शुक्र. मई 17th, 2024

भारत में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया गया। इस अवसर पर देश में महिलाओं, विशेषकर गृहिणियों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि, जो कि एक गंभीर समस्या है, पर चिंता व्यक्त की गई।आत्महत्या, जिसमें सबसे अधिक संख्या गृहिणियों की होती है, के मुद्दे को अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता रहा है। हालिया वर्षों में इन घटनाओं की संख्या में हुई वृद्धि चिंताजनक है।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस

  • विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2003 में WHO और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी।
  • यह आत्महत्या संबंधी पूर्वाग्रहों को कम करने और संगठनों, सरकार तथा जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के साथ आत्महत्या को रोकने का संदेश देता है।
  • वर्ष 2021- 2023 तक के लिये विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की थीम “कार्रवाई के माध्यम से उम्मीद बढ़ाना” (Creating hope through action) है। इस थीम का उद्देश्य सभी में आत्मविश्वास और प्रबुद्धता की भावना को प्रेरित करना है।

भारत में गृहिणियों के समक्ष चुनौतियाँ

हालिया आँकड़े

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में गृहिणियों का अनुपात 51.5% था।
  • इस संदर्भ में केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक सूची में शीर्ष पर हैं।
  • आत्महत्या की कुल घटनाओं में लगभग 15% गृहिणियों से संबंधित हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करती है।

चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ

  • आने-जाने पर प्रतिबंध: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाओं का घर से बाहर कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध होता है।सामाजिक मानदंड और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण अक्सर वे अकेले यात्रा करने या फिर अपने घरों से दूर जाने से परहेज करती हैं।ये परिस्थितियाँ उनमें अलगाव और असहायता की भावनाओं को जन्म दे सकती हैं।
  • वित्तीय स्वायत्तता की कमी: अपने जीवनसाथी या परिवार पर आर्थिक निर्भरता महिलाओं के प्रति विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति उन्हें संवेदनशील बना सकती है। वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, वैवाहिक नियंत्रण; भारतीय समाज में पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ और पितृसत्तात्मक मानदंडों के परिणामस्वरूप, विशेषकर विवाह के संदर्भ में महिलाओं को बहुत कम स्वतंत्रता प्राप्त है।‘महिलाओं को अपने पति और ससुराल वालों की इच्छाओं के अनुरूप होना चाहिये’ ऐसी अपेक्षा विवशता की भावनाओं को जन्म दे सकती है।
  • शारीरिक, यौन और भावनात्मक दुर्व्यवहार: शारीरिक, यौन एवं भावनात्मक शोषण सहित घरेलू हिंसा भारत में एक गंभीर समस्या है। कई महिलाएँ कलंक, प्रतिशोध के डर या समर्थन के अभाव के कारण इस प्रकार के दुर्व्यवहार को चुपचाप सहन करती रहती हैं।मदद मांगने की इच्छा न होना: मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने और मदद मांगने को लेकर भारत में सामाजिक पूर्वाग्रह व्यापक है। कई महिलाएँ बाहरी सहायता लेने या अपने संघर्षों के बारे में दूसरों को बताने में झिझकती हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सहायता तक पहुँच में कमी देखी जाती है।

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