रवि. मई 19th, 2024

यूनाइटेड किंगडम के दवा नियामक ने सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया के लिए दुनिया के पहले जीन थेरेपी उपचार को मंजूरी दे दी है ।मेडिसिन्स एंड हेल्थकेयर रेगुलेटरी एजेंसी ने कहा कि उसने 12 साल और उससे अधिक उम्र के सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों के लिए कैसगेवी को मंजूरी दे दी है।

कैसगेवी थेरेपी कैसे कार्य करती है

  • सिकल सेल रोग एवं थैलेसीमिया दोनों लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन (Hb) प्रोटीन के जीन में त्रुटियों के कारण होते हैं, जो अंगों और ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाते हैं।
  • थेरेपी में रोगी की स्वयं की रक्त स्टेम कोशिकाओं का उपयोग किया जाता है, जिन्हें CRISPR-Cas9 का उपयोग करके सटीक रूप से संपादित किया जाता है।
  • BCL11A नामक जीन, जो भ्रूण से वयस्क हीमोग्लोबिन में बदलने के लिये महत्त्वपूर्ण है, साथ ही यह थेरेपी द्वारा लक्षित भी है।
  • भ्रूण का हीमोग्लोबिन, जो जन्म के समय हर किसी में स्वाभाविक रूप से मौजूद होता है, में वयस्क हीमोग्लोबिन जैसी असामान्यताएँ नहीं होती हैं।
  • थेरेपी भ्रूण के हीमोग्लोबिन का अधिक उत्पादन शुरू करने के लिये शरीर के अपने तंत्र का उपयोग करती है, जिससे दोनों स्थितियों के लक्षण कम हो जाते हैं।
  • कैसगेवी में एक ही उपचार शामिल होता है जिसमें रक्त स्टेम कोशिकाओं को एफेरेसिस के माध्यम से निकाला जाता है और फिर रोगी में दोबारा प्रेषित करने से पूर्व लगभग छह महीने तक संपादित किया जाता है।
  • एफेरेसिस एक चिकित्सा तकनीक है जिसमें किसी व्यक्ति के रक्त को एक उपकरण के माध्यम से पारित किया जाता है जो एक विशेष घटक को अलग करता है तथा शेष को परिसंचरण में वापस कर देता है।

सिकल सेल रोग और थैलेसीमिया

सिकल सेल रोग

  • सिकल सेल रोग एक आनुवांशिक रक्त रोग है जिसमे हीमोग्लोबिन में विसंगति उत्पन्न हो जाती है, हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जो ऑक्सीजन का परिवहन करता है।
  • इसके कारण लाल रक्त कोशिकाएँ अर्द्धचंद्राकार आकार धारण कर लेती हैं, जिससे वाहिकाओं के माध्यम से उनकी गति बाधित होती है, जिससे गंभीर दर्द, संक्रमण, एनीमिया और स्ट्रोक जैसी संभावित जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • केवल भारत में अनुमानतः प्रतिवर्ष 30,000-40,000 बच्चे सिकल सेल रोग के साथ जन्म लेते हैं।
  • इसमें विभिन्न प्रकार शामिल हैं, जिसमें से प्रत्येक माता-पिता से विरासत में मिले जीन पर निर्भर करता है, जो असामान्य हीमोग्लोबिन की एन्कोडिंग करते हैं। SCD के सबसे प्रचलित रूपों में शामिल हैं:
  • HbSS (सिकल सेल एनीमिया): व्यक्तियों को दो “S” जीन विरासत में मिलते हैं, प्रत्येक माता-पिता से एक, जिसके परिणामस्वरूप असामान्य हीमोग्लोबिन “S” होता है।
  • यह प्रकार प्राय: कठोर अर्द्धचंद्राकार लाल रक्त कोशिकाओं की विशेषता वाले गंभीर लक्षणों की ओर ले जाता है।
  • HbSC: माता-पिता में से एक से “S” जीन और दूसरे से एक अलग असामान्य हीमोग्लोबिन, “C” विरासत में मिलने से यह सिकल सेल रोग का कम प्रभावी प्रकार होता है।
  • HbS बीटा थैलेसीमिया: यह रूप एक माता-पिता से “S” जीन और दूसरे से बीटा थैलेसीमिया जीन विरासत में मिलने से उत्पन्न होता है।
  • गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि बीटा थैलेसीमिया “शून्य” (HbS बीटा0) है या “प्लस” (HbS बीटा+), पहले वाले में प्राय: अधिक गंभीर लक्षण प्रस्तुत होते है और बाद वाले में कम गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं।

थैलेसीमिया

  • सिकल सेल रोग के समान थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्तियों को कम हीमोग्लोबिन के स्तर के कारण गंभीर एनीमिया का अनुभव होता है, जिससे लौह संचय को प्रबंधित करने के लिये आजीवन रक्ताधान और केलेशन थेरेपी की आवश्यकता होती है।
  • प्रमुख लक्षणों में थकान, पीलिया, सांस की तकलीफ, विकास में रुकावट, चेहरे की हड्डी की विकृति (गंभीर मामलों में) शामिल हैं।

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