ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) कुछ रोज़मर्रा की प्रौद्योगिकियों में से एक है जिसने नागरिक, सैन्य, वैज्ञानिक और शहरी क्षेत्रों पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला है, इसने किसी स्थान को लेकर हमारी समझ/ज्ञान को फिर से परिभाषित किया है तथा वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है।
ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम
- वर्ष 1973 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा शुरू किये गए GPS में तीन मुख्य खंड शामिल हैं,
- अंतरिक्ष: अंतरिक्ष खंड का विवरण देते हुए 6 कक्षाओं में 24 उपग्रह वैश्विक कवरेज सुनिश्चित करते हैं, जिससे रिसीवर को एक साथ कम-से-कम चार उपग्रहों (सटीक स्थिति के लिये एक मूलभूत आवश्यकता) से सिग्नल तक पहुँच बनाने/संपर्क साधने की अनुमति मिलती है।
- सभी छह कक्षाएँ पृथ्वी से 20,200 किमी. की ऊँचाई पर स्थित हैं और प्रत्येक कक्षा में हर समय चार उपग्रह होते हैं। प्रत्येक उपग्रह एक ही दिन में दो कक्षाएँ पूरी करता है।
- नियंत्रण: धरातल आधारित स्टेशनों द्वारा प्रबंधित नियंत्रण खंड वर्ष 2020 में प्रकाशित स्टैंडर्ड पोज़िशनिंग सर्विस (SPS) मानकों का पालन करते हुए उपग्रह प्रदर्शन और सिग्नल की सटीकता सुनिश्चित करता है। विश्व भर के प्रमुख स्टेशन इस प्रणाली की विश्वसनीयता का प्रबंधन एवं अनुवीक्षण करते हैं।
- SPS मानक विश्व भर में कहीं भी एप्लीकेशन डेवलपर्स और उपयोगकर्त्ताओं को जीपीएस सिस्टम से होने वाले लाभों के बारे में अवगत कराता है।
- उपयोगकर्त्ता: उपयोगकर्त्ता खंड के अंतर्गत कृषि से लेकर सैन्य संचालन से जुड़े विविध क्षेत्र शामिल हैं, वर्ष 2021 में विश्व भर में GNNS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) डिवाइस की अनुमानित संख्या 6.5 बिलियन थी, जिसके विषय में उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2031 तक यह संख्या बढ़कर 10 बिलियन तक हो सकती है, ये आँकड़े इसके व्यापक प्रभाव को रेखांकित करते हैं।
GPS की कार्यक्षमता
- GPS रिसीवर कुछ आवृत्तियों (50 बिट्स/सेकंड पर L1 और L2 आवृत्तियों) पर उपग्रहों द्वारा प्रदान किये गए रेडियो संकेतों को प्राप्त करता है और उनका आकलन करता है, जो अंतरिक्ष के तीन डायमेंशन एवं समय के एक डायमेंशन में सटीक स्थान निर्धारण में मदद करता है।
सटीकता और संशोधन
- सटीकता में सुधार लाने के लिये त्रुटियों में सुधार किया गया है, जो GPS गणनाओं की सूक्षमता को दर्शाता है।
- परमाणु घड़ियों के उपयोग से उपग्रह GPS के लिये समय की सटीकता को बनाए रखते हैं। ये घड़ियाँ महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि समय के छोटे से भी अंतर से स्थान संबंधी बड़ी त्रुटियाँ हो सकती हैं।
GNSS
- कई देश जीपीएस के साथ-साथ अपने स्वयं के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) संचालित करते हैं। ऐसी प्रणालियाँ वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ (ईयू), भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और यू.के. द्वारा संचालित की जाती हैं।
- इनमें से रूस का GLONASS, ईयू का गैलीलियो और चीन का बाइडू सिस्टम वैश्विक हैं।
- भारत ने 2006 में अपने स्वयं के भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम पर विचार किया, जिसे बाद में ‘नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC)’ नाम दिया गया। इसके अंतरिक्ष क्षेत्र में सात उपग्रह हैं: तीन भूस्थैतिक कक्षाओं में और चार भूतुल्यकाली कक्षाओं में।
- मई 2023 तक उपग्रहों की न्यूनतम संख्या (चार) भूमि-आधारित नेविगेशन की सुविधा प्रदान कर सकती है। मुख्य नियंत्रण सुविधाएँ कर्नाटक के हासन और मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित हैं।
- NavIC उपग्रह रूबिडियम परमाणु घड़ियों का उपयोग करते हैं और L5 और S बैंड में डेटा संचारित करते हैं, साथ ही नए उपग्रह भी L1 बैंड में डेटा संचारित करते हैं।
- भारत जीपीएस-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) प्रणाली भी संचालित करता है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा विकसित एवं स्थापित किया गया था।
- गगन का प्राथमिक उद्देश्य “भारतीय हवाई क्षेत्र में नागरिक उड्डयन अनुप्रयोगों की सुरक्षा” और “जीपीएस के लिये सुधार एवं अखंडता संबंधी संदेश” प्रदान करना है।