़ूदा रुझानों के साथ चलते रहे तो सदी के मध्य तक इनके सामाजिक रूप से समृद्धि प्राप्त न कर पाने का जोखिम बना रहेगा।
रणनीतिक सिफारिशें
- 3i रणनीति: रिपोर्ट ने देशों को उच्च आय की स्थिति तक पहुँचने के लिये तीन-चरणीय दृष्टिकोण की सिफारिश की:
- 1i चरण: निम्न आय वाले देशों के लिये निवेश पर ध्यान केंद्रित करना।
- 2i चरण: निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिये विदेशी प्रौद्योगिकियों का निवेश और अंतः प्रवाह।
- 3i चरण: उच्च-मध्यम आय वाले देशों के लिये निवेश, अंतः प्रवाह और नवाचार।
- रिपोर्ट में दक्षिण कोरिया का उदाहरण देते हुए यह प्रदर्शित किया गया है कि वर्ष 1960 में 1,200 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति आय से प्रारंभ होकर दक्षिण कोरिया क्रमिक रूप से 3i रणनीति को अपनाकर वर्ष 2023 तक 33,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
नीतिगत सिफारिशें
- भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो अलग-अलग क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र आर्थिक प्रदर्शन को बढ़ावा देता है।
- परिचर्चाओं (जैसे, विनिर्माण बनाम सेवाएँ) के बजाय क्षैतिज नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना।
- प्रौद्योगिकी एवं नवाचार को सक्षम करने के लिये शिक्षा और कौशल में सुधार पर ज़ोर देना।
- ज्ञान हस्तांतरण को बढ़ाने के लिये विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच संबंधों को मज़बूत करना।
- भारत डिजिटलीकरण में अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड के साथ प्रौद्योगिकी संबंधी तैयारियों में सक्षम है। हालाँकि इन तकनीकों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने और उनका उपयोग करने के लिये फर्मों में अधिक गतिशीलता की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट भारत में सूक्ष्म उद्यमों की व्यापकता पर प्रकाश डालती है और यह सुझाव देती है कि लघु फर्मों के पक्ष में नीतियों के कारण उत्पादक फर्मों के विकास में बाधाएँ मौज़ूद हैं।
मिडिल इनकम ट्रैप
- मिडिल इनकम ट्रैप से तात्पर्य ऐसी परिस्थिति से है, जहाँ कोई देश मध्यम आय की स्थिति तक पहुँचने के बाद, उच्च आय की स्थिति में पहुँचने के लिये संघर्ष करता है।
- सामान्यतः यह तब होता है जब तीव्र विकास की प्रारंभिक अवधि के पश्चात् आर्थिक विकास भी धीमा हो जाता है और देश उच्च आय के स्तर पर पहुँचे बिना मध्यम आय के स्तर पर ही अटक जाता है।
- विश्व बैंक के अनुसार, मिडिल इनकम ट्रैप से तात्पर्य आर्थिक स्थिरता से है, जिसका सामना देश तब करते हैं, जब उनकी प्रति व्यक्ति GDP संयुक्त राज्य अमेरिका के स्तर का लगभग 10% या वर्तमान में लगभग 8,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाती है।
- कम आय वाले देशों में प्रायः न्यूनतम मज़दूरी, सस्ता श्रम और बुनियादी तकनीक की सुदृढ़ता जैसे कारकों के कारण संक्रमण के दौरान मध्यम आय के स्तर पर तीव्र वृद्धि होती है।
- मध्यम आय के चरण में, देशों को प्रारंभिक विकास चालकों का समापन, संस्थागत कमज़ोरियों, आय असमानता और नवाचार की कमी के कारण स्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।
- वर्तमान स्थिति: वर्ष 2023 के अंत तक 108 देशों को मध्यम आय के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जिनकी प्रति व्यक्ति GDP 1,136 अमेरिकी डॉलर से 13,845 अमेरिकी डॉलर के बीच थी।
- ये देश वैश्विक आबादी के 75% भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं और वैश्विक GDP का 40% से अधिक उत्पादन करते हैं, जो 60% से अधिक कार्बन उत्सर्जन में योगदान करते हैं।
- वर्ष 2006 तक विश्व बैंक ने भारत को निम्न आय वाले राष्ट्र के रूप में श्रेणीबद्ध किया था। वर्ष 2007 में भारत निम्न-मध्यम आय समूह में परिवर्तित हो गया और तब से उसी श्रेणी में बना हुआ है।
- अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत की वृद्धि निम्न-मध्यम आय स्तरों पर मंद रही है, प्रति व्यक्ति आय 1,000 अमेरिकी डॉलर से 3,800 अमेरिकी डॉलर के बीच स्थिर रही है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत की वृद्धि मुख्य रूप से शीर्ष 100 मिलियन लोगों द्वारा संचालित की गई है साथ ही यह चेतावनी भी दी कि यह मॉडल चिरस्थायी नहीं हो सकता है।