शनि. सितम्बर 28th, 2024

हाल ही में, भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने कटक से सात बार सांसद रहे भर्तृहरि महताब को 18वीं लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष (प्रो-टेम स्पीकर) नियुक्त किया है और उन्हें शपथ दिलाई है। भारत में प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 95(1) के तहत की जाती है और यह भारत लोकसभा के स्थायी अध्यक्ष के चुनाव तक उसके कर्तव्यों का पालन करता है।

भारत में प्रोटेम स्पीकर का अर्थ और भूमिका

  • प्रोटेम एक लैटिन वाक्यांश है जिसका अंग्रेजी में अर्थ होता है – “कुछ समय के लिए” या “फिलहाल के लिए”।
  • इस प्रकार, प्रोटेम स्पीकर एक अस्थायी अध्यक्ष होता है जिसे लोकसभा या राज्य विधानसभाओं में कार्य संचालन के लिए सीमित अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • जब लोकसभा या विधानसभा का चुनाव हो चुका होता है और स्थायी अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के लिए मतदान नहीं हुआ होता है, तब तक सदन के संचालन के लिए प्रोटेम स्पीकर का चयन किया जाता है।
  • भारत के संविधान में स्पष्ट रूप से ‘प्रोटेम स्पीकर’ शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन भारत के संसदीय प्रणाली में यह पद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जब सदन द्वारा नए अध्यक्ष का चुनाव कर लिया जाता है, तब प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल स्वयं ही समाप्त हो जाता है।
  • जब पिछली लोकसभा का अध्यक्ष नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पहले अपना पद छोड़ देता है, तो राष्ट्रपति लोकसभा के एक वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर के रूप में नियुक्त करता है।
  • सामान्यतः इस पद के लिए सबसे वरिष्ठ सदस्य का चयन किया जाता है।
  • प्रोटेम स्पीकर को राष्ट्रपति स्वयं शपथ दिलाता है।
  • वह नवनिर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करता है और उसके पास अध्यक्ष की सभी शक्तियाँ होती हैं।
  • इसका प्रमुख कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और सदन को नए अध्यक्ष का चुनाव करने में सक्षम बनाना होता है।
  • प्रोटेम स्पीकर का मुख्य उद्देश्य नए निर्वाचित सदन की बैठकों की अध्यक्षता करना और सदन के नए अध्यक्ष का चुनाव संपन्न कराना होता है।

 भारत में प्रोटेम स्पीकर का इतिहास

  • भारत में प्रोटेम स्पीकर का इतिहास इसलिए भी महत्वपूर्ण और विशिष्ट है क्योंकि वर्ष 1921 में, भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार) के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पदों का सृजन किया गया था।
  • उस समय, इन पदों को क्रमशः प्रेसिडेंट (President) और डिप्टी प्रेसिडेंट (Deputy President) कहा जाता था, और यह प्रथा भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति वर्ष 1947 तक जारी रहा।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत, प्रेसिडेंट और डिप्टी प्रेसिडेंट के नामों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष में बदल दिया गया।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय संविधान के तहत संसद की संरचना और कार्यप्रणाली को और भी व्यवस्थित किया गया, जिसमें प्रोटेम स्पीकर की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई।
  • प्रोटेम स्पीकर की भूमिका विशेष रूप से नवनिर्वाचित सदन की पहली बैठक में होती है, जहां वे नए सदस्यों को शपथ दिलाते हैं और नए स्पीकर का चुनाव सुनिश्चित करते हैं।
  • प्रोटेम स्पीकर का चयन आमतौर पर संसद के सबसे वरिष्ठ सदस्य में से किया जाता है, जो नए स्पीकर के चयन तक इस पद पर रहते हैं।
  • इस प्रकार, प्रोटेम स्पीकर भारतीय लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण धुरी है, जो संसद की कार्यप्रणाली को सुचारू और सुव्यवस्थित बनाए रखने में सहायता करती है।

 भारत में प्रोटेम स्पीकर को चयन करने की प्रणाली

  • प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति या राज्यपाल अस्थायी अध्यक्ष को पद की शपथ दिलाते हैं।
  • परंपरा के अनुसार, विधानसभा सदस्यों की सहमति से सबसे वरिष्ठ सदस्य को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, जो स्थायी अध्यक्ष चुने जाने तक कार्य करते हैं।

 प्रोटेम स्पीकर का कर्त्तव्य

  • लोकसभा या राज्य विधान सभाओं की पहली बैठक की अध्यक्षता करना।
  • नवनिर्वाचित सांसदों या विधायकों को पद की शपथ दिलाना।
  • स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के चुनाव के लिए मतदान का संचालन करना।
  • सरकार का बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट आयोजित करना।

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