दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) ने अपना 40वाँ चार्टर दिवस 8 दिसंबर, 2024 को मनाया। यह दिवस SAARC की स्थापना के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन
- दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग पर पहली बार एशियाई संबंध सम्मेलन (1947), बगुइओ सम्मेलन (1950) और कोलंबो पॉवर्स सम्मेलन (1954) में चर्चा की गई थी।
- SAARC की अवधारणा वर्ष 1980 में तब सामने आई जब बांग्लादेश के राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय सहयोग का प्रस्ताव रखा।
- SAARC की आधिकारिक स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को ढाका, बांग्लादेश में हुई थी, जिसके 7 संस्थापक सदस्य हैं: बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
- वर्ष 2007 में अफगानिस्तान 8वें सदस्य के रूप में इसमें शामिल हुआ।
उद्देश्य
- दक्षिण एशिया में कल्याण को बढ़ावा देना तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना।
- आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास में तेज़ी लाना।
- सदस्य राज्यों के बीच आत्मनिर्भरता और आपसी विश्वास को मज़बूत करना।
- आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना।
- अन्य विकासशील देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
- प्रमुख सिद्धांत: संप्रभु समानता, क्षेत्रीय अखंडता, अहस्तक्षेप, तथा सर्वसम्मति आधारित निर्णय लेना।
- SAARC का महत्त्व: SAARC में वर्ष 2021 तक विश्व के भूमि क्षेत्र का 3% विश्व की जनसंख्या का 21% और वैश्विक अर्थव्यवस्था का 5.21% (4.47 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) शामिल है।
- सहयोग का दायरा: SAARC के एजेंडे में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौता (South Asian Free Trade Area- SAFTA) शामिल है, जिसकी स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी और यह वर्ष 2006 से प्रभावी है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में टैरिफ कम करना और मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना है।
- SAARC एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विस (SAARC Agreement on Trade in Services- SATIS) 2012 में लागू हुआ, जिसका उद्देश्य अंतर-क्षेत्रीय निवेश को बढ़ाना तथा सेवाओं में व्यापार को स्वतंत्र बनाना है।
आज के संदर्भ में SAARC की प्रासंगिकता
- संवाद के लिये मंच: अपनी निष्क्रियता के बावजूद SAARC उन कुछ मंचों में से एक है जहाँ भारत और पाकिस्तान सहित दक्षिण एशियाई देश संवाद/बातचीत कर सकते हैं।
- समय-समय पर आयोजित शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन और निर्धनता जैसे ज्वलंत क्षेत्रीय मुद्दों पर विचार करने का अवसर प्रदान करते हैं, भले ही कोई ठोस परिणाम न निकले।
- साझा क्षेत्रीय समाधान: सीमा पार आतंकवाद और महामारी जैसे मुद्दे सामूहिक क्षेत्रीय प्रतिक्रिया की मांग करते हैं।
- SAARC ने पहले भी कोविड-19 आपातकालीन कोष की स्थापना जैसी पहलों का समन्वय किया है, जिससे संकट के दौरान इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है।
- आर्थिक एकीकरण की संभावना: 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद और लगभग 1.8 बिलियन की आबादी के साथ, दक्षिण एशिया में महत्त्वपूर्ण अप्रयुक्त क्षमता है।
- व्यापार और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिये SAARC के ढाँचे, जैसे कि साफ्टा और सेवाओं में व्यापार पर SAARC समझौता, को अभी भी पुनर्जीवित किया जा सकता है।
- बाह्य ढाँचे पर अत्यधिक निर्भरता से बचना: सार्क की उपेक्षा करने से सदस्य राष्ट्रों को आसियान जैसे बाह्य मंचों या चीन के नेतृत्व वाली पहलों जैसे BRI पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है।
- SAARC दक्षिण एशिया को अपने विकास पथ पर नियंत्रण रखने का साधन प्रदान करता है।
SAARC में भारत का योगदान
- SAARC शिखर सम्मेलन: भारत ने अठारह SAARC शिखर सम्मेलनों में से तीन की मेजबानी की है: दूसरा शिखर सम्मेलन बंगलुरु (1986), आठवाँ शिखर सम्मेलन नई दिल्ली (1995) और 14 वां शिखर सम्मेलन नई दिल्ली (2007) में।
- तकनीकी सहयोग: भारत ने अपने राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (National Knowledge Network- NKN) को श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों तक विस्तारित किया है, जिससे शैक्षिक तथा तकनीकी आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला है। इसके अतिरिक्त भारत ने वर्ष 2017 में दक्षिण एशियाई उपग्रह (South Asian Satellite- SAS) लॉन्च किया, जो SAARC देशों को उपग्रह-आधारित सेवाएँ प्रदान करेगा।
- मुद्रा विनिमय व्यवस्था: वर्ष 2019 में भारत ने वित्तीय सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से SAARC सदस्यों के लिये मुद्रा विनिमय व्यवस्था में 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि के ‘स्टैंडबाय स्वैप’ को शामिल करने को मंज़ूरी दी थी।
- आपदा प्रबंधन: भारत गुजरात में SAARC आपदा प्रबंधन केंद्र की अंतरिम इकाई की मेजबानी करता है।यह केंद्र SAARC देशों में आपदा जोखिम प्रबंधन के लिये नीतिगत सलाह, तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करता है।
- दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (SAU): भारत दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय का घर है, जिसकी स्थापना 14 वें SAARC में अंतर-सरकारी समझौते के माध्यम से की गई थी।यह SAARC देशों के छात्रों और विद्वानों के लिये विश्व स्तरीय शिक्षा और अनुसंधान के अवसर प्रदान करता है।