सोम. मई 20th, 2024

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पशु क्रूरता और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता पर बल देते हुए, राष्ट्रीय राजधानी भर की डेयरी कॉलोनियों में नकली ऑक्सीटोसिन हार्मोन के उपयोग से निपटने के लिए निर्देश जारी किए हैं।

ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन

  • ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन को ‘लव हार्मोन’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • ऑक्सीटोसिन स्तनधारियों की पिट्यूटरी ग्रंथियों द्वारा सेक्स, प्रसव, स्तनपान या सामाजिक बंधन के दौरान स्रावित होता है, और प्रसव के दौरान उपयोग के लिए फार्मा कंपनियों द्वारा रासायनिक रूप से निर्मित व बेचा जा सकता है।
  • इसे या तो इंजेक्शन या घोल के रूप में दिया जाता है।
  • ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन का मुख्य काम है “गर्भवती पशुओं को प्रसव के समय गर्भाशय को संकुचित करके नवजात को बाहर आने में मदद करना”, लेकिन सामान्य पशुओं पर इसके इस्तेमाल से दूध ग्रंथियों में उत्तेजना बढ़ जाती है और अप्राकृतिक रूप से दूध बहने लगता है।
  • ऑक्सीटोसिन दूध उत्पादन में वृद्धि नहीं करता है, लेकिन यह संकुचन को उत्तेजित करता है, जिससे दूध बाहर निकलता है।

ऑक्सीटोसिन के अनुचित प्रयोग पर प्रतिबन्ध

  • केंद्र सरकार ने अप्रैल 2018 में इस दवा पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया था कि पैदावार बढ़ाने के लिए दुधारू मवेशियों पर इसका दुरुपयोग किया जा रहा है, जिससे न केवल मवेशियों के स्वास्थ्य पर बल्कि दूध का सेवन करने वाले मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
  • केंद्र ने निर्णय लिया था कि केवल एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (KAPL) को पूरे देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए ऑक्सीटोसिन का उत्पादन करने की अनुमति दी जाएगी।

दिल्ली उच्च न्यायलय का आदेश

  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में “डेयरी कॉलोनियों में ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बड़े पैमाने पर उपयोग” पर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अब डेयरी कॉलोनियों में इसके नकली उपयोग के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया है।
  • पीठ ने निर्देश में कहा कि, चूंकि ऑक्सीटोसिन का सेवन पशु क्रूरता की श्रेणी में आता है, और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 12 के तहत एक संज्ञेय अपराध है।
  • परिणामस्वरूप, यह अदालत औषधि नियंत्रण विभाग, जीएनसीटीडी को निर्देश देती है कि साप्ताहिक निरीक्षण करें और सुनिश्चित करें कि नकली ऑक्सीटोसिन के उपयोग या कब्जे के सभी मामले पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 12 और औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 की धारा 18 (ए) के तहत दर्ज किए जाएं।
  • दिल्ली पुलिस के खुफिया विभाग को ऐसे नकली ऑक्सीटोसिन उत्पादन, पैकेजिंग और वितरण के स्रोतों की पहचान करने और कानून के अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है।
  • अदालत का विचार है कि डेयरियों को उचित सीवेज, जल निकासी, बायोगैस संयंत्र, मवेशियों के घूमने के लिए पर्याप्त खुली जगह और पर्याप्त चरागाह क्षेत्र वाले क्षेत्रों में “स्थानांतरित” किया जाना चाहिए।
  • लैंडफिल साइटों के बगल में स्थित डेयरियों में मवेशी, खतरनाक अपशिष्टों का भोजन करेंगे और यदि उनका दूध मनुष्यों, विशेष रूप से बच्चों द्वारा खाया जाता है, तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  • इस आशंका को ध्यान में रखते हुए कि लैंडफिल साइटों के बगल में डेयरियां बीमारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं, अदालत का प्रथम दृष्टया विचार है कि इन डेयरियों को तुरंत स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960

  • 1960 का पशु क्रूरता निवारण अधिनियम भारत में पशु संरक्षण का कानूनी आधार है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य “जानवरों को अनावश्यक दर्द या पीड़ा देने से रोकना और जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम से संबंधित नियमों को लागू करना है”।
  • यह अधिनियम “पशु” को मनुष्य के अलावा किसी भी जीवित प्राणी के रूप में परिभाषित करता है।
  • इस अधिनियम की धारा 11 के तहत जानवरों के प्रति क्रूरता के विभिन्न प्रकारों को अनेक कार्यों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जैसे: किसी भी जानवर को मारना, लात मारना, जबरदस्ती थोपना, उस पर ज्यादा बोझ डालना, यातना देना और अनावश्यक पीड़ा पहुंचाना इत्यादि।
  • इस अधिनियम की धारा 12 के तहत जानवरों के प्रति क्रूरता एक संज्ञेय अपराध है।

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