झारखंड उच्च न्यायालय ने झारखंड राज्य निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों का नियोजन अधिनियम, 2021 में स्थानीय उम्मीदवारों के रोज़गार के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है,जिसमें 40,000 रुपए तक के वेतन वाले निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य था।यह कानून स्थानीय लोगों के लिये रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये लाया गया था, लेकिन संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने के कारण इसकी आलोचना की गई।
निजी क्षेत्र में नियोजन अधिनियम पर झारखंड हाईकोर्ट का फैसला
- लघु उद्योगों द्वारा याचिका: झारखंड लघु उद्योग संघ ने स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण की गारंटी देने वाले कानून को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि यह समानता के सिद्धांत और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। JSSIA का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि यह अधिनियम स्थानीय और गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के बीच अनुचित रूप से विभाजन उत्पन्न करता है, तथा नियोक्ताओं की स्वतंत्र रूप से नियुक्ति करने की क्षमता को सीमित करता है।याचिका में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा हरियाणा राज्य स्थानीय अभ्यर्थी रोज़गार अधिनियम, 2020 को रद्द करने का हवाला दिया गया, जिसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया था।
- झारखंड हाईकोर्ट का फैसला: झारखंड हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र की कंपनी में स्थानीय उम्मीदवारों के झारखंड राज्य नियोजन अधिनियम, 2021 के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।न्यायालय ने JSSIA की इस दलील को सही पाया कि यह कानून गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करके अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही निजी कंपनियों के नियुक्ति विकल्पों को प्रतिबंधित करके अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के अधिवास आधारित आरक्षण कानून
- आंध्र प्रदेश: उद्योगों/कारखानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये आंध्र प्रदेश रोजगार अधिनियम, 2019 पारित किया गया (स्थानीय निवासियों के लिए निजी उद्योगों में 75% नौकरियाँ आरक्षित हैं)।आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून “असंवैधानिक हो सकता है” लेकिन अभी तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं दिया गया है।
- कर्नाटक: उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये कर्नाटक राज्य रोज़गार विधेयक, 2024 को मंजूरी दी गई, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में प्रबंधन भूमिकाओं में स्थानीय लोगों के लिये 50% और गैर-प्रबंधन पदों पर 75% आरक्षण का प्रावधान है। इस विधेयक पर काफी विवाद बना हुआ है तथा श्रमिकों की गतिशीलता और व्यवसाय संचालन पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
राज्य निजी क्षेत्र के रोज़गार में निवास पर आधारित आरक्षण क्यों लागू करते हैं
- स्थानीय लोगों में उच्च बेरोजगारी: कई राज्यों में स्थानीय लोगों, को विशेष रूप से निम्न और अर्द्ध-कुशल पदों पर, बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय नियोजन कानूनों को निवासियों को रोजगार के अवसरों तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में देखा जाता है।
- प्रवासी श्रमिक के कारण रोज़गार में कमी: यह धारणा बढ़ती जा रही है कि अन्य राज्यों से आए प्रवासी श्रमिक स्थानीय लोगों के लिये निर्धारित रोज़गार छीन रहे हैं। इससे विशेष रूप से अधिक औद्योगिक और आर्थिक रूप से उन्नत क्षेत्रों में असंतोष बढ़ता है।
- राज्य रोज़गार प्राथमिकता: निजी क्षेत्र, एक प्रमुख रोज़गार सृजनकर्त्ता के रूप में, स्थानीय लोगों को रोज़गार के लिये प्राथमिकता देकर सामाजिक न्याय का समर्थन कर सकता है, खासकर तब जब इसे कर रियायतों और सस्ते ऋणों जैसे सरकारी प्रोत्साहनों का लाभ मिलता है, जो सकारात्मक नीतियों को उचित ठहराता है।
- राजनीतिक दबाव और वोट बैंक: राज्य सरकारों को स्थानीय आबादी से अपने हितों को प्राथमिकता देने के लिये दबाव का सामना करना पड़ता है। आरक्षण कानून लागू करना मतदाताओं की भावनाओं को खुश करने और राजनीतिक समर्थन हासिल करने का एक तरीका हो सकता है।
- कौशल बेमेल और शिक्षा स्तर: स्थानीय लोगों में उच्च वेतन वाली नौकरियों के लिये कौशल की कमी हो सकती है, जिससे उनके अवसर सीमित हो सकते हैं। इस कौशल असंतुलन को दूर करने तथा कम शिक्षित आबादी को अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये कम वेतन वाली नौकरियों के लिये कोटा शुरू किया गया है।
- प्रतिभा को बनाए रखना: यह सुनिश्चित करके कि स्थानीय निवासियों को नौकरियों तक पहुँच प्राप्त हो, राज्य क्षेत्र के भीतर प्रतिभा को बनाए रख सकते हैं। यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है जहाँ प्रतिभा पलायन हो रहा है, जहाँ कुशल कर्मचारी बेहतर अवसरों के लिये कहीं और चले जाते हैं।
निवास पर आधारित आरक्षण
- निवास पर आधारित आरक्षण: यह प्रणाली व्यक्ति के निवास स्थान के आधार पर लाभ आरक्षित करती है। राज्य शिक्षा और सार्वजनिक नौकरियों जैसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देते हुए निवासियों के लिये कुछ सीटें आवंटित कर सकता है।”जन्म स्थान” और “निवास” अलग-अलग अवधारणाएँ हैं, जिसमें निवास का तात्पर्य किसी व्यक्ति के जन्मस्थान के बजाय उसके निवास स्थान से है।
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 16(3), संसद द्वारा निर्धारित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के भीतर सरकारी नियुक्तियों के लिये निवास-आधारित मानदंड की अनुमति देता है।अनुच्छेद 371(d) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में स्थानीय कैडर की स्थापना करता है, जिससे सरकारी नौकरियों में स्थानीय प्रतिनिधित्व और अवसर सुनिश्चित होते हैं।अनुच्छेद 15 केवल जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है, निवास के आधार पर नहीं।