शनि. सितम्बर 28th, 2024

विश्व संसाधन संस्थान (WRI) इंडिया द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत के परिवहन क्षेत्र से उच्च-महत्वाकांक्षी रणनीतियों के कार्यान्वयन के माध्यम से वर्ष 2050 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 71% तक कम कर सकता है।यह महत्त्वपूर्ण कमी तीन प्रमुख उपायों पर निर्भर करती है , जिनमें विद्युतीकरण को आगे बढ़ाना, ईंधन अर्थव्यवस्था मानकों को बढ़ाना, तथा परिवहन एवं गतिशीलता के स्वच्छ साधनों को अपनाना शामिल है।

विश्व संसाधन संस्थान (WRI)

  • यह 1982 में स्थापित एक वैश्विक अनुसंधान संगठन है, जिसका मुख्यालय वाशिंगटन, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित है।
  • इसका विस्तार 60 से अधिक देशों में है और पर्यावरण एवं  विकास के बीच जुड़े छह महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है: जलवायु, ऊर्जा, भोजन, वन, जल, तथा शहर और परिवहन।
  • WRI उच्च गुणवत्ता वाले आँकड़ों और वस्तुनिष्ठ विश्लेषण के आधार पर महत्वाकांक्षी कार्रवाई करने के लिये  सरकार, व्यवसाय और नागरिक समाज के साथ मिलकर कार्य करता है ।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

वर्तमान उत्सर्जन और लक्ष्य की आवश्यकता

  • वर्ष 2020 में , भारत का परिवहन क्षेत्र कुल ऊर्जा-संबंधी CO2 उत्सर्जन के 14% के लिये ज़िम्मेदार था। इस क्षेत्र के लिये उत्सर्जन में कमी का रोडमैप और विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करने की त्वरित आवश्यकता है।

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों पर प्रभाव

  • भारत के लिये वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने के लिये परिवहन क्षेत्र में उच्च उत्सर्जन कटौती लक्ष्य हासिल करना महत्त्वपूर्ण है ।

डीकार्बोनाइजेशन की लागत-प्रभावशीलता

  • निम्न-कार्बन परिवहन को सबसे अधिक लागत प्रभावी दीर्घकालिक नीति के रूप में पहचाना गया है , जिसमें प्रति टन CO2 समतुल्य पर 12,118 रुपए की संभावित बचत होगी।

इलेक्ट्रिक वाहन अधिदेश

  • इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ाना विशेष रूप से प्रभावी है, क्योंकि इससे सालाना 121 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन में कमी की संभावना है। बिजली उत्पादन के डी-कार्बोनाइज़ेशन के साथ इसे पूरक बनाने से परिणाम बेहतर हो सकते हैं।

अतिरिक्त नीतिगत लाभ

  • 75% नवीकरणीय ऊर्जा के साथ कार्बन-मुक्त विद्युत् मानक को लागू करने से वर्ष 2050 तक उत्सर्जन में 75% की कमी हो सकती है।

भविष्य में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता

  • यदि कोई महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप नहीं किया गया तो वर्ष 2050 तक परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन की खपत चार गुना बढ़ जाने की उम्मीद है, जिसका मुख्य कारण यात्रियों और वस्तु ढुलाई की मांग में वृद्धि है।

वर्तमान उत्सर्जन स्रोत

  • कार्बन उत्सर्जक क्षेत्रों में 90% हिस्सेदारी सड़क परिवहन क्षेत्र की है। रेलवे, विमानन और जलमार्ग क्षेत्र का ऊर्जा खपत में एक छोटा हिस्सा हैं।

डी-कार्बोनाइज़ेशन हेतु परिवहन क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

जीवाश्म ईंधन पर उच्च निर्भरता

  • वैश्विक परिवहन क्षेत्र गैसोलीन और डीजल जैसे  जीवाश्म ईंधनों पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे स्वच्छ विकल्पों की ओर निर्भरता चुनौतीपूर्ण हो गई है।
  • जीवाश्म ईंधन अवसंरचना बहुत गहराई के साथ अंतर्निहित है, जिसके पूर्ण सुधार के लिये काफी समय एवं संसाधनों की आवश्यकता होगी।

BAU (सामान्य व्यवसाय) परिदृश्य

  • BAU परिदृश्य के तहत, भारत में जीवाश्म ईंधन  (LPG, डीजल और पेट्रोल) की खपत वर्ष 2050 तक चार गुना बढ़ने की उम्मीद है, जिसका मुख्य कारण यात्रियों और वस्तु परिवहन में बढ़ती मांग है।
  • वर्ष 2050 तक यात्रियों की यात्रा में तीन गुना वृद्धि होग , जबकि वस्तु परिवहन में सात गुना वृद्धि होगी का अनुमान है।

स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना का अभाव

  • ई.वी. चार्जिंग, हाइड्रोजन ईंधन भरने और जैव ईंधन की उपलब्धता के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण परिवहन में स्वच्छ ऊर्जा को व्यापक रूप से अपनाने में बड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है।

ऊर्जा संरक्षण बाधाएँ

  • परिवहन का डी-कार्बोनाइजेशन पावर ग्रिड के लिये नवीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धता से निकटता से जुड़ा हुआ है।
  • कई क्षेत्रों में, विद्युत् उत्पादन में अभी भी जीवाश्म ईंधन का प्रभुत्व है, जिससे विद्युतीकरण के लाभ सीमित हो जाते हैं।

धीमी नीति कार्यान्वयन और विनियामक अंतराल

  • परिवहन डी-कार्बोनाइज़ेशन के लिये नीति निर्माण और प्रवर्तन की गति अक्सर धीमी होती है।
  • कई देशों में ईंधन दक्षता, उत्सर्जन नियमों और वैकल्पिक ईंधन के लिये सख्त नियामक ढाँचे का अभाव या अपर्याप्त है, जो विकास में बाधा डालता है।

उपभोक्ता व्यवहार और बाज़ार स्वीकृति

  • अपरिचितता, लागत संबंधी चिंताओं और कथित असुविधा के कारण वैकल्पिक परिवहन साधनों या वाहनों को अपनाने में जनता को की बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • पारंपरिक वाहनों के प्रति लगाव स्वच्छ परिवहन समाधानों को बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती पेश करते हैं।

प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला संबंधी बाधाएँ

  • परिवहन डी-कार्बोनाइजेशन को प्राप्त करने के लिये बैटरी प्रौद्योगिकी, हाइड्रोजन उत्पादन और सतत् जैव ईंधन उत्पादन में प्रगति की आवश्यकता है।
  • लिथियम और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं जैसे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये आपूर्ति शृंखला व्यवधान संक्रमण को और जटिल बना सकते हैं।

वित्तपोषण एवं निवेश संबंधी बाधाएँ

  • बड़े पैमाने पर परिवहन को डी-कार्बोनाइज़ करने के लिये बुनियादी ढाँचे, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास में बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
  • विकासशील देशों में, सीमित वित्तीय संसाधन और प्रतिस्पर्द्धी विकास प्राथमिकताएँ, सतत् परिवहन समाधानों में निवेश करने की क्षमता को सीमित करती हैं।

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