सोम. नवम्बर 25th, 2024

डोक्सुरी उष्णकटिबंधीय चक्रवात पश्चिमी प्रशांत महासागर में फिलीपींस के पूर्व में विकसित हुआ है। इसकी गति 54 किमी/घंटा -231 किमी/घंटा है।इससे दक्षिणी चीन में भारी बारिश और तूफान के कारण लगभग दस लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।दक्षिणी फ़ुज़ियान प्रांत में भूस्खलन के कारण लगभग 400,000 लोग प्रभावित हुए हैं। जापानी मौसम विज्ञान एजेंसी ने आधिकारिक तौर पर इस तूफान को डोक्सुरी नाम दिया, जो एक कोरियाई शब्द है। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे- इसे टाइफून (पश्चिमी प्रशांत), तूफान (उत्तरी अटलांटिक और मध्य और पूर्वी उत्तरी प्रशांत), या चक्रवात (दक्षिण प्रशांत और हिंद महासागर) कहा जा सकता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात

  • कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य उत्पन्न वृत्ताकार समदाब रेखाओं से घिरे हुए निम्न वायुदाब के केंद्र को उष्णकटिबंधीय चक्रवात के नाम से जाना जाता है।
  • इनके आकार में पर्याप्त अंतर देखने को मिलता है, क्योंकि इनका व्यास 50 किलोमीटर से लेकर 300 किलोमीटर तक होता है।
  • चक्रवात के केंद्र में वायुदाब 650 मिलीबार से भी कम होता है। समदाब रेखाओं के सघन होने के साथ वायु की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक हो जाती है।
  • सामान्यतः चक्रवात, व्यापारिक हवाओं (सन्मार्गी पवनों) के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में अग्रसर होते हैं।
  • वायु की गति के आधार पर विश्व मौसम संगठन (WMO) ने समदाब रेखाओं से घिरे हुए निम्न वायुदाब के केंद्र को उष्णकटिबंधीय अवदाब (16 मी./से. से कम) उष्णकटिबंधीय तूफान (16 मी./से. से 32 मी./से. तक) और उष्णकटिबंधीय चक्रवात (32 मी./से. से अधिक गति) क रूप में वर्गीकृत किया है।
  • ये ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं, जब समुद्र की सतह का तापमान कम से कम 27°C होता है।
  • इनके उत्पन्न होने के लिये उच्च मान वाले कोरिऑलिस बल का होना आवश्यक है।
  • ये भूमध्य रेखा के समीप उत्पन्न नहीं होता है बल्कि ग्रीष्म ऋतु के समय जब अंतरा- उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter-Tropical Convergence Zone) का विस्थापन उष्णकटिबंधीय महासागर की सतह पर होता है, तब चक्रवात की उत्पत्ति के लिये उपयुक्त क्षेत्रों का विकास हो जाता है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति ग्रीष्म ऋतु के समय बैरोट्रॉपिक वायुमंडलीय दशा में जेट स्ट्रीम की अनुपस्थिति में होती है।
  • चक्रवात की आँख (Eye), चक्रवात के केंद्र को प्रदर्शित करती है, जहाँ तापमान अधिकतम तथा वायुदाब निम्नतम होता है तथा आकाश लगभग मेघरहित होता है।
  • चक्षुभित्ति (Eye Wall) उच्चतम पवन वेग वाला एक ऐसा क्षेत्र होता है, जहाँ विद्युत-गर्जन के साथ तीव्र गति से अधिक मात्रा में वर्षा होती है।
  • वर्षण, सर्पिल पट्टी (Rain Spiral Band) चक्षुभित्ति के चारों तरफ फैली होती है। इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम मात्रा में वर्षा होती है।
  • वलयाकार क्षेत्र (Annular Zone) में सापेक्षिक आर्द्रता अपेक्षाकृत कम होने के साथ वर्षा के लिये प्रतिकूल स्थिति बनी रहती है।
  • बाह्य संवहनीय मेखला (Outer Convective Belt) में क्षेत्रीय प्रभाव के कारण विद्युत-गर्जन के साथ तीव्र गति से संवहनीय वर्षा होती है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात

  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली ठंडी एवं उष्णार्द्र वायु के अभिसरण से होता है। इसलिये इसे ‘वाताग्री चक्रवात’ कहते हैं। इनका क्षेत्र 35-65° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्धों में पाया जाता है।
  • शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात आकार में गोलाकार, अर्द्धगोलाकार या अंडाकार होता है, जिसके मध्य में न्यून दाब होता है। कभी-कभी इसका आकार ‘V’ अक्षर के समान हो जाता है।
  • परिधि से चक्रवात के केंद्र की ओर चलने वाली हवाएँ सीधे केंद्र में न पहुँचकर कोरिऑलिस बल और घर्षण बल के कारण समदाब रेखाओं को 20° से 40° के कोण पर काटती हैं।
  • सामान्य तौर पर ये चक्रवात पश्चिम से पूर्व दिशा में चलते हैं परंतु इनका कोई निश्चित मार्ग नहीं होता है।
  • भूमध्य सागर पर उत्पन्न होने वाले शीतोष्ण चक्रवातों में कुछ चक्रवात पाकिस्तान से होते हुए उत्तर पश्चिम भारत तक पहुँचते हैं। यहाँ पर इनको पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) कहते हैं।
  • पश्चिम दिशा से आने वाले चक्रवात के कारण वायु का वेग मंद पड़ जाता है। इसके चलते वायुदाब में कमी के साथ तापमान एव विशिष्ट आर्द्रता में वृद्धि होती है। साथ ही, वायु की दिशा, पूर्व से बदलकर दक्षिण-पूर्वी होने लगती है।
  • उष्ण वाताग्र के आगमन पर वर्षा मंद गति से विस्तृत क्षेत्र में लंबी अवधि तक होती है।
  • उष्ण वाताग्र के अग्रसर होने पर उष्ण वृत्तांश (Warm Sector) का आगमन होता है। वायु की दिशा में परिवर्तन के साथ तापमान एवं विशिष्ट आर्द्रता में वृद्धि होती है। साथ ही, आकाश बादलों से रहित होकर साफ हो जाता है।
  • उष्ण क्षेत्रक के गुजर जाने पर शीत वाताग्र के आगमन के साथ न केवल तापमान में कमी आती है बल्कि पुनः मेघाच्छादन प्रारंभ हो जाता है। शीत वाताग्र पर सामान्यतः तीव्र गति से कम समय के लिये सीमित क्षेत्र में विद्युत-गर्जन के साथ वर्षा होती है।
  • शीत वाताग्र के गुजरने पर शीघ्र ही शीत क्षेत्रक का आगमन होता है। तापमान में तेजी से कमी आने के साथ न केवल वायुदाब में वृद्धि होती है बल्कि आकाश मेघरहित होकर स्वच्छ हो जाता है।
  • शीत वाताग्र के उष्ण वाताग्र से मिलने के कारण संरोधी वाताग्र का विकास होने पर अंततः वाताग्र का क्षय हो जाता है।

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