सोम. अप्रैल 28th, 2025 8:34:19 PM

सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. रामसुब्रमण्यम को भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा का 1 जून 2024 को कार्यकाल पूरा होने के बाद से यह पद रिक्त था।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

  • भारत का NHRC मानव अधिकारों को बढ़ावा और संरक्षण देने के लिये स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
  • इसका गठन 12 अक्तूबर 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 के तहत किया गया था, जिसे बाद में वर्ष 2006 और वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था।
  • आयोग की स्थापना पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप की गई थी, जो मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और संरक्षण के लिये अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मानक हैं।
  • पेरिस सिद्धांत मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण के लिये पेरिस (अक्तूबर, 1991) में अपनाए गए अंतर्राष्ट्रीय मानकों का समूह है और 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र (UN) की महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।
  • ये सिद्धांत विश्व भर में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं (NHRI) के कार्यों का मार्गदर्शन करते हैं।

भूमिका और कार्य

  • न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप: यह संबंधित न्यायालय की पूर्वानुमति से मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से जुड़े न्यायालयी मामलों में हस्तक्षेप करता है।
  • सुरक्षा उपायों की समीक्षा: यह मानवाधिकार संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों और मौजूदा कानूनों का विश्लेषण करता है तथा उनके प्रभावी प्रवर्तन के लिये उपाय प्रस्तावित करता है।
  • मानवाधिकारों के अवरोधकों का मूल्यांकन: यह आतंकवाद सहित उन कारकों की जाँच करता है जो मानव अधिकारों के प्रवर्तन में बाधा डालते हैं तथा उचित उपाय सुझाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय विषयों का अध्ययन: यह मानव अधिकारों पर संधियों और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का भी विश्लेषण करता है, तथा भारतीय संदर्भ में उनके कार्यान्वयन के लिये सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
  • अनुसंधान एवं संवर्द्धन: यह मानवाधिकारों पर अनुसंधान करता है तथा विभिन्न विषयों में इसके अध्ययन को प्रोत्साहित करता है।
  • यह प्रकाशनों, संगोष्ठियों, मीडिया और अन्य माध्यमों से मानवाधिकार साक्षरता और जागरूकता को भी बढ़ावा देता है।

NHRC की शक्तियाँ: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अनुसार NHRC को सिविल न्यायालय के समकक्ष शक्तियाँ प्राप्त हैं।

इन शक्तियों में शामिल हैं

  • दस्तावेज़ों की खोज और प्रस्तुतीकरण का आदेश देना।
  • शपथपत्र के माध्यम से प्रस्तुत साक्ष्य प्राप्त करना।
  • किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक अभिलेख या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना।
  • गवाहों या दस्तावेज़ों की जाँच के लिये कमीशन जारी करना।
  • प्रासंगिक कानूनों के अंतर्गत निर्धारित किसी भी अतिरिक्त शक्तियों का प्रयोग करना।
  • NHRC जाँच दल: NHRC का अपना जाँच दल है जिसका नेतृत्व पुलिस महानिदेशक करते हैं।
  • यह केंद्र या राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवाओं का उपयोग भी कर सकता है तथा जाँच के लिये गैर सरकारी संगठनों के साथ सहयोग भी कर सकता है।

NHRC से संबंधित चुनौतियाँ

  • गैर-बाध्यकारी अनुशंसाएँ: NHRC सरकार को केवल अनुशंसाएँ कर सकता है, जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। इससे उसके निर्णयों को लागू करने और अनुपालन सुनिश्चित करने की क्षमता सीमित हो जाती है।पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू, जो वर्ष 2016 में इसके अध्यक्ष थे, ने मानवाधिकार उल्लंघनों के मामले में आयोग की कथित निष्क्रियता के कारण इसे “दंतविहीन बाघ” कहा था।
  • क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाएँ: NHRC का क्षेत्राधिकार सार्वजनिक और निजी प्राधिकारियों द्वारा किये गए मानवाधिकार उल्लंघनों तक सीमित है। यह निजी व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किये गए उल्लंघनों को संबोधित नहीं कर सकता है। सशस्त्र बलों से संबंधित मामलों पर भी इसका अधिकार क्षेत्र सीमित है।
  • प्रवर्तन शक्ति का अभाव: NHRC के पास उन प्राधिकारियों को दंडित करने का अधिकार नहीं है जो इसकी सिफारिशों को लागू करने में विफल रहते हैं।
  • संसाधन की कमी: NHRC को प्रायः अपर्याप्त धन और स्टाफिंग सहित संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है, जो मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच करने और प्रभावी ढंग से उनका समाधान करने की इसकी क्षमता बाधित होती है।
  • अत्यधिक कार्यभार: NHRC को बड़ी संख्या में शिकायतें और याचिकाएँ प्राप्त होती हैं, जिससे मामलों को शीघ्रता एवं पूरी तरह से निपटाने की उसकी क्षमता पर असर पड़ सकता है।
  • जागरूकता और पहुँच: बहुत से लोग NHRC के अस्तित्व और इसके अधिदेश से अनभिज्ञ हैं, जिसके कारण इसमें प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या सीमित है। इसके अतिरिक्त, शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया बोझिल हो सकती है तथा हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये यह पहुँच से बाहर हो सकती है।
  • वैश्विक स्तर पर मान्यता का अभाव: जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध निकाय, ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस (GANHRI) ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन के संबंध में चिंताओं को उज़ागर करते हुए भारत के NHRC की मान्यता को स्थगित कर दिया है।
  • अपवाद: NHRC एक वर्ष से पुराने, गुमनाम, छद्मनाम या अस्पष्ट मामलों पर विचार नहीं करता है।
  • इसमें महत्त्वहीन मामलों और सेवा संबंधी मामलों को भी शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वे इसके अधिकार क्षेत्र या अधिदेश से बाहर हैं।यह भी देखा गया है कि कभी-कभी NHRC राजनीतिक रूप से प्रभावित मामलों को लेता है और दूसरे को छोड़ देता है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

  • NCSC की स्थापना अनुच्छेद 338 द्वारा की गई थी। इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं।
  • राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST): NCST की स्थापना अनुच्छेद 338A के तहत की गई थी।
  • इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं।
  • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC): वर्ष 2018 के 102 वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 338B को सम्मिलित करके आयोग को एक वैधानिक निकाय से संवैधानिक निकाय बना दिया।
  • आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 3 अन्य सदस्य होते हैं।

Login

error: Content is protected !!