FICCI-KPMG द्वारा हाल ही में जारी अध्ययन ‘ग्लोबल मोबिलिटी ऑफ इंडियन वर्कफोर्स’ के अनुसार, 2030 तक कुशल श्रमिकों की मांग आपूर्ति से अधिक हो जाएगी, जिससे 85.2 मिलियन से अधिक प्रतिभा की कमी उत्पन्न होने की संभावना है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- वैश्विक प्रतिभा संकट– 2030 तक दुनिया में 2 मिलियन कुशल श्रमिकों की कमी होगी, जिससे कई उद्योग प्रभावित होंगे।
- आर्थिक प्रभाव– इस कमी से $8.45 ट्रिलियन वार्षिक राजस्व का नुकसान हो सकता है, जो जर्मनी और जापान की संयुक्त GDP के बराबर है।
- भारतीय प्रवासी वृद्धि– ऑस्ट्रेलिया में भारत का प्रवासी समुदाय दूसरा सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता समूह है।
- भारत की GDP संभावना– 2030 तक भारत की GDP $6.5 ट्रिलियन से $9 ट्रिलियन तक पहुंच सकती है, यदि वह वैश्विक अवसरों का सही उपयोग करता है।
वैश्विक प्रतिभा संकट के कारण
तकनीकी बदलाव
- चौथी औद्योगिक क्रांति ने कार्यक्षेत्र की आवश्यकताओं को तेजी से बदला।
- ऑटोमेशन, AI, डेटा एनालिटिक्स और साइबर सुरक्षा जैसी नई तकनीकों के लिए कुशल श्रमिकों की मांग बढ़ी, लेकिन अधिकांश देशों में ये कौशल तेजी से विकसित नहीं हो रहे।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलाव ने प्रतिभा की आपूर्ति और मांग के बीच अंतर बढ़ा दिया।
शिक्षा और उद्योग में असमानता
- पारंपरिक शिक्षा प्रणाली उद्योग की बदलती जरूरतों के अनुसार धीमी गति से अनुकूलित होती है।
- पारंपरिक डिग्रियाँ उभरते उद्योगों के लिए आवश्यक व्यावहारिक कौशल प्रदान करने में विफल रहती हैं, जिससे नौकरियों और श्रमिकों के बीच असमानता बनी रहती है।
बुजुर्ग कार्यबल और जनसांख्यिकीय परिवर्तन
- जापान, जर्मनी और भारत जैसे देशों में अनुभवी पेशेवरों की कमी हो रही है।
- गिग अर्थव्यवस्था और लचीले कार्य मॉडल पारंपरिक नौकरियों से कुशल श्रमिकों के पलायन का कारण बन रहे हैं।
भू–राजनीतिक और आव्रजन प्रतिबंध
- प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में वीजा प्रतिबंध और कठोर आप्रवासन नीतियाँ प्रतिभाशाली श्रमिकों के वैश्विक प्रवाह को सीमित कर रही हैं।
- विभिन्न देशशीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित और बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में प्रतिभा की कमी हो रही है।
उद्योग–विशेष संकट
- स्वास्थ्य सेवा, साइबर सुरक्षा, आईटी और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में उच्च मांग और कम आपूर्ति के कारण तीव्र प्रतिभा संकट बना हुआ है।
ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन)
- भारत से बड़ी संख्या में कुशल पेशेवर अमेरिका, कनाडा और यूरोप में बेहतर अवसरों के लिए प्रवास कर रहे हैं।
कार्यबल गतिशीलता में बाधाएँ
- नियामक और आव्रजन बाधाएँ– जटिल वीजा प्रक्रियाएँ और कड़े कार्य परमिट नियम।
- नौकरी भर्ती में अनियमितताएँ– शोषणकारी भर्ती प्रक्रियाएँ और मानव तस्करी की समस्याएँ।
- नीतिगत बाधाएँ और कौशल असमानता– भारतीय डिग्रियों की अंतरराष्ट्रीय मान्यता की कमी, विशेष रूप से चिकित्सा क्षेत्र में।
- भाषा और सांस्कृतिक चुनौतियाँ– विदेशी कार्यस्थलों में भाषा और संस्कृति से जुड़ी कठिनाइयाँ।
बुनियादी ढाँचा और डिजिटल असमानता
- ग्रामीण–शहरी शिक्षा और डिजिटल सुविधाओं में भारी अंतर।
- शहरी भारत में तकनीकी शिक्षा बेहतर है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट, गुणवत्तापूर्ण संस्थान और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है।
भारत में प्रतिभा की कमी की चुनौतियाँ
- नियामक बाधाएँ: जटिल आप्रवासन नीतियाँ और कुछ देशों में भारतीय डिग्रियों की मान्यता की कमी।
- कौशल अंतर: भारतीय प्रशिक्षण कार्यक्रम और वैश्विक बाजार की आवश्यकताओं में असमानता।
- अवैध प्रवासन: श्रमिकों का शोषण और भारत की छवि को नुकसान।
- सांस्कृतिक बाधाएँ: भाषा कौशल और सांस्कृतिक अनुकूलन की समस्याएँ कार्यबल के एकीकरण में बाधा डालती हैं।
- राजनीतिक माहौल: यूरोप और अन्य क्षेत्रों की बदलती आव्रजन नीतियाँ श्रमिकों की वैश्विक गतिशीलता को प्रभावित कर सकती हैं।
सरकारी पहलें
- स्किल इंडिया मिशन: 2025 तक 40 करोड़ लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित करने का लक्ष्य।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020: व्यावसायिक शिक्षा, लचीली शिक्षा प्रणाली और उद्योग सहयोग पर जोर।
- मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत: स्थानीय विनिर्माण और उद्यमिता को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन का प्रयास।
- डिजिटल इंडिया: डिजिटल साक्षरता और प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करना।