शुक्र. मई 17th, 2024

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) ने भारत का ‘भाषा एटलस’ बनाने के लिए देश भर में एक भाषाई सर्वेक्षण करने का प्रस्ताव रखा है।IGNCA केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है।भारत का पहला और सबसे विस्तृत भाषाई सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा किया गया था, जो वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ था।भारत, विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने का प्रयास कर रहा है।एक महत्वपूर्ण है प्रश्न उन भाषाओं की वास्तविक संख्या पर बना हुआ है, जिन्हें देश में क्रियात्मक माना जा सकता है।भारत का भाषा एटलस बनाने के लिए एक व्यापक भाषाई सर्वेक्षण करने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत भाषाई रूप से कितना विविधतापूर्ण है

ऐतिहासिक जनगणना रिकॉर्ड

  • भारत का पहला और सबसे विस्तृत भाषाई सर्वेक्षण (LSI) सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा किया गया था जो वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ था।
  • वर्ष 1961 की भारत की जनगणना में भारत में बोली जाने वाली 1,554 भाषाएँ दर्ज की गईं।
  • वर्ष 1961 की जनगणना भाषाई आँकड़ों के संबंध में सर्वाधिक विस्तृत थी। इस जनगणना में प्रत्येक बोली जाने वाली भाषा को रिकॉर्ड में शामिल किया गया था।
  • वर्ष 1971 के बाद से, 10,000 से भी कम व्यक्तियों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को भारतीय जनगणना से हटा दिया गया, जिससे 1.2 मिलियन लोगों की मूल भाषाएँ दर्ज नहीं की गई हैं।
  • यह बहिष्कार जनजातीय समुदायों पर असंगत रूप से प्रभाव डालता है, जिनकी भाषाएँ प्राय:आधिकारिक रिकॉर्ड से अनुपस्थित होती हैं।
  • भारत अब आधिकारिक तौर पर भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 भाषाओं को मान्यता देता है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों स्पष्ट हैं कि 97% आबादी इन आधिकारिक मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक भाषा बोलती है।
  • इसके अतिरिक्त वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 99 गैर-अनुसूचित भाषाएँ हैं और लगभग 37.8 मिलियन लोग इनमें से किसी एक भाषा को अपनी मातृभाषा के रूप में पहचानते हैं।
  • 121 भाषाएँ ऐसी हैं जो भारत में 10,000 या उससे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हैं।

भारत में बहुभाषावाद

  • भारत विश्व के सबसे अधिक भाषाई विविधता वाले देशों में से एक है, यह विविधता भारतीयों को बहुभाषी होने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है, जिसका अर्थ है संचार में एक से अधिक भाषाओं का उपयोग करने में सक्षम होना है।
  • भारत, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 25% से अधिक जनसंख्या दो भाषाएँ बोलती है, जबकि लगभग 7% तीन भाषाएँ बोलते हैं।
  • अध्ययनों से पता चलता है कि युवा भारतीय अपनी बुज़ुर्ग पीढ़ी की तुलना में अधिक बहुभाषी हैं और साथ ही 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग आधी शहरी आबादी दो भाषाएँ बोलती है।

प्रस्तावित भाषाई सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएँ

  • सर्वेक्षण भारत में भाषाओं तथा बोलियों की संख्या की गणना करने पर केंद्रित होगा, जिनमें वे भाषाएँ और बोलियाँ भी शामिल हैं जो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं।
  • इसका उद्देश्य राज्य और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर डेटा एकत्र करना है, जिसमें बोली जाने वाली सभी भाषाओं की ऑडियो रिकॉर्डिंग को डिजिटल रूप से संग्रहीत करने की योजना सम्मिलित है।
  • इसमें बोली जाने वाली सभी भाषाओं की ऑडियो रिकॉर्डिंग को डिजिटल रूप से संग्रहीत करने का भी प्रस्ताव है।
  • सर्वेक्षण में हितधारकों में विभिन्न भाषा समुदायों के साथ-साथ संस्कृति, शिक्षा, जनजातीय कार्य मंत्रालय और अन्य शामिल हैं।

भाषाई सर्वेक्षण का महत्त्व

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण

  • भाषाई सर्वेक्षण भाषाओं, बोलियों और लिपियों की पहचान करने एवं उनका दस्तावेज़ीकरण करने में मदद करते हैं, जिससे सांस्कृतिक धरोहर तथा भाषाई विविधता का संरक्षण होता है।

नीति निर्धारण

  • भाषाई सर्वेक्षणों का डेटा नीति निर्माताओं को विभिन्न समुदायों की भाषाई आवश्यकताओं के बारे में सूचित करता है, जिससे शिक्षा, शासन और सांस्कृतिक मामलों में भाषा-संबंधी नीतियों के निर्माण में सुविधा होती है।

शिक्षा योजना

  • विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषाओं के बारे में ज्ञान शैक्षिक कार्यक्रमों को डिज़ाइन करने में मदद करता है जो विविध भाषाई पृष्ठभूमि को पूरा करते हैं, समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देते हैं।

सामुदायिक सशक्तीकरण

  • भाषाई सर्वेक्षण भाषाई अल्पसंख्यकों और हाशिये पर रहने वाले समुदायों को उनकी भाषाओं को पहचानने एवं मान्य करके, उनके सामाजिक-आर्थिक व सांस्कृतिक कल्याण में योगदान देकर सशक्त बनाते हैं।

शोध और दस्तावेज़ीकरण

  • भाषाई सर्वेक्षण शोधकर्त्ताओं, भाषाविदों और मानवविज्ञानियों के लिये भाषा विकास, बोली-विज्ञान एवं भाषा संपर्क घटना का अध्ययन करने वाले मूल्यवान संसाधनों के रूप में कार्य करते हैं।

बहुभाषावाद को बढ़ावा

  • भाषाई विविधता की समृद्धि के बारे में जागरूकता बढ़ाकर, भाषाई सर्वेक्षण बहुभाषावाद को बढ़ावा देते हैं और किसी की भाषा व सांस्कृतिक पहचान पर गर्व की भावना को बढ़ावा देते हैं।

भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

आठवीं अनुसूची

  • भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत की आधिकारिक भाषाओं की सूची है। इसमें आधिकारिक भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त 22 भाषाएँ शामिल हैं।
  • असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।

आठवीं अनुसूची में वर्तमान में छह शास्त्रीय भाषाएँ भी शामिल हैं

  • तमिल (वर्ष 2004 में घोषित), संस्कृत (वर्ष 2005), कन्नड़ (वर्ष 2008), तेलुगु (वर्ष 2008), मलयालम (वर्ष 2013) और उड़िया (वर्ष 2014)।
  • भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 तक भारत की आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।

संघ की भाषा

  • अनुच्छेद 120: संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 210: अनुच्छेद 120 के समान लेकिन राज्य विधानमंडल पर लागू होता है।
  • अनुच्छेद 343: देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा घोषित करता है।
  • अनुच्छेद 344: राजभाषा पर एक आयोग और संसद की समिति की स्थापना करता है।

क्षेत्रीय भाषाएँ

  • अनुच्छेद 345: राज्य विधायिका को राज्य के लिये कोई भी आधिकारिक भाषा अपनाने की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 346: राज्यों के बीच तथा राज्यों और संघ के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषा निर्दिष्ट करता है।
  • अनुच्छेद 347: यह अनुच्छेद निमित्त मांग किये जाने पर राष्ट्रपति को राज्य के जन समुदाय के किसी भाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा को मान्यता प्रदान करने की अनुमति देता है।

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