शनि. मई 4th, 2024

न्यायमूर्ति के.एस.पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 मामले में ऐतिहासिक निर्णय ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। हालाँकि भारत में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 द्वारा दी गई अतिरिक्त-सांविधानिक शक्तियों के संबंध में चिंताएँ सामने आई हैं क्योंकि वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करती प्रतीत होती हैं।

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132

  • यह धारा वर्ष 1961 में आयकर अधिनियम, 1961 के भाग के रूप में, आय पर कराधान (अन्‍वेषण आयोग) अधिनियम, 1947 को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रस्तुत की गई थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सूरज मल मोहता बनाम ए.वी. विश्वनाथ शास्त्री (1954) मामले में रद्द कर दिया था क्योंकि न्यायालय के अनुसार इसमें करदाताओं के एक निश्चित वर्ग के साथ अन्य की तुलना में विशेष व्यवहार का प्रावधान था जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित एकसमान व्यवहार की गारंटी का हनन हुआ।
  • वर्ष 1922 में प्रस्तुत मूल आयकर कानून में खोज तथा ज़ब्ती शक्तियों का अभाव था।
  • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132, कर अधिकारियों को बिना किसी पूर्व न्यायिक वारंट के व्यक्तियों तथा संपत्तियों की खोज/तलाशी एवं ज़ब्ती करने का अधिकार देती है यदि उनके पास “संदेह करने का कारण” है कि व्यक्ति ने आय छुपाई है अथवा चोरी की है।
  • यह अधिकारियों को वित्तीय संपत्ति छिपाने के संदेह के आधार पर भवन, स्थानों, वाहनों अथवा विमानों की तलाशी लेने की शक्ति प्रदान करता है।
  • संबद्ध अधिकारी इस अधिनियम के तहत तलाशी अथवा सर्वेक्षण के दौरान किसी भी व्यक्ति के कब्ज़े में पाई गई ऐसी वस्तुओं को ज़ब्त कर सकते हैं। तलाशी के दौरान खोजी गई बहीखाते, धन, बुलियन, आभूषण अथवा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को ज़ब्त करने की अनुमति देता है।

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 से संबंधित मामला

पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक

  • अमुक प्रावधान की सांविधानिकता को पूरन मल बनाम निरीक्षण निदेशक (1973) मामले में चुनौती दी गई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने एम.पी. शर्मा बनाम सतीश चंद्रा (1954) में अपने निर्णय का हवाला देते हुए कानून को बरकरार रखा और तर्क दिया कि खोज व ज़ब्ती की शक्ति सामाजिक सुरक्षा के बचाव के लिये आवश्यक है एवं विधि द्वारा विनियमित है।
  • अदालत ने यह भी कहा कि संविधान तलाशी और ज़ब्ती के बारे में अमेरिकी चौथे संशोधन के समान निजता के मौलिक अधिकार को मान्यता नहीं देता है।
  • अमेरिकी चौथा संशोधन सरकार द्वारा अनुचित तलाशी और ज़ब्ती से बचाता है।
  • यह निष्कर्ष निकाला गया कि तलाशी के लिये वैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 20(3) के तहत संवैधानिक सुरक्षा को पराजित नहीं करते हैं।
  • एम.पी. शर्मा मामले में फैसला आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत तलाशी से संबंधित था, जबकि आयकर अधिनियम के तहत तलाशी के लिये न्यायिक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
  • एम.पी. शर्मा के फैसले को औपचारिक रूप से खारिज कर दिये जाने के बाद से कानून के बारे में न्यायालय की समझ बदल गई है। निजता का अधिकार अब संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में अंतर्निहित माना जाता है।

आयकर अधिनियम,1961 की धारा 132 के संबंध में चुनौतियाँ

आनुपातिक सिद्धांत का उल्लंघन

  • आयकर अधिनियम की धारा 132, औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दिये जाने के बावजूद, आनुपातिकता के सिद्धांत के संभावित उल्लंघन का सुझाव देती है।
  • तलाशी और ज़ब्त करने की राज्य की शक्ति को अब सामाजिक सुरक्षा के एक सरल उपकरण के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि यह आनुपातिकता के सिद्धांत के अधीन है। इसका मतलब यह है कि इसका उपयोग एक वैध उद्देश्य के लिये किया जाना चाहिये, तर्कसंगत रूप से अपने उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिये, कोई वैकल्पिक कम दखल देने वाला साधन उपलब्ध नहीं होना चाहिये और चुने गए साधनों तथा उल्लंघन किये गए अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य आयकर निदेशक बनाम लालजीभाई कांजीभाई मांडलिया, 2022 के मामले में “वेडनसबरी (Wednesbury)” अवधारणा पर निर्भरता प्रदर्शित की, जो ब्रिटेन की अदालत के फैसले से लिया गया प्रशासनिक समीक्षा का एक मानक है, जिसमें तलाशी को न्यायिक नहीं बल्कि प्रशासनिक माना गया है।
  • वेडनसबरी सिद्धांत कहता है कि यदि कोई निर्णय इतना अनुचित है कि कोई भी समझदार प्राधिकारी इसे कभी नहीं ले सकता है, तो ऐसे निर्णय न्यायिक समीक्षा के माध्यम से रद्द किये जा सकते हैं।
  • आलोचकों का तर्क है कि पुट्टस्वामी के बाद, वेडनसबरी मानदंड का कोई स्थान नहीं है, खासकर जहाँ बुनियादी अधिकार खतरे में हैं और किसी भी कार्यकारी कार्रवाई को वैधानिक कानून का सबसे सख्त अर्थ में पालन करना चाहिये।

निजता के अधिकार का हनन

  • निजता का अधिकार, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक बुनियादी अधिकार है, अनुचित तलाशी और ज़ब्ती के साथ-साथ गोपनीय रूप से व्यक्तिगत जानकारी से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • हालाँकि आयकर की जाँच व्यक्तियों की सहमति के बिना उनकी गोपनीयता में हस्तक्षेप करती हैं, जो प्रायः अस्पष्ट आधारों पर आधारित होती हैं, जिससे संभावित दुरुपयोग होता है।
  • इसके अतिरिक्त, दुरुपयोग को रोकने और I-T जाँचों के अधीन व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों तथा निरीक्षण तंत्र की कमी है।
  • कड़े सुरक्षा उपायों के अभाव के कारण  व्यक्तियों को कर अधिकारियों द्वारा शक्ति के संभावित दुरुपयोग के लिये उजागर किया जाता है।

जाँच की अवधि और शर्तें

  • गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उस छापेमारी पर सवाल उठाना जहाँ व्यक्तियों को कथित तौर पर उचित सुरक्षा उपायों के बिना कई दिनों तक आभासी हिरासत में रखा गया था, ऐसी खोजों की अवधि और शर्तों से संबद्ध चिंताओं को उजागर करता है।

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