सोम. मई 13th, 2024

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव ने  संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट के अनुसार वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को लोकसभा में विचार के लिए पेश किया और बाद में सदन से विधेयक को पारित करने का अनुरोध किया। विचार-विमर्श और संसद सदस्यों की राय लेने के बाद लोकसभा ने विधेयक पारित कर दिया।

वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, देश में वनों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्रीय क़ानून है। इसमें प्रावधान है कि आरक्षित वनों का आरक्षण रद्द करना, गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग, निजी संस्था को पट्टे या अन्यथा के माध्यम से वन भूमि आवंटित करना और पुनर्वनरोपण के उद्देश्य से प्राकृतिक रूप से उगाए गए पेड़ों को साफ करने के लिए केंद्र की पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।

स्वतंत्रता के बाद वन भूमि के विशाल क्षेत्रों को आरक्षित और संरक्षित वनों के रूप में नामित किया गया था।हालाँकि अनेक वन क्षेत्रों को छोड़ दिया गया था तथा बिना किसी स्थायी वन वाले क्षेत्रों को ‘वन’ भूमि में शामिल किया गया था।वर्ष 1996 के गोदावर्मन मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया और फैसला सुनाया कि वन संरक्षण अधिनियम उन सभी भूखंडों पर लागू होगा जो या तो ‘वन’ के रूप में दर्ज थे या फिर शब्दकोश द्वारा परिभाषित वन के अर्थ से मिलते जुलते हों।सरकार ने जून 2022 में वन संरक्षण नियमों में कुछ बदलाव किया, ताकि डेवलपर्स को “ऐसी भूमि, जिस पर वन संरक्षण अधिनियम लागू नहीं है”, पर वृक्षारोपण करने की अनुमति दी जा सके और प्रतिपूरक वनीकरण की बाद की आवश्यकताओं के अनुसार ऐसे भूखंडों की अदला-बदली की जा सके।

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 के प्रमुख प्रावधान

अधिनियम का दायरा 

  • एक प्रस्तावना शामिल करके यह विधेयक अधिनियम के दायरे को व्यापक बनाता है।
  • इसके प्रावधानों की क्षमता को दर्शाने के लिये इस अधिनियम का नाम बदलकर वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980 कर दिया गया।

विभिन्न भूमियों पर प्रयोज्यता 

  • यह अधिनियम, जिसे शुरू में सिर्फ अधिसूचित वन भूमि पर लागू किया गया था, बाद में राजस्व वन भूमि और सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि तक बढ़ा दिया गया।
  • संशोधनों का उद्देश्य दर्ज वन भूमि, निजी वन भूमि, वृक्षारोपण आदि पर अधिनियम के अनुप्रयोग को सुनिश्चित करना है।

छूट 

  • विधेयक में वनों के बाहर वनीकरण तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिये कुछ छूट का प्रस्ताव है।
  • सड़कों और रेलवे के किनारे स्थित बस्तियों एवं प्रतिष्ठानों के लिये कनेक्टिविटी प्रदान करने हेतु 0.10 हेक्टेयर वन भूमि का प्रस्ताव किया गया है, सुरक्षा संबंधी बुनियादी ढाँचे के लिये 10 हेक्टेयर तक भूमि का प्रस्ताव किया गया है तथा सार्वजनिक उपयोगिता परियोजनाओं के लिये वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में 5 हेक्टेयर तक वन भूमि का प्रस्ताव दिया गया है।
  • इन छूटों में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC), नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) आदि के 100 किमी. के भीतर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित रणनीतिक परियोजनाएँ शामिल हैं।

विकास के लिये प्रावधान 

  • विधेयक निजी संस्थाओं को पट्टे पर वन भूमि के आवंटन से संबंधित मूल अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों को सरकारी कंपनियों तक भी विस्तारित करता है।
  • इससे विकास परियोजनाओं को सुविधा मिलेगी और अधिनियम के कार्यान्वयन में एकरूपता सुनिश्चित होगी।

नवीन वानिकी गतिविधियाँ

  • संशोधनों में वनों के संरक्षण के लिये वानिकी गतिविधियों की शृंखला में अग्रिम पंक्ति के वन कर्मचारियों के लिये बुनियादी ढाँचे, इकोटूरिज़्म चिड़ियाघर और सफारी जैसी नई गतिविधियों को जोड़ा गया है। वन क्षेत्रों में सर्वेक्षण एवं जाँच को गैर-वानिकी गतिविधियाँ नहीं माना जाएगा।

जलवायु परिवर्तन शमन एवं संरक्षण

  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे क्षेत्र वन संरक्षण प्रयासों के पहचाने गए भाग के रूप में जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत के प्रयासों में योगदान देना तथा वर्ष 2070 तक नेट शून्य उत्सर्जन जैसी भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं में योगदान देना।

स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना 

  • विधेयक चिड़ियाघरों, सफारी और इकोटूरिज़्म की स्थापना जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है, जिनका स्वामित्व सरकार के पास होगा, साथ ही यह संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अनुमोदित योजनाओं में स्थापित किया जाएगा।
  • ये गतिविधियाँ न केवल वन संरक्षण तथा वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं बल्कि स्थानीय समुदायों के लिये आजीविका के अवसर भी उत्पन्न करती हैं, उन्हें समग्र विकास के साथ एकीकृत करती हैं।

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