रवि. मई 19th, 2024

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने विभिन्न राज्य विशेषज्ञ समिति (State Expert Committee- SEC) की रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर अपलोड की है।यह अंतरिम आदेश एक जनहित याचिका का प्रत्युत्तर था जिसमें वन (संरक्षण) अधिनियम संशोधन (FCAA), 2023 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।दायर की गई याचिका अवर्गीकृत वनों की स्थिति का ज्ञात न होने अथवा उनकी पहचान की पुष्टि से संबंधित प्रश्नों पर आधारित थी, जिनकी पहचान राज्य SEC रिपोर्टों द्वारा की जानी थी।

SEC की रिपोर्ट द्वारा ज्ञात तथ्य

प्रमुख बिंदु

  • किसी भी राज्य ने अवर्गीकृत वनों की पहचान, स्थिति और स्थान पर सत्यापन योग्य डेटा प्रदान नहीं किया।
  • सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (गोवा, हरियाणा, जम्मू व कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल) ने SEC का गठन भी नहीं किया।
  • 23 में से केवल 17 राज्यों ने उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • अधिकांश राज्य क्षेत्रीय स्तर पर या भौतिक सर्वेक्षण किये बिना वन और राजस्व विभागों के मौजूदा आंकड़ों पर विश्वास करते हैं तथा अधिकांश में अवर्गीकृत वन भूमि का सीमांकन नहीं किया गया है।
  • इन वनों की भौगोलिक स्थिति और वर्गीकरण पर स्पष्टता का अभाव है।
  • कई राज्यों की रिपोर्टों में भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FSI) के आँकड़ों के साथ महत्त्वपूर्ण विसंगतियाँ की गईं।
  • उदाहरण के लिये, गुजरात की राज्य विशेषज्ञ समिति रिपोर्ट में 192.24 वर्ग किमी के अवर्गीकृत वनों का उल्लेख किया, जबकि FSI ने 4,577 वर्ग किमी. की सूचना दी।
  • इसी प्रकार असम, जहाँ SEC रिपोर्ट में अवर्गीकृत वन क्षेत्र की सीमा 5,893.99 वर्ग किमी. बताई गई है, जबकि FSI ने 8,532 वर्ग किमी बताई है।
  • केवल नौ राज्यों ने अवर्गीकृत वनों की सूचना प्रदान की, जबकि अन्य राज्यों ने विभिन्न प्रकार के वन क्षेत्रों पर स्पष्ट डेटा साझा नहीं किया है।
  • कुछ राज्यों ने नष्ट हुये, साफ किये गये तथा अतिक्रमित वनों का विवरण दिया है, परंतु भिन्न-भिन्न रिपोर्टों में यह विवरण भिन्न-भिन्न है।
  • उपलब्ध रिकॉर्ड से डेटा निकालने और वनों की भौगोलिक स्थिति के संबंध में स्पष्टता की कमी है, तथा इनके पास कोई टोपो शीट पहचान मानचित्र (किसी क्षेत्र की प्राकृतिक और मानव निर्मित विशेषताओं को दर्शाने वाला मानचित्र) उपलब्ध नहीं है।

परिणाम

  • SEC रिपोर्ट की शीघ्र एवं अपूर्ण प्रकृति के कारण अवर्गीकृत वनों का बड़े स्तर पर विनाश होने की संभावना है।
  • उदाहरण के लिये, केरल के SEC में मुन्नार में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, पल्लीवासल अनारक्षित क्षेत्र सम्मिलित नहीं था, जो 2018 की बाढ़ के कारण नष्ट हो गया था।
  • यह रिपोर्ट, मुन्नार के एक प्रसिद्द हाथी गलियारे, चिन्नाकनाल का उल्लेख करने में भी असफल रही, जो अब अति वाणिज्यिक पर्यटन के कारण समाप्त हो गया है, जिससे मानव-हाथी संघर्ष के कई उदाहरण सामने आए हैं।
  • इन वनों की व्यापक रूप से पहचान करने और उनकी सुरक्षा करने में विफलता 1996 के गोदावर्मन फैसले तथा भारतीय वन नीति के मैदानी इलाकों में 33.3% एवं पहाड़ियों में 66.6% वन क्षेत्र प्राप्त करने के लक्ष्य को कमज़ोर करती है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण की 2021 की रिपोर्ट देश में कुल मिलाकर 21% वन क्षेत्र (जिस पर विशेषज्ञों ने विवाद किया है) और पहाड़ियों में 40% दर्शाती है। सर्वेक्षण की समीक्षा के अंतिम चक्र में लगभग 900 वर्ग किमी. का नुकसान हुआ है।

अवर्गीकृत वन

  • अवर्गीकृत वन, जिन्हें ‘मानित वन’ के रूप में भी जाना जाता है, को टी.एन.गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ एवं अन्य, (1996) ऐतिहासिक मामले के अंतर्गत कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।
  • इनमें विभिन्न प्रकार की भूमि सम्मिलित है, जिनमें वन, राजस्व, रेलवे, सरकारी संस्थाएँ, सामुदायिक वन या निजी स्वामित्व वाली भूमि शामिल है।
  • इनके विविध स्वामित्व के बावजूद, इन वनों को आधिकारिक तौर पर भारतीय वन अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं किया गया है, हालाँकि, इस क्षेत्र में वन प्रकार की वनस्पति मौजूद है।
  • राज्य विशेषज्ञ समितियों (SECs) को देश भर में अवर्गीकृत वनों का निर्धारण करने का कार्य सौंपा गया था।
  • इस निर्धारण में वन कार्य योजनाओं तथा राजस्व भूमि रिकॉर्ड जैसे उपलब्ध आँकड़ों की जाँच करना, साथ ही वन जैसी विशेषताओं वाले भूमि क्षेत्र की भौतिक पहचान करना शमिल था।

वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023, जो दिसंबर, 2023 में लागू हुआ, ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (FCA) में महत्त्वपूर्ण

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