मंगल. अप्रैल 22nd, 2025 5:35:53 AM

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023 शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में 2018-2020 तक भारत की आर्थिक मंदी और उसके बाद श्रम बाजार पर कोविड -19 महामारी के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।इस रिपोर्ट में विभिन्न डेटा स्रोतों का उपयोग किया गया है, जैसे- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा किये गए सर्वेक्षण, रोज़गार-बेरोज़गारी सर्वेक्षण और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण तथा इंडिया वर्किंग सर्वे।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

संरचनात्मक स्तर पर बड़े बदलाव

  • 1980 के दशक से चली आ रही स्थिरता के बाद वर्ष 2004 से नियमित या मासिक आधार पर वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। पुरुषों के मामले में यह 18% से बढ़कर 25% और महिलाओं के संदर्भ में 10% से बढ़कर 25% हो गई है।
  • वर्ष 2004 और 2017 के बीच सालाना लगभग 3 मिलियन नियमित वेतन वाले रोज़गार सृजित हुए। यह संख्या वर्ष 2017 और 2019 के बीच बढ़कर 5 मिलियन प्रतिवर्ष हो गई।
  • वर्ष 2019 के बाद से विकास में मंदी और महामारी के कारण नियमित वेतन वाली नौकरियों के सृजन की गति में कमी आई है।

लिंग आधारित आय असमानताओं में कमी

  • वर्ष 2004 में वेतनभोगी महिला कर्मचारी की आय पुरुषों की कुल आय का मात्र 70% थी।
  • वर्ष 2017 तक यह अंतर कम हो गया और महिलाओं की आय पुरुषों की कुल आय की तुलना में 76% हो गई थी। तब से यह अंतर वर्ष 2021-22 तक स्थिर बना हुआ है।

बेरोज़गारी दर और शिक्षा

  • कुल बेरोज़गारी दर वर्ष 2017-18 के 8.7% से घटकर वर्ष 2021-22 में 6.6% हो गई।
  • हालाँकि 25 वर्ष से कम आयु के स्नातकों की बेरोज़गारी दर 42.3% थी।
  • इसके विपरीत उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले व्यक्तियों के मामले में बेरोज़गारी दर 21.4% थी।

महिला कार्यबल भागीदारी

  • कोविड-19 महामारी के बाद 60% महिलाएँ स्व-रोज़गार में थीं, जबकि पहले यह आँकड़ा 50% था।
  • हालाँकि कार्यबल की भागीदारी में इस वृद्धि के साथ-साथ स्व-रोज़गार आय में गिरावट आई, जो महामारी के संकटपूर्ण प्रभाव को दर्शाता है।

अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता

  • अंतर-पीढ़ीगत ऊर्ध्वगामी गतिशीलता ने ऊपर की ओर रुझान दिखाया है, जो सामाजिक-आर्थिक प्रगति का संकेत देता है।
  • हालाँकि सामान्य जातियों की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के श्रमिकों के संदर्भ में यह प्रवृत्ति कमज़ोर रही।
  • वर्ष 2018 में आकस्मिक वेतन वाले कार्य में लगे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के 75.6% पुरुषों के बेटे भी आकस्मिक वेतन वाले कार्य में शामिल थे। इसकी तुलना में वर्ष 2004 में यह आँकड़ा 86.5% था, जो दर्शाता है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित आकस्मिक वेतन वाले श्रमिकों के बेटेअन्य प्रकार के रोज़गार, विशेष रूप से अनौपचारिक नियमित वेतन वाले कार्य में शामिल हो गए हैं।

जाति आधारित कार्यबल भागीदारी

  • पिछले कुछ वर्षों में जाति के अनुसार कार्यबल भागीदारी में बदलाव आया है।
  • आकस्मिक वेतन वाले कार्य में अनुसूचित जाति के श्रमिकों की हिस्सेदारी काफी कम हो गई है, लेकिन सामान्य जाति वर्ग में यह कमी अधिक स्पष्ट है।
  • उदाहरण के लिये वर्ष 2021 में सामान्य जाति के 13% श्रमिकों की तुलना में अनुसूचित जाति के 40% श्रमिक आकस्मिक रोज़गार में शामिल थे।
  • इसके अलावा सामान्य जाति के 32% श्रमिकों के विपरीत लगभग अनुसूचित जाति के 22% श्रमिक नियमित वेतनभोगी कर्मचारी थे।

Login

error: Content is protected !!