डी. रविंदर रेड्डी और डॉ. मुरलीधर रेड्डी ने तेलंगाना के सीताम्मा लोड्डी में मध्यपाषाण काल के शैल चित्रों की खोज की है।सीताम्मा लोड्डी पेद्दापल्ली जिले के गट्टुसिंगाराम में स्थित है।यहाँ मिले शैलचित्र मध्यपाषाण काल (10,000-12,000 वर्ष पहले) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (पहली ईसा पूर्व से 6ठीं शताब्दी) से संबंधित हैं।ये जंगल में एक बड़े बलुआ पत्थर पर मिले हैं। सीपियों वाला एक जीवाश्म पत्थर भी पाया गया है, जिससे पता चलता है कि यह स्थल लगभग 65 मिलियन वर्ष पुराना है।डॉ. मुरलीधर रेड्डी ने इस स्थल को जयशंकर भूपालपल्ली जिले में स्थित पांडवुला गुट्टा की तरह शैल चित्रों की “हीरे की खान” के रूप में वर्णित किया है।
शैलचित्र पर मिले चित्र
- इस पर मानव आकृतियों का चित्रण है।
- पुरुष और महिला दोनों पंक्ति और गोल पैटर्न में समूह नृत्य कर रहे हैं।
- सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए हैं और विशेष प्रकार के जूते पहने हैं।
- धनुष और तीर लिए व्यक्ति का चित्र मिला है।
- कुछ चित्रों में लाल रंग में विभिन्न आकारों के कई हाथ के निशान मिले हैं।
- कुछ सफ़ेद और पीले रंग के हाथ के निशान भी मिले हैं, जो दुर्लभ हैं।
- अन्य आकृतियों में कुछ जानवरों जैसे- हिरण, मृग, कछुआ, जंगली बिल्ली, मांसाहारी, बंदर, जंगली छिपकलियाँ, पैरों के निशान प्रमुख हैं।
पाषाण काल
- पाषाण काल में मानव उपकरण बनाने के लिए पत्थरों का उपयोग करता था।
पाषाण काल को तीन चरणों में बांटा गया है
- पुरापाषाण काल: अवधि – 500,000 – 10,000 B.C.
- मध्यपाषाण काल: अवधि – 10,000 – 6000 B.C.
- नवपाषाण काल: अवधि – 6000 – 1000 B.C.
मध्यपाषाण काल
- भारत में मध्यपाषाणकालीन स्थल की खोज सर्वप्रथम C.L. कार्लाइल ने विन्ध्य क्षेत्र में वर्ष,1867 ई. में की।
- मध्यपाषाण काल के उपकरण आकार में अत्यंत छोटे हैं।
- इस काल के मानव अधिकांशतः शिकार पर ही निर्भर थे, किंतु अब ये गाय, बैल, भेड़, बकरी, भैसे आदि का शिकार करने लगे थे।
- इन लोगों ने थोड़ी कृषि करना भी सीख ली थी।
- अंतिम चरण तक आते-आते बर्तनों का निर्माण करना भी सीख गए थे।
- सरायनाहर राय और महदहा की समाधियों से इस काल के लोगों के लोगों की अंत्येष्टि संस्कार विधि बारे में भी जानकारी मिलती हैं।
- ये मृतकों को समाधियों में दफनाते थे और उनके साथ खाद्य सामग्री, औजार और हथियार भी रख देते थे।
- शायद यह किसी प्रकार के लोकोत्तर जीवन में विश्वास का सूचक था।