गुरु. मई 9th, 2024

अरुणाचल प्रदेश को हाल ही में अरुणाचल याक चुरपी, खाव ताई (खामती चावल) और तांगसा वस्त्र के लिये भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्रदान किया गया है।

GI टैग

  • भौगोलिक संकेत (GI) टैग कुछ उत्पादों पर प्रयुक्त एक चिह्न है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान या मूल से संबद्ध है।
  • उदाहरण के लिये, दार्जिलिंग चाय, कांचीपुरम सिल्क आदि।
  • भौगोलिक संकेतों को पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1(2) एवं 10 के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई है और इन्हें बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) समझौते के अनुच्छेद 22-24 के तहत भी मान्यता प्राप्त है।
  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) के सदस्य के रूप में भारत ने इस प्रकार के संकेतको की सुरक्षा के लिये भौगोलिक संकेत अधिनियम, 1999 को लागू किया, जो 15 सितंबर, 2003 से प्रभावी हुआ।
  • एक पंजीकृत GI टैग 10 वर्षों के लिये मान्य होता है। इसे समय-समय पर 10-10 वर्ष की अगली अवधि के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।

अरुणाचल याक चुरपी

  • उत्पत्ति: अरुणाचल याक चुरपी अरुणाचली याक के दुग्ध से बनाई जाती है। अरुणाचली याक एक दुर्लभ नस्ल की याक है जो मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग और तवांग ज़िलों में पाई जाती है।
  • जनजातीय याक चरवाहे: यह दुग्ध ब्रोकपास जनजाति द्वारा पाले गए याक से प्राप्त किया जाता है। यह समुदाय याक पालन में निपुण होता है।
  • ये चरवाहे मौसम परिवर्तित होने पर प्रवास करते हैं, गर्मियों के दौरान ये अपने याक को अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्र पर ले जाते हैं तथा सर्दियों में मध्य ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवास करते हैं, क्योंकि गर्मियों के दौरान याक निम्न ऊँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों पर जीवित नहीं रह सकते हैं।
  • स्वास्थ्य लाभ और उपयोग: चुरपी प्रोटीन से भरपूर होता है और अरुणाचल प्रदेश के दुर्लभ, ठंडे एवं पर्वतीय क्षेत्रों में पोषण के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करता है।

खाव ताई (खामती चावल)

  • खाव ताई चबाने योग्य चावल की चिपचिपी प्रकार की किस्म है, जिसकी कृषि नामसाई क्षेत्र में पारंपरिक खम्पती जनजाति के किसानों द्वारा की जाती है।

तांग्सा टेक्सटाइल

  • चांगलांग ज़िले की तांग्सा जनजाति द्वारा तैयार किये गए तांग्सा टेक्सटाइल उत्पाद अपने अनोखे डिज़ाइन और जीवंत रंगों के लिये प्रसिद्ध हैं।
  • यह पारंपरिक शिल्प कौशल इस क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है।

Login

error: Content is protected !!