रवि. नवम्बर 24th, 2024

बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति रॉय को उनके साहसी और अडिग लेखन के लिए 2024 का पेन  पिंटर साहित्यिक पुरस्कार के लिए चुना गया है। अरुंधति रॉय को यह पुरस्कार दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के.  सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ, जून महीने में  निवारक निरोध कानून ,गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए )1967 के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे देने की बाद मिली है। अरुंधति रॉय को यह पुरस्कार इसी साल अक्टूबर महीने में, लंदन, इंग्लैंड में आयोजित एक समारोह में दिया जाएगा।अरुंधति रॉय सलामन रुश्दी, मार्गरेट एटवुड, टॉम स्टॉपर्ड, कैरोल एन डफी और मैलोरी ब्लैकमैन जैसे साहित्यिक दिग्गजों की सूची में शामिल हो गईं, जिन्होंने पहले यह पुरस्कार प्राप्त किया है।

पेन पिंटर पुरस्कार

  • पेन (कवि, नाटककार, संपादकों के निबंधकार, उपन्यासकार) पिंटर पुरस्कार की स्थापना 2009 में नाटककार हेरोल्ड पिंटर की स्मृति में की गई थी। हेरोल्ड पिंटर, जो ग्रेट ब्रिटेन के नागरिक थे, को 2005 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।
  • वार्षिक पेन पिंटर पुरस्कार उस लेखक को दिया जाता है जो यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड गणराज्य या राष्ट्रमंडल के  निवासी है। यह पुरस्कार “उत्कृष्ट साहित्यिक योग्यता” वाले लेखकों को दिया जाता है, जो दुनिया पर अपनी “निश्चय” दृष्टि डालते हैं।
  • यह पुरस्कार अंग्रेजी भाषा के उन लेखकों को दिया जाता है जिन्होंने नाटक, कविता, निबंध या कथा साहित्य में उत्कृष्ट साहित्यिक कार्य किया है।
  • अरुंधति रॉय को इस वर्ष के पुरस्कार के लिए अंग्रेजी पेन अध्यक्ष रूथ बोर्थविक, अभिनेता खालिद अब्दुल्ला और लेखक रोजर रॉबिन्सन के एक पैनल द्वारा चुना गया था।
  • पेन पिंटर की जूरी ने पर्यावरणीय गिरावट से लेकर मानवाधिकारों के हनन जैसे व्यापक मुद्दों पर तीखी टिप्पणी के लिए अरुंधति रॉय के साहित्यिक कार्यों की प्रशंसा की।

अरुंधति रॉय

  • अरुंधति रॉय  पहली भारतीय हैं जिन्हे  प्रतिष्ठित बुकर से सम्मानित किया गया। उन्हे अपनी कृति  ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए 1997 में बुकर पुरस्कार  मिला था।
  • उनका दूसरा उपन्यास, ‘द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ 2017 में प्रकाशित हुआ था।
  • वह कैपिटलिज्म: ए घोस्ट स्टोरी और द अलजेब्रा ऑफ इनफिनिट जस्टिस की भी लेखिका हैं।
  • उन्होंने मानवाधिकारों के दुरुपयोग, युद्ध और पूंजीवाद के खिलाफ लिखा है।  वह नरेंद्र मोदी सरकार की मुखर आलोचक हैं और उन्होंने मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत की घटती प्रेस स्वतंत्रता के बारे में भी मुखर होकर लिखा है।
  • उन्हें 2010 में नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में की गई अपनी टिप्पणी के लिए अभियोजन का सामना करना पड़ सकता है  जिसमें उन्होंने कहा था कि कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं था।

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