रवि. नवम्बर 24th, 2024

दक्षिण राजस्थान में सेमल वृक्षों की संख्या में कमी आ रही है जिससे क्षेत्र के वनों और लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

मुख्य बिंदु

  • दक्षिणी राजस्थान में भील और गरासिया आदि स्थानों पर सेमल बड़ी मात्रा में काटा जाता है तथा उदयपुर में बेचा जाता है।
  • यह कटाई राजस्थान वन अधिनियम, 1953 से लेकर वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 तक कई कानूनों का उल्लंघन करती है।
  • सेमल एक अभिन्न प्रजाति है जो वन पारिस्थितिकी तंत्र को एक साथ रखती है। शैल-मधुमक्खियाँ इसकी शाखाओं पर घोंसला बनाती हैं क्योंकि वृक्ष के प्ररोह में उगे नोंक (Spike) इसके शिकारी स्लॉथ बियर से बचाव करती हैं।
  • जनजातीय समुदायों के सदस्य मानसून के दौरान भोजन के लिये वृक्ष की लाल जड़ का सेवन करते हैं। बुक्कुलैट्रिक्स क्रेटरेक्मा (Bucculatrix crateracma) कीट के लार्वा इसकी पत्तियों को खाते हैं।
  • गोल्डन-क्राउन्ड गौरैया अपने घोंसलों की परत इनके बीजों की सफेद रुई से बुनती है।
  • डिस्डेर्कस बग, इंडियन क्रेस्टेड साही, हनुमान लंगूर और कुछ अन्य प्रजातियाँ इसके फूलों के रस का आनंद लेती हैं।
  • क्षेत्र की गरासिया जनजाति भी मानती है कि वे सेमल वृक्ष के वंशज हैं। कथोडी जनजाति इसकी लकड़ी का उपयोग संगीत वाद्ययंत्र बनाने के लिये करती है जबकि भील इसका उपयोग बर्तन बनाने के लिये करते हैं।

सेमल वृक्ष

  • रेशम कपास के वृक्ष और बॉम्बेक्स सेइबा के नाम से भी जाना जाने वाला सेमल वृक्ष भारत का स्थानीय तथा तेज़ी से बढ़ने वाला वृक्ष है।
  • यह अपने विशिष्ट, नुकीले लाल फूलों और इसके रोयेंदार बीज की फली के लिये जाना जाता है जिसमें कपास जैसा पदार्थ होता है जिसका उपयोग कभी तकिये तथा गद्दे भरने के लिये किया जाता था।
  • यह वृक्ष अपने सजावटी मूल्य के लिये बहुमूल्य है और प्रायः उद्यान एवं बगीचों में उगाया जाता है।

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