गुरु. मई 9th, 2024

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे, डेलावेयर विश्वविद्यालय, कोलंबिया विश्वविद्यालय और येल स्कूल ऑफ द एन्वायरनमेंट के शोधकर्त्ताओं की एक टीम द्वारा कृषि क्षेत्र के संबंध में एक शोध किया गया, जिसे नेचर वॉटर जर्नल में प्रकाशित किया गया है।यह अध्ययन भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों, विशेष रूप से इंडो-गंगेटिक क्षेत्र में जल की खपत तथा सतत् कृषि पर केंद्रित है।यह अध्ययन भारत में ऊपरी, मध्य और निचली गंगा बेसिन/क्षेत्र को कवर करते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के 124 ज़िलों पर केंद्रित था।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु

सस्य आवर्तन के माध्यम से जल संरक्षण

  • खरीफ सीज़न के दौरान चावल के स्थान पर कदन्न और ज्वार की खेती तथा रबी सीज़न में गेहूँ के बजाय ज्वार की खेती करने से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में जल की खपत को 32% तक कम किया जा सकता है। साथ ही किसानों के मुनाफे को 140% तक बढ़ाया जा सकता है।

जल संरक्षण के अतिरिक्त लाभ

  • सस्य आवर्तन (Crop Switching) से खरीफ सीज़न में 55% और रबी सीज़न में 9% तक जल की बचत की जा सकती है।
  • किसानों के मुनाफे में खरीफ सीज़न के दौरान 139% और रबी सीज़न के दौरान 152% तक की वृद्धि की जा सकती है।
  • कैलोरी उत्पादन 39% तक बढ़ सकता है।

सस्य आवर्तन बनाम टपक/ड्रिप सिंचाई प्रणाली

  • शोधकर्त्ताओं ने सिंचाई दक्षता में सुधार के साथ सस्य आवर्तन के लाभों की तुलना की और पाया कि भूजल की कमी की समस्या के निराकरण और ऊर्जा बचत में वृद्धि करने के संदर्भ में सस्य आवर्तन का प्रदर्शन टपक/ड्रिप सिंचाई प्रणाली से बेहतर है।
  • ड्रिप सिंचाई से शुद्ध भूजल पुनर्भरण में 34% सुधार होता है, जबकि सस्य आवर्तन से 41%।
  • अकेले ड्रिप सिंचाई प्रणाली के उपयोग से किसान के मुनाफे में काफी वृद्धि नहीं होती।
  • सस्य आवर्तन और ड्रिप सिंचाई प्रणाली के संयुक्त प्रयोग से ज़िला स्तर पर शुद्ध पुनर्भरण दर में सबसे अधिक सुधार किया जा सकता है और यह भूजल की कमी की समस्या को 78% तक कम कर सकता है।

बहुउद्देश्यीय दृष्टिकोण

  • जल संरक्षण, गुणवत्तापूर्ण फसल उत्पादन और किसानों की आय में वृद्धि के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये एक बहुउद्देश्यीय दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
  • एकल-केंद्रित दृष्टिकोण की कुछ सीमाएँ व शर्तें होती हैं। उदाहरण के लिये अकेले जल संरक्षण को प्राथमिकता देने से बचत में 4% की वृद्धि की जा सकती है, किंतु इससे अन्य कई चीज़ों में कमी आती है; सुझाए गए विकल्पों की तुलना में कैलोरी उत्पादन में 23% और लाभ में 126% की गिरावट आती है।
  • इसी प्रकार सर्वाधिक लाभ प्राप्त करने का दृष्टिकोण जल की बचत में थोड़ी वृद्धि तो कर सकता है किंतु कैलोरी उत्पादन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित भी कर सकता है।
  • उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य और खेती में कम लागत के कारण सर्वाधिक लाभ प्रदान करने वाले फसल- ज्वार की खेती करके लाभ में 58% तक की वृद्धि की जा सकती है। इस लाभ के साथ कुछ सीमाएँ भी हैं: जैसे कैलोरी उत्पादन में उल्लेखनीय 18.5% की कमी, जल की बचत में मामूली 2% की वृद्धि।

बेहतर पोषण के लिये पोषक अनाज

  • ज्वार और बाजरा जैसे पोषक अनाजों की खेती से बेहतर पोषण प्राप्त होता है।
  • पोषक अनाजों की खेती से प्रोटीन उत्पादन में 46% की वृद्धि, लौह उत्पादन में 353% की वृद्धि और जस्ता उत्पादन में 82% की वृद्धि हो सकती है, जिससे उपभोक्ताओं को पोषण लाभ होगा।

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