शनि. मई 4th, 2024
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन पर भारत अगले सात वर्षों में कुल 57 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगा।
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क को बताया है कि भारत ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान जलवायु अनुकूलन पर अपनी जीडीपी का 5.5% से अधिक, यानी लगभग 13 लाख 35 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
  • भारत ने यह भी बताया है कि इस उद्देश्य के लिए अगले सात वर्षों में लगभग 57 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे ताकि जलवायु परिवर्तन की स्थिति को और अधिक प्रतिकूल होने से रोका जा सके।
  • 9 दिसंबर को, इसने भारत का नवीनतम सबमिशन दाखिल किया जिसमें अनुकूलन आवश्यकताओं का पहला मूल्यांकन शामिल है।
  • जलवायु-प्रेरित क्षति इस राशि को 15.5 लाख करोड़ रुपये तक और बढ़ा सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए जलवायु अनुकूलन के प्रयास किये जाते हैं।
  • इसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है।
  • इसके लिए किये जा रहे प्रयासों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर को देखते हुए दीवाल खड़ी करना, तापमान से अप्रभावित रहने वाली फसलें विकसित करना, तापमान को नियंत्रित करने की योजना बनाना और आपदाओं से मुकाबला कर सकने वाले बुनियादी ढांचे तैयार करना शामिल हैं।
  • वैश्विक जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क के अंतर्गत हर देश अपने यहां हो रहे ग्रीन गैस उत्सर्जन का वार्षिक आकलन कर संयुक्त राष्ट्र को जानकारी उपलब्ध कराता है।
  • 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल तंत्र के तहत इसे राष्ट्रीय संचार (NATCOMs) कहा जाता था।
  • 9 दिसंबर को, भारत ने अपना तीसरा NATCOM प्रस्तुत किया जो क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अपने दायित्वों को पूरा करेगा।
  • 11 दिसंबर 1997 को क्योटो, जापान में क्योटो प्रोटोकॉल अपनाया गया और 16 फरवरी 2005 को लागू हुआ।
  • क्योटो प्रोटोकॉल ने वातावरण में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को “जलवायु प्रणाली के साथ खतरनाक मानवजनित हस्तक्षेप को रोकने वाले स्तर तक” कम करके ग्लोबल वार्मिंग की शुरुआत को कम करने के लिए यूएनएफसीसीसी के उद्देश्य को लागू किया।

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