रवि. मई 12th, 2024

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भारत में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (NT, SNT और DNT) की चिंताओं को दूर करने के लिये इदाते आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को क्रियान्वित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।NHRC ने सरकार से आभ्यासिक अपराधी अधिनियम, 1952 (Habitual Offenders Act, 1952) को निरस्त करने या अधिनियम के तहत अनिवार्य नोडल अधिकारियों के साथ गैर-अधिसूचित जनजाति समुदाय से एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का आग्रह किया।इसके अतिरिक्त, इसने SC/ST/OBC श्रेणियों से DNT/NT/SNT को बाहर करने और उनके लिये अनुरूप नीतियाँ बनाने की सिफारिश की।

इदाते आयोग (Idate Commission) की प्रमुख सिफ़ारिशें

  • इसकी स्थापना वर्ष 2014 में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (DNT) की एक राज्यव्यापी सूची संकलित करने के लिये भीकू रामजी इदाते के नेतृत्व में की गई थी।
  • एक अन्य आदेश अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों से बाहर रखे गए लोगों की पहचान और उनकी भलाई के लिये कल्याणकारी उपायों की सिफारिश करना था।

सिफारिशें

  • SC/ST/OBC सूची में चिह्नित नहीं किये गए व्यक्तियों को OBC श्रेणी में निर्दिष्ट किया जाए।
  • अत्याचारों को रोकने और समुदाय के सदस्यों के बीच सुरक्षा की भावना को बहाल करने के लिये अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में तीसरी अनुसूची को शामिल करके वैधानिक तथा संवैधानिक सुरक्षा उपायों को बढ़ाना।
  • DNT, SNT और NT के लिये कानूनी स्थिति वाले एक स्थायी आयोग का गठन किया जाए।
  • महत्त्वपूर्ण आबादी वाले राज्यों में इन समुदायों के कल्याण के लिये एक अलग विभाग बनाए जाएँ।
  • DNT परिवारों की अनुमानित संख्या और वितरण निर्धारित करने के लिये उनका गहन सर्वेक्षण किया जाए।

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ

  • इन्हें ‘विमुक्त जाति’ के नाम से भी जाना जाता है। ये समुदाय सबसे अधिक असुरक्षित और वंचित हैं।
  • ब्रिटिश शासन के दौरान आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 जैसे कानूनों के तहत गैर-अधिसूचित समुदायों को ‘जन्मजात अपराधी’ के रूप में अधिसूचित/अंकित किया गया था।
  • उन्हें वर्ष 1952 में भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर गैर-अधिसूचित कर दिया गया था।
  • इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें गैर-अधिसूचित के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी घुमंतू थे।
  • घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बदले एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं।
  • ऐतिहासिक रूप से, घुमंतू जनजातियों और गैर-अधिसूचित जनजातियों को कभी भी निजी भूमि या गृह स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
  • अधिकांश DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं, कुछ DNT अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं।

NT, SNT और DNT समुदायों के लिये प्रमुख समितियाँ/आयोग

  • संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 का गठन किया गया।

नंतशयनम आयंगर समिति, 1949

  • इस समिति की अनुशंसा के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त कर दिया गया।
  • काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला ओबीसी आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।

बी.पी. मंडल आयोग, 1980

  • आयोग ने NT, SNT और DNT समुदायों के मुद्दे से संबंधित कुछ सिफारिशें भी कीं।
  • राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग’(National Commission to Review the Working of the Constitution – NCRWC), 2002 ने माना कि DNT को गलत तरीके से अपराध प्रवण माना गया है और उनके साथ गलत व्यवहार किया गया है। साथ ही कानून और व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण किया जाता है।

वितरण

  • भारत में, लगभग 10% आबादी NT, SNT और DNT समुदायों से बनी है।
  • जहाँ विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, वहीं घुमंतू जनजातियों की जनसंख्या में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी खानाबदोश आबादी है।

घुमंतू जनजातियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं

  • बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है।
  • स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत तथा अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
  • संदिग्ध (Ambiguous) जाति वर्गीकरण: इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

  • यह जीवन, स्वतंत्रता, समानता, व्यक्तियों की गरिमा से संबंधित अधिकारों तथा भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों एवं भारतीय न्यायालयों द्वारा कार्यान्वन करने योग्य अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • इसका गठन मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत 12 अक्तूबर 1993 को किया गया।
  • मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 और मानव अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा संशोधित।
  • इसका गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप हुआ जिन्हें मानवाधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिये अंगीकृत किया गया।
  • आयोग में एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य तथा सात मानद सदस्य शामिल होते हैं।
  • अध्यक्ष भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश अथवा सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।
  • आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति छह सदस्यीय समिति की अनुशंसाओं पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति, संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं।
  • अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये अथवा 70 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।
  • इसके पास न्यायिक कार्यवाही सहित सिविल न्यायालय की शक्तियाँ होती हैं।
  • मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधिकारियों अथवा अन्वेषण अभिकरणों की सेवाओं का उपयोग करने का अधिकार।
  • मामलों के घटित होने के एक वर्ष के भीतर उनकी जाँच कर सकता है।
  • इसके कार्य मुख्यतः अनुशंसात्मक प्रकृति के होते हैं।

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