केंद्र सरकार ने क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत बागवानी क्षेत्र के किसानों को सब्सिडी देने के लिये CDP-सुरक्षा नामक एक नया प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है।इससे भारत के बागवानी क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, जो कृषि सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में लगभग एक- तिहाई का योगदान देता है।
क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम-सुरक्षा
- यहाँ सुरक्षा का अर्थ है “एकीकृत संसाधन आवंटन, ज्ञान एवं सुरक्षित बागवानी सहायता हेतु प्रणाली”
- यह प्लेटफॉर्म नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) से ई-रुपी (E-RUPI) वाउचर का उपयोग करके किसानों के बैंक खातों में शीघ्र सब्सिडी प्रदान करने की अनुमति देगा।
- इसमें पीएम-किसान के साथ डेटाबेस एकीकरण, NIC के माध्यम से क्लाउड-आधारित सर्वर स्पेस, UIDAI सत्यापन, eRUPI एकीकरण, स्थानीय सरकार निर्देशिका (LGD), सामग्री प्रबंधन प्रणाली, जियोटैगिंग और जियो-फेंसिंग जैसी विशेषताएँ शामिल हैं।
कार्यान्वयन
- यह प्लेटफॉर्म किसानों, विक्रेताओं, कार्यान्वयन एजेंसियों (IA), क्लस्टर विकास एजेंसियों (CDA), और राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) के अधिकारियों तक पहुँच की अनुमति देता है।
- इसमें किसान अपने मोबाइल नंबर का उपयोग करके लॉगिन कर सकता है, ऑर्डर दे सकता है और रोपण सामग्री की लागत में अपने हिस्से का योगदान कर सकता है।
- भुगतान के बाद एक ई-रुपी वाउचर जेनरेट होगा। यह वाउचर एक विक्रेता को प्राप्त होगा, जो किसान को आवश्यक रोपण सामग्री प्रदान करेगा।
- सामग्री की डिलीवरी के बाद किसानों को अपने खेत की जियो-टैगिंग तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से डिलीवरी को सत्यापित करना होगा।
- सत्यापन के पश्चात् कार्यान्वयन एजेंसियाँ (IA) ई-रुपी वाउचर हेतु विक्रेता को पैसा जारी करेंगी। विक्रेता को भुगतान का चालान पोर्टल पर अपलोड करना होगा।
- IA सभी दस्तावेज़ एकत्र करेगा और सब्सिडी जारी करने के लिये उन्हें CDA के साथ साझा करेगा, इस प्रक्रिया के बाद ही IA को सब्सिडी जारी की जाएगी।
- हालाँकि जिस किसान ने प्लेटफॉर्म का उपयोग करके पौध सामग्री की मांग की है, वह केवल पहले चरण में ही सब्सिडी का लाभ उठा सकता है।
ई-रुपी क्या है
- यह एकमुश्त भुगतान व्यवस्था (One-time Payment Mechanism) है जो उपयोगकर्त्ताओं को यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ई-प्रीपेड वाउचर स्वीकार करने वाले व्यापारियों को कार्ड, डिजिटल भुगतान एप या इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस के बिना वाउचर को भुनाने में सक्षम बनाता है।
- e-RUPI को किसी विशिष्ट उद्देश्य या गतिविधि के लिये संगठनों द्वारा SMS या क्यूआर कोड के माध्यम से लाभार्थियों के साथ साझा किया जाएगा।
भारत में बागवानी क्षेत्र की स्थिति
- भारत फलों और सब्ज़ियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- देश में कुल बागवानी उत्पादन का लगभग 90% हिस्सा फलों और सब्जियों का है।
- भारतीय बागवानी क्षेत्र कृषि सकल मूल्यवर्द्धित (Gross Value Added- GVA) में लगभग 33% योगदान देता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भारत वर्तमान में खाद्यान्नों की तुलना में अधिक बागवानी उत्पादों का उत्पादन कर रहा है, जिसमें 25.66 मिलियन हेक्टेयर बागवानी से 320.48 मिलियन टन और बहुत छोटे क्षेत्रों से 127.6 मिलियन हेक्टेयर खाद्यान्न का उत्पादन होता है।
- बागवानी फसलों की उत्पादकता खाद्यान्न उत्पादकता (2.23 टन/हेक्टेयर के मुकाबले 12.49 टन/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत अधिक है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत कुछ सब्ज़ियों (अदरक तथा भिंडी) के साथ-साथ फलों (केला, आम तथा पपीता) के उत्पादन में अग्रणी है।
- निर्यात के मामले में भारत सब्ज़ियों में 14वें और फलों में 23वें स्थान पर है तथा वैश्विक बागवानी बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1% है।
- बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, नीदरलैंड, मलेशिया, श्रीलंका, यूके, ओमान और कतर ताज़े फल और सब्जियों के प्रमुख निर्यातक हैं।
- भारत में लगभग 15-20% फल और सब्ज़ियाँ आपूर्ति शृंखला या उपभोक्ता स्तर पर बर्बाद हो जाती हैं, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में योगदान करती हैं।
क्लस्टर विकास कार्यक्रम
- यह एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य पहचान किये गए बागवानी क्लस्टर को विकसित करना है ताकि उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके।
- बागवानी क्लस्टर लक्षित बागवानी फसलों का क्षेत्रीय/भौगोलिक संकेंद्रण है।
- इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा।
- इस प्रायोगिक (Pilot) परियोजना कार्यक्रम के लिये चुने गए कुल 55 बागवानी क्लस्टरों में से 12 बागवानी क्लस्टरों में लागू किया जाएगा।
- इन क्लस्टरों को क्लस्टर विकास एजेंसियों (CDA) के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा जिन्हें संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार की सिफारिशों के आधार पर नियुक्त किया जाता है।
- भारतीय बागवानी क्षेत्र से संबंधित सभी प्रमुख मुद्दों (उत्पादन, कटाई/हार्वेस्टिंग प्रबंधन, लॉजिस्टिक, विपणन और ब्रांडिंग सहित) का समाधान करना।
- CDP का लक्ष्य लक्षित फसलों के निर्यात में लगभग 20% सुधार करना और क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड बनाना है।
- भौगोलिक विशेषज्ञता (Geographical Specialisation) का लाभ उठाकर बागवानी क्लस्टरों के एकीकृत तथा बाज़ार आधारित विकास को बढ़ावा देना।
- सरकार की अन्य पहलों जैसे कि कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के साथ अभिसरण।