रवि. मई 19th, 2024

हाल ही में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने 24 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 157 नए नर्सिंग कॉलेजों को मंजूरी दी है।स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत के 40 प्रतिशत ज़िलों में नर्सिंग कॉलेजों का अभाव है। इसके अलावा देश के 42% नर्सिंग संस्थान दक्षिण के पाँच राज्यों में हैं, जबकि पश्चिम के तीन राज्यों में 17% हैं।

नर्सिंग सेवाओं की वर्तमान स्थिति

  • भारत में वर्तमान में लगभग 35 लाख नर्सें हैं, लेकिन इसका नर्स और जनसंख्या अनुपात 3:1000 के वैश्विक बेंचमार्क के मुकाबले केवल 2.06:1000 है।
  • स्नातक नर्सिंग शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या में वर्ष 2014-15 के बाद से 36% की वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप नर्सिंग सीटों में 40% की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • वर्तमान में लगभग 64% नर्सिंग कार्यबल केवल आठ राज्यों में प्रशिक्षित है।
  • 42% नर्सिंग संस्थान पाँच दक्षिणी राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में केंद्रित हैं।
  • जबकि 17% पश्चिमी राज्यों- राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में हैं।
  • केवल 2% नर्सिंग कॉलेज पूर्वोत्तर राज्यों में हैं।
  • नर्सिंग कॉलेजों की वृद्धि दर मेडिकल कॉलेजों की 81% की वृद्धि दर से काफी कम है, वर्ष 2014-15 के बाद से स्नातक और स्नातकोत्तर मेडिकल सीटों की संख्या बढ़कर क्रमशः 110% तथा 114% हो गई है।

वैश्विक आँकड़े

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर पुरुष और महिला नर्सिंग एवं मिडवाइफरी कार्यबल की संख्या लगभग 27 मिलियन है, जो कि वैश्विक स्वास्थ्य कार्यबल का लगभग 50% है।
  • वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है, विशेष रूप से नर्सों और दाइयों की, जो स्वास्थ्य कर्मियों की मौजूदा कमी का 50% से अधिक है।
  • नर्सों और दाइयों की सबसे अधिक कमी दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है।

कॉलेजों की कमी का कारण

  • न्यूनतम स्वास्थ्य बजट: स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का व्यय वर्ष 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.2% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 1.35% हो गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2017 में इसे सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% रखने का लक्ष्य रखा गया था।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: निजी/सार्वजनिक क्षेत्र में मानव संसाधन, अस्पतालों और निदान केंद्रो में सेवाओं की आपूर्ति की अत्यधिक कमी, जो राज्यों के बीच तथा राज्य के भीतर असमान उपलब्धता के कारण और भी दयनीय हो गई है। उदाहरण के लिये तमिलनाडु जैसे एक अच्छी स्थिति वाले राज्य में भी सरकारी सुविधाओं में चिकित्सा एवं गैर-चिकित्सा पेशेवरों की 30% से अधिक की कमी है।
  • कार्यभार और स्टाफिंग के मुद्दे: भारत में नर्सों को कार्य के अत्यधिक बोझ, लंबी कार्य अवधि के साथ कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ता है। इस कारण न केवल मरीज़ों की देखभाल पर असर पड़ता है बल्कि नर्सों को थकान और उनमें कार्य को लेकर असंतोष की स्थिति भी उत्पन्न होती है।
  • कम प्रतिपूर्ति और नौकरी की असुरक्षा: उनके कार्य की मांग के बावजूद नर्सों को आमतौर पर अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की तुलना में कम वेतन दिया जाना।
  • लैंगिक मानदंड और सामाजिक कलंक: भारत में नर्सिंग को पारंपरिक रूप से महिला-प्रधान पेशे के रूप में देखा जाता है, जिसने कुछ लैंगिक मानदंडों और सामाजिक कलंक को बरकरार रखा है।
  • ग्रामीण-शहरी विषमताएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में नर्सिंग का बुनियादी ढाँचा शहरी केंद्रों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को अक्सर कुशल नर्सिंग स्टाफ को आकर्षित करने तथा उसे बनाए रखने में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
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