शनि. सितम्बर 28th, 2024

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम’ को रद्द करने के फैसले को चुनौती देने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में लिखित दलीलें पेश की हैं।इसी वर्ष 22 मार्च को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को इस आधार पर “असंवैधानिक” घोषित किया था कि यह “धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत” और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा था कि मदरसा अधिनियम को लेकर उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया अधिनियम की गलत व्याख्या की है और इसके  फैसले से लगभग 17 लाख छात्र प्रभावित होंगे।NCPCR के अनुसार मदरसों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के दायरे से छूट देने के कारण वहां पढ़ने वाले सभी बच्चे स्कूलों में प्रदान की जाने वाली औपचारिक शिक्षा के साथ ही शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के तहत मिलने वाले लाभों जैसे मध्याह्न भोजन, यूनिफॉर्म, प्रशिक्षित शिक्षक आदि से भी वंचित रह जाते हैं।

उत्तर प्रदेश मदरसा अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

  • इस अधिनियम को वर्ष 2004 में उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित किया गया था। 
  • अधिनियम के अंतर्गत उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड का गठन किया गया जिसका उद्देश्य मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करना है। 
  • अधिनियम के तहत मदरसों को बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ न्यूनतम मानकों को पूरा करना आवश्यक था। 
  • राज्य मदरसा बोर्ड के पास मदरसों के पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री और शिक्षकों के प्रशिक्षण के संबंधी दिशानिर्देश देने के भी अधिकार हैं।
  • उत्तर प्रदेश में लगभग 25,000 मदरसे हैं, जिनमें से 16,500 को आधिकारिक तौर पर उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त है।

NCPCR  द्वारा तीन प्रकार के मदरसों का उल्लेख

मान्यता प्राप्त मदरसे 

  • ये राज्य मदरसा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं।  इस प्रकार के मदरसे धार्मिक शिक्षा के साथ कुछ हद तक औपचारिक शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
  • हालाँकि ये शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का पूर्ण रूप से पालन नहीं करते हैं। 
  • मान्यता प्राप्त मदरसों में शिक्षकों और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
  • दिल्ली, असम, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना सहित कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कोई मान्यता प्राप्त मदरसा नहीं है।

गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे

  • औपचारिक शिक्षा आवश्यकताओं का अनुपालन न करने, अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और अन्य कारकों के कारण ये मदरसे राज्य सरकारों द्वारा मान्यता के लिए अयोग्य हैं।
  • गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा (लखनऊ) और दारुल उलूम देवबंद जैसे बड़े मदरसों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।

गैर-मानचित्रित मदरसे

  • ये ऐसे मदरसे हैं जिन्होंने कभी राज्य सरकार से मान्यता के लिए आवेदन नहीं किया है।

मदरसों का वित्तपोषण

  • मदरसों के लिए अधिकांश वित्तपोषण संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा मदरसों/अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रदान करने की योजना (Scheme for Providing Education to Madrasas/ Minorities SPEMM) के तहत देश भर के मदरसों और अल्पसंख्यक संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

SPEMM के तहत दो उप-योजनाएँ हैं

  • मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (SPQEM)
  • अल्पसंख्यक संस्थानों का बुनियादी ढाँचा विकास (IDMI)
  • SPEMM को अप्रैल 2021 में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से शिक्षा मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था।

मदरसों का इतिहास

  • मदरसा एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है शैक्षणिक संस्थान। इस्लाम की शुरुआती समय में मस्जिदें शिक्षा केंद्र के  रूप में भी काम करती थीं।
  • 10वीं शताब्दी के बाद से मदरसों ने इस्लामी दुनिया में धार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के संस्थानों के रूप में एक अलग पहचान हासिल कर ली।
  • मदरसों के शुरुआती साक्ष्य आधुनिक पूर्वी और उत्तरी ईरान, मध्य एशिया और अफ़गानिस्तान से संबंधित खुरासान और ट्रांसऑक्सानिया से मिलते हैं।

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