शुक्र. मई 17th, 2024

समान नागरिक संहिता (UCC) मसौदा रिपोर्ट को उत्तराखंड मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था और इसे अधिनियमन के लिये विधेयक के रूप में 6 फरवरी 2024 को राज्य विधानसभा में प्रस्तुत किये जाने की संभावना है।UCC मसौदा समिति का नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई ने किया।

UCC उत्तराखंड के सभी निवासियों, चाहे उनका धर्म, जाति या लिंग कुछ भी हो, के लिये सामान्य कानूनों का एक प्रस्तावित सेट है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 162 स्पष्ट करता है कि किसी राज्य की कार्यकारी शक्ति उन मामलों तक विस्तृत है जिनके संबंध में राज्य के विधानमंडल को कानून निर्माण की शक्ति है। सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, समान नागरिक संहिता (UCC) को क्रियान्वित तथा कार्यान्वित करने के लिये एक समिति के गठन को अधिकार क्षेत्र से बाहर के रूप में चुनौती नहीं दी जा सकती है।समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 “विवाह और तलाक” शिशु तथा नाबालिग; दत्तक ग्रहण, वसीयत, निर्वसीयत एवं उत्तराधिकार, संयुक्त परिवार व विभाजन से संबंधित है, सभी मामले जिनके संबंध में न्यायिक कार्यवाही में पक्ष इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले उनके व्यक्तिगत कानून के अधीन थे।इसका अर्थ यह है कि उत्तराखंड राज्य सरकार अपने क्षेत्र के भीतर UCC अधिनियमित कर सकती है।

उत्तराखंड की UCC मसौदा रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • UCC का लक्ष्य संविधान के अनुच्छेद 44 द्वारा निर्देशित, विवाह, तलाक,दत्तक और विरासत पर ध्यान केंद्रित करते हुए, हर धर्म के अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों को बदलना है।
  • संविधान अनुच्छेद 44, राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (DPSP) है। इसमें कहा गया है कि राज्य को संपूर्ण भारत में सभी नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये।
  • यह मसौदा व्यक्तिगत कानूनों का एक एकल सेट होगा जो सभी नागरिकों पर लागू होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
  • समिति द्वारा पेश किये गए कुछ प्रमुख प्रस्तावों में बहुविवाह, हलाल, इद्दत (मुस्लिम विवाह के विघटन के बाद महिलाओं द्वारा की जाने वाली प्रतीक्षा की अनिवार्य अवधि), तीन तलाक एवं बाल विवाह पर प्रतिबंध, लड़कियों के लिये समान उम्र के साथ ही ‘सभी धर्मों में विवाह तथा लिव-इन संबंधों का अनिवार्य पंजीकरण शामिल हैं।
  • UCC के मसौदे का उद्देश्य विरासत तथा विवाह जैसे मामलों में पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार करके लैंगिक समानता पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • इस मसौदे में मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों के तहत प्राप्त मौजूदा 25% हिस्सेदारी के मुकाबले समान संपत्ति हिस्सेदारी का विस्तार करने की भी संभावना है।
  • पुरुषों और महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु एक समान रखी गई है, महिलाओं के लिये 18 वर्ष एवं पुरुषों के लिये 21 वर्ष है।
  • अनुसूचित जनजाति (ST) को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है। राज्य में आदिवासी आबादी जो लगभग 3% है, उन्हें दिये गए विशेष दर्जे के कारण UCC के खिलाफ अपना असंतोष व्यक्त कर रही थी।

उत्तराखंड की UCC मसौदा रिपोर्ट के संबंध में क्या चिंताएं

  • UCC मसौदा रिपोर्ट भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता तथा वैयक्तिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है।
  • कुछ आलोचकों का तर्क है कि UCC मसौदा रिपोर्ट भारत की विविधता तथा बहुलवाद के अनुरूप नहीं है एवं एक समान संहिता कार्यान्वित करने का प्रावधान है जो विभिन्न समुदायों के रीति-रिवाज़ों और प्रथाओं के अनुरूप नहीं हो सकती है।
  • यूसीसी ड्राफ्ट रिपोर्ट से उत्तराखंड के ST के अधिकारों और हितों पर असर पड़ सकता है।
  • कुछ कार्यकर्त्ताओं का दावा है कि UCC मसौदा रिपोर्ट ST के मुद्दों और आकांक्षाओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करती है तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान एवं स्वायत्तता को नष्ट कर सकती है।

समान नागरिक संहिता

  • समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व (Directive Principles of State Policy- DPSP) का अंग है।
  • हालाँकि संविधान निर्माताओं ने UCC को लागू करने का कार्य सरकार के विवेक पर छोड़ दिया था।
  • गोवा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। वर्ष 1961 में पुर्तगाली शासन से स्वतंत्रता के बाद गोवा ने अपने सामान्य पारिवारिक कानून को बनाये रखा, जिसे गोवा नागरिक संहिता (Goa Civil Code) के रूप में जाना जाता है।

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